इस गांव में कोई युवा नहीं : यहां क्यों केवल महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग ही रहते हैं... आइए जानते हैं...

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर का आखिरी गांव चांदामेटा एक ऐसा गांव है यहां कोई युवा ही नहीं रहता है। यहां केवल महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग ही रहते हैं। चांदामेटा के लोगों ने कभी सरकार या उनके अफसरों को भी नहीं देखा है। गाँव में विकास कार्य बिल्कुल शून्य हैं। ना रोजगार के साधन हैं, ना ही स्कूल हैं, ना आंगनबाड़ी, ना ही अस्पताल है और तो और गाँव के ग्रामीणों का आज तक आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी नहीं बना है। गांव तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं थी, जिसे जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने 1 माह में 8 किलोमीटर की खड़ी पहाड़ी को काटकर सड़क बना दिया। इसके बाद अब गाँव तक अधिकारीयों की टीम पहुंची। अधिकारियों को देख ग्रामीण अचरज में रह गए। इस इलाके को माओवादियों की राजधानी भी कहा जाता है, लेकिन आज सरकार को अपने नजदीक देख ग्रामीणों ने मांगों का पिटारा खोल दिया।
दरअसल आदिवासी बाहुल्य बस्तर जो वन संपदा और घने जंगलों के लिए जाना जाता है। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा राज्य से लगा कोलेंग क्षेत्र का अंतिम गाँव चांदामेटा के लोगों ने कभी सरकार के मंत्रियों को और ना ही विधायक को देखा था। यहां तक कि किसी अफसर को भी नहीं देखा था, बस देखा तो केवल हथियारों से लैस माओवादियों को। इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं थी। कोलेंग से 8 किलोमीटर खड़ी पहाड़ियों के बाद बसा गाँव चांदामेटा जो भी आता वो कोलेंग तक ही आता और वापस चला जाता। लेकिन जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने 1 माह में 8 किलोमीटर की खड़ी पहाड़ी को काटकर सड़क बना दिया। इसके बाद अब गाँव तक अधिकारीयों की टीम पहुंची।
गाँव में नहीं रहते कोई युवा, केवल महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग
माओवादियों के डर से इस गाँव के कई लोग बाहर चले गए हैं। इस गाँव में कोई युवा भी नहीं रहते हैं, केवल बुजुर्ग, महिला और बच्चे हैं। वहीं गांव के एक युवक ने बताया कि आज वो 7 साल बाद गांव आया है। उसने कहा कि सरकार अब गाँव तक पहुंच गई है, अब गांव का विकास होगा।
विकास कार्य शून्य, आधार-वोटर कार्ड भी नहीं
ग्रामीणों ने बताया कि माओवादियों के गढ़ चांदामेटा तुलसिडोगरी इलाके में ना रोजगार के साधन हैं, ना ही स्कूल हैं, ना आंगनबाड़ी, ना ही अस्पताल है और तो और गाँव के ग्रामीणों का आज तक आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी नहीं बना है। कुछ लोगों का राशन कार्ड तो है पर उन्हें भी पहाड़ से 8 किलोमीटर उतर कर कोलेंग पंचायत तक आना पड़ता है। साथ ही अगर कोई बीमार हो जाए तो झाड़ फूंक या कावड़ में लेकर दरभा तक सफर करना पड़ता है।
झरिया का पानी पीते हैं ग्रामीण
गाँव की समस्या इतनी गंभीर है कि ग्रामीणों को पानी भी झरिया का पीना पड़ता है। वहीं माओवादियों के चलते अब तक चांदामेटा तक कोई पहुंच ही नहीं पाया था, लेकिन नक्सल गढ़ में पहली बार प्रशासन के पहुँचने से ग्रामीणों ने मांगों का पिटारा खोल दिया। इस पर जिला कलेक्टर ने एक सप्ताह के अंदर सभी कार्य पूरा करने का आश्वासन दिया है। कलेक्टर ने इस संबंध में संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। देखिए वीडियो-
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