Navratri: यहां तीन रूपों में मिलते हैं करुणामयी माता के दर्शन

नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। मां के भक्त और श्रद्धालु मां दुर्गा की आराधना में लीन हैं। इसी बीच छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित मां महामाया का दर्शन कर बहुत ही सुंदर शब्दों में लिखा गया यह वृत्तांत आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय ने हमें भेजा है। जिसे हम आपके साथ साझा कर रहे हैं।
आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय। छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजधानी रायपुर.. महामाया मन्दिर... लगभग 1400 साल प्राचीन यह मन्दिर केंद्र है, महामाया की चरणवंदना करने वालों के लिए..घोर तांत्रिक विधि से बने मन्दिर में करुणामयी माता के दर्शन तीन रूपों में किए जाते हैं.. मंदिर के गुम्बद में श्री यंत्र के स्वरूप में महालक्ष्मी, गर्भगृह में महाकाली और मंदिर के सामने समलेश्वरी के रूप में महासरस्वती उपस्थित हैं..
राजा मोरध्वज, पत्नी सहित भ्रमण को निकले.. पत्नी स्नान को गईं.. खारुन नदी पर तीन भयंकर सर्प,एक शिला की रखवाली करते बैठे थे.. मारे डर के राजन को सूचना दी गई.. राजा को शायद मईया की कृपा का पूर्वाभास था.. ज्योतिषियों और राज पुरोहितों को बुला भेजा गया..शिला की पूजा अर्चना पर ही सर्प वहां से हटे.. शिला पानी से निकाली गई.. यह क्या.. सिंह सवार, अष्टभुजी प्रतिमा रूप में प्रगट...उसी रात स्वप्न में मां की वाणी गूंजी.. "रे मोरध्वज, मैं ही तेरी कुल देवी हूं..अमुक स्थान पर मेरी स्थापना कर".. राजा ने मां की प्रतिमा सर पर उठाई, और आ गए निर्दिष्ट स्थान पर.. वहां पहले से एक मन्दिर का निर्माण हो रहा था, पर कोई देव प्रतिमा नहीं थी..राजा ने विधि पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करवाई.. महामाया का मन्दिर पूर्ण हुआ... आज की राजधानी रायपुर, और इसका हृदय स्थल, पुरानी बस्ती..साक्षात भवानी ने इस स्थान को चुना,भक्तों को दर्शन लाभ देने के लिए.. आज भी यहां दस वर्ष से छोटी कन्या चकमक पत्थर की चिंगारी से पहली ज्योत जलाया करती है..मन्दिर में बाहर से देखने पर मूर्ति टेढ़ी दिखाई पड़ती है, पर भीतर जाने पर एकदम सीधी.. जैसे मां संकेत कर रही हों.. मुझ तक पहुंचने के रास्ते तुम्हें भले ही कठिन व टेढ़े दिखें लेकिन मैं हर समय सीधी तुम्हारे पहुंच में हूं, मेरे निकट आस्था से आओ तो सही..

आदिशक्ति महामाया का वरद हस्त पूरे छत्तीसगढ़ पर स्पष्ट है.. रायपुर से लगभग 130 कि. मी. दूर बिलासपुर कोरबा मार्ग पर बसी है,अनेक ताल–तलैयों से सजी एक पुरानी नगरी मणिपुर..पास ही तुमान का एक छोटा सामंती राजा रतनदेव,प्रदेशाटन को निकला..रास्ता भूल,थक कर चूर..जंगल में रात वृक्ष के नीचे..तेज रौशनी से आंख खुली.. महामाया का दरबार सजा हुआ था... महामाया ने पुत्र पर कृपा की,और पुत्र ने मां का मन्दिर निर्माण कराया... कालांतर में नगरी पुकारी गई रतनपुर के नाम से..
मन्दिर में मां पुनः तीनों रूप में.. महाकाली गर्भ गृह में हैं परंतु प्रत्यक्ष नहीं..थोड़ा झुक कर दर्शन करने पर दो मूर्तियां.. सामने वाली आधी जमीन के भीतर,लक्ष्मी जी और पीछे खड़ी सरस्वती माता.. पूरी तरह करुणा भाव में..
कहीं–कहीं रतनपुर के शक्तिपीठ होने की बात उल्लेख भी मिलता है.. सती महारानी का दाहिना कंधा गिरा था यहां.. अनगिनत तालाबों से निकले ताजा कमल देवी को अर्पण,और उखरा का चढ़ावा (छत्तीसगढ़ का विशेष, लाई और गन्ने के रस से बना मुरमुरे जैसा मीठा) यहां अवश्य ही मिलेंगे.. लाल मदार के फूल तो जैसे उमड़े पड़ते हैं खिल–खिल कर.. मां की कण्ठ माला जो बनना है..
इसी मन्दिर में मां का एक शीष–विग्रह भी उपस्थित है.. पिंडारी आक्रांताओं ने अम्बिकापुर महामाया–विग्रह को उठा ले जाना चाहा.. देवी तो हिली नहीं,पर मां का सर वाला भाग वे ले चले नागपुर की ओर.. रतनपुर के आगे,वे शीष को न ले जा पाए.. मां का एक हिस्सा यहीं स्थापित हो गया, और दूसरा अम्बिकापुर में..
अम्बिकापुर..देवी के नाम पर ही पुकारा जाने वाला देवी का स्थान..बिलासपुर से 220 कि. मी. दूर.. उत्तर–छत्तीसगढ़ का वनों से घिरा सुरम्य नगर.. इतना शांत और सौम्य शहर,जैसे हर समय आंखें बन्द कर, मां के ध्यान में बैठा हो..
इस शहर के नवागढ़ हिस्से में, चबूतरे पर दो मूर्तियां विराजित थीं..जंगली बाघ इनका पहरा दिया करते.. राजपरिवार की कुलपूजिता... बड़ी समलाया और छोटी समलाया..समय बीता..राजपरिवार की आपसी व्यवस्था में दो मन्दिर बने.. बड़ी समलाया महामाया नाम से वहीं नवागढ़ में रहीं, और छोटी समलाया का शहर के सुपर्रागढ़ (अब का मोविनपुर ) हिस्से में "समलाया मन्दिर" बना.. नवागढ़ जिस राज परिवार के हिस्से में था, उस की रानी का मायका विंध्यवासिनी क्षेत्र में था.. रानी ने विंध्यवासिनी की मूर्ति लाकर, बड़ी समलाया( महामाया) के साथ ही प्रतिष्ठित की, और मन्दिर में नित्य ही घण्टे गूंजने लगे..
इन्हीं महामाया का सिर वाला भाग रतनपुर में, और धड़ अंबिकापुर में स्थित है.. इसलिए दोनों जगह एक ही बार में दर्शन करने पर, दर्शन पूर्ण माना जाता है.. छिन्नमस्तिका देवी का स्मरण करातीं हैं मां यहां..
छिन्नमस्ता हों या पूर्ण शरीरा.. मां तो कल्याणी रूप में ही जानी जायेंगी.. रायपुर, रतनपुर और अम्बिकापुर में जगमग हजारों मनोकामना कलश, भक्तों की आस और विश्वास दोनों ही प्रकाशित करेंगे..मां के चरणों में आस्था के ये दीप सदैव प्रखर हों.. विश्वास पुंज और दृढ़ता से दीप्त हों.. नवरात्र पर यही मंगलकामनाएं
बोल सांचे दरबार की जय
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