Organ Donation: जीवित थे तो महादान पर करते थे चर्चा, ब्रेनडेड हुए तो परिवार वालों ने अंगदान कर पूरी की इच्छा

रायपुर। जीवित रहने के दौरान अंगदान को महादान मानते हुए इस पर चर्चा करने वाले 52 वर्षीय राधेश्याम करपाल ब्रेनडेड हुए, तो परिवार वालों ने उनका अंगदान कर इच्छा छा पूरी कर दी। निजी अस्पताल में ब्रेनडेड घोषित होने पर उनकी किडनी-लिवर दो जरूरतमंद मरीजों को प्रत्यारोपित कर दिया गया। वहीं आंखें, त्वचा तथा हार्ट से संबंधित टिशू सुरक्षित कर लिए गए। जानकारी के मुताबिक कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर में रहने वाले राधेश्याम को 17 दिसंबर को ब्रेन हेमरेज की शिकायत होने पर इलाज के लिए रामकृष्ण हास्पिटल लाया गया था। हालत काफी गंभीर होने की वजह से काफी इलाज के बाद भी वे स्वस्थ नहीं हो पाए और 18 दिसंबर को चिकित्सकों की विशेष टीम ने उन्हें ब्रेनडेड घोषित कर दिया।
अस्पताल की चिकित्सकीय टीम ने उनके परिवार वालों को अंगदान की महत्ता के बारे में बताते हुए अंगों का दान करने के लिए प्रेरित किया तो वे तैयार हो गए। परिवारवालों ने चिकित्सकीय टीम को बताया कि राधेश्याम अक्सर अंगदान को महादान मानते हुए इस पर चर्चा करते थे। उनकी इच्छा को समझते हुए बेटे जयेश तथा देव ऋषभ करपाल ने उनका अंगदान दूसरे मरीजों को प्रत्यारोपित करने सहमति दे दी। राधेश्याम की एक किडनी सिस्ट की वजह से उपयोग के लायक नहीं थी, दूसरी किडनी एम्स के मरीज से मैच हुई। वहीं लिवर रामकृष्ण अस्पताल में भर्ती एक मरीज के शरीर से मेल खाया। दोनों का प्रत्यारोपण कर दिया गया। राधेश्याम की दोनों कार्निया मेडिकल कालेज रायपुर, त्वचा डीके अस्पताल तथा हार्ट के होमोग्राफ्ट सत्य साई संजीवनी हास्पिटल में सुरक्षित रखवा दिए गए।
हार्ट का नहीं मिला जरूरतमंद
राधेश्याम के ब्रेनडेड होने के बाद हार्ट की उपलब्धता की जानकारी रोटो और नोटो के माध्यम से विभिन्न राज्यों के अस्पतालों को प्रेषित की गई थी, मार बिरात समय तक किसी तरह का रिस्पांस नही मिल पाया। इसके लिए उससे संबंधित उतकों को सुरक्षित रख लिया गया। राधेश्याम करपाल के अंगदान करने के बाद राज्य में इस तरह के महादान के छह प्रकरण हो चुके हैं। इसके पहले दीपावली के दौरान एक हीमोफीलिया बीमारी से पीड़ित होने के बाद बेनडेड तुर मरीज वे अपना अंगदान किया था। ।। राज्य में अंग प्रत्यारोपण की की स सुविधा एम्स के साथ राज्य के करीब दस विजी अस्पतालों में मौजूद है। अभी तक इस प्रक्रिया को तीन निजी अस्पतालों और एम्स में पूरा किया जा चुका है।
अंग प्रत्यारोपित
बेनडेड मरीज के परिवार वालो की सहमति मिलने के बाद किडनी-लिवर का प्रत्यारोपण किया गया। कार्निया तथा हार्ट से संबधित टिशू उपयोग के लिए सुरक्षित रख लिए गए है।
एम्स तक बना ग्रीन कॉरिडोर
एम्स में अपना इलाज करवा रहे। जांजगीर चांपा के 20 वर्षीय युवक को दो वर्ष से किडनी संबंधी दिक्कत थी। एक खल से डायलिसिस चल रही थी। पिछले एक सप्ताह से युवक का गंभीर स्थिति में एक्स में उपचार चल रहा था। परिजन किडनी देने को तैयार थे, परंतु मैच न हो पाने की वजह से प्रत्यारोपण संभव नहीं हो पा रहा था। निजी अस्पताल के ब्रेनडेड मरीज की किडनी को डीन कॉरीडोर बनाकर एम्स लाकर मरीज को प्रत्यारोपित किया गया। किडनी ट्रांसप्लांट में असिस्टेंट नर्सिंग ऑफिसर विशोक, विनीता और अंबे का योगदान रहा। किडनी प्रत्यारोपण में यूरोलॉजी विभाठा के डॉ. अमित शर्मा, डॉ. सत्यदेव शर्मा, डॉ.दीपक बिस्वाल, नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. विनय राठौड़, डॉ. रोहित और एनेस्थिसिया विन्नाम के डॉ. सुचत सिंघा और डॉ. महेंद्र शामिल थे।
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