सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में शाम को दो घंटे की ओपीडी अनिवार्य, पालन नहीं करने वाले चिकित्सकीय स्टाफ पर होगी कार्रवाई

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में शाम को दो घंटे की ओपीडी अनिवार्य, पालन नहीं करने वाले चिकित्सकीय स्टाफ पर होगी कार्रवाई
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जिला अस्पताल समेत प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में शाम को दो घंटे की ओपीडी अनिवार्य है और इसका पालन नहीं करने वाले चिकित्सकीय स्टाफ पर कार्रवाई होगी।

रायपुर। जिला अस्पताल समेत प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में शाम को दो घंटे की ओपीडी अनिवार्य है और इसका पालन नहीं करने वाले चिकित्सकीय स्टाफ पर कार्रवाई होगी। इमरजेंसी को छोड़कर ज्यादातर संस्थानों के खाली होने की शिकायत पर अनिवार्य उपस्थिति का आदेश जारी किया गया है।

स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों द्वारा बनाए गए नियम के मुताबिक जिला अस्पताल, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तथा नवंबर से फरवरी में शाम चार से छह तथा मार्च से अक्टूबर तक शाम पांच से सात बजे ओपीडी अनिवार्य है। वर्तमान में इस आदेश का पालन कहीं नहीं हो रहा है, जिला अस्पताल समेत सभी स्वास्थ्य केंद्र केवल सुबह की ओपीडी पर फोकस कर रहे हैं। शाम होने के बाद सामान्य बीमारी की जांच अथवा इलाज के लिए आने वाले मरीजों को निराश होना पड़ता है।

यहां केवल इमरजेंसी व्यवस्था रहती है। इस तरह की शिकायतों को देखते ड्युटी रोस्टर के अनुसार सभी चिकित्सकीय स्टाफ की शाम की ओपीडी और इमरजेंसी में उपस्थिति को अनिवार्य किया गया है। सिविल सर्जन, ब्लाक मेडिकल ऑफिसर तथा स्वास्थ्य केंद्रों के चिकित्सा अधिकारी को नोटिस जारी कर इसका पालन का निर्देश दिया गया है।ऐसा नहीं करने वाले स्टाफ पर नियमानुसार कार्रवाई करने का आदेश भी जारी किया गया है।

कामगारों को लाभ

जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल समेत स्वास्थ्य केद्रों में शाम को ओपीडी का संचालन करने का मकसद मजदूर वर्ग काम खत्म होने के बाद उपचार की सुविधा उपलब्ध कराना था। इस योजना की शुरुआत जनवरी 2020 में प्रदेशभर में की गई थी मगर कुछ समय बाद कोरोना आने की वजह से मामला ठंडे बस्ते में चला गया था।

मेडिकल कालेज अस्पताल में आठ घंटे

मेडिकल कालेज से संबंधित अस्पताल में कुछ समय पहले आठ घंटे की ओपीडी संचालित किए जाने की योजना बनाई गई थी। स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव द्वारा इस संबंध में व्यवस्था बनाने निर्देश जारी किया गया था। डाक्टरों द्वारा इसे व्यवहारिक नहीं मानते हुए विरोध किया गया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

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