कुम्हला गए कुम्हार, न मिट्टी की लागत निकली और न पसीने का दाम मिला

रायपुर. गर्मी के मौसम में कुम्हारों का कारोबार पीक पर होता है, लेकिन बीते वर्ष लॉकडाउन लगने से उनका व्यापार चौपट रहा है। इस साल भी वही स्थिति है। कुम्हारों की वर्तमान परिस्थिति पिछले वर्ष जैसी हो गई है। मिट्टी के घड़े नहीं बिकने से उन्हें खासा नुकसान हुआ है। कुम्हारों का कहना है, इस साल बाहरी कुम्हार मटके बेचने नहीं पहुंचे, जिसका मार्च महीने में लाभ मिला,लेकिन लॉकडाउन लगने से बिक्री बिल्कुल कम हो गई। आमापारा के कुम्हार हेमंत साहू का कहना है, पिछले साल हुए नुकसान के बाद इस साल केवल 1200 मटके तैयार किए थे। उनमें अभी तक केवल 350 से कुछ अधिक ही बिके हैं।
उनका कहना है, अप्रैल-मई में मटके की बिक्री से मेहनताना मिल जाता था, लेकिन अभी तक खरीदी हुई मिट्टी की लागत भी नहीं निकल सकी है। इस नुकसान की भरपाई करने में सालभर लग जाता है। आने वाले साल में मटके महंगे दाम पर मिल सकते हैं।
कम हो जाती है क्षमता
पिछले साल नुकसान होने से इस बार अधिकतर कुम्हार मांग के अनुसार मटका तैयार कर बाजार में बेचने पहुंचते हैं। कालीबाड़ी के कुम्हार वीरेंद्र कनौजे का कहना हैं, मटके के सीजन में बिक्री प्रभावित होने से आगे व्यापार करना मुश्किल होगा। मार्च माह से अभी तक केवल 40 प्रतिशत मटके बिके हैं। लगभग 400 से अधिक अलग-अलग प्रकार मटके बचे हैं। अगर ये अभी नहीं बिके तो लगभग 30 हजार का नुकसान होगा और इसे आने वाली गर्मी में नहीं बेच सकते, क्योंकि साल भर हर मटके की पियाऊ क्षमता कम हो जाती है। उनका कहना है, नुकसान से बचने इस बार कच्चे मटके तैयार किए थे, जिसे केवल आग में पकाना बाकी रह गया है। ऐसा करने से वे नुकसान से काफी बच गए।
लॉकडाउन से बढ़ा संकट
इस लॉकडाउन में कुम्हारों को पिछले वर्ष जितना नुकसान बताया जा रहा हैं। मटके नहीं बिकने से आगे व्यापार करने का संकट बढ़ गया है। कुम्हारों का कहना हैं, इस सीजन में भी कुम्हारों को मटके बनाने के मूल पैसे भी नहीं मिल पाए हैं। लगभग हर कुम्हार को 20 से 30 हजार का नुकसान लॉकडाउन लगने से हुआ है। कुम्हारों ने मार्च महीने में बिक्री बढ़ने से मटके बनाने की संख्या बढ़ा दी थी, लेकिन कोरोना के प्रकोप के चलते लॉकडाउन लगने से नए मटके पड़े रह गए। उनका कहना है, पिछले साल हुए नुकसान की भरपाई भी नहीं हो सकी थी, अब इस लॉकडाउन से हुए नुकसान के कारण कर्ज और भी बढ़ जाएगा। नुकसान से बचने अब कुम्हार दूसरों से मटके खरीदकर बाजार में बेच रहे हैं।
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