सिलगेर मामले में PCC चीफ ने जोड़ा नक्सल एंगल : कहा- 'अंदर वालों' के भय से ग्रामीण नहीं ले रहे मुआवजा

दंतेवाड़ा। पुलिस की गोलीबारी में बस्तर के सिलगेर गांव में मारे गए आदिवासियों को लेकर राज्य सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी दल भाजपा पूछ रही है कि सिलगेर में मारे गए आदिवासियों के परिजनों को मुआवजा क्यों नहीं दिया जा रहा है। अब इसमें PCC चीफ मोहन मरकाम ने नक्सली एंगल जोड़ दिया है। मरकाम ने कहा है कि राज्य सरकार मुआवजा देने को तैयार है। 'अंदर वालों' (नक्सलियों) के दबाव में पीड़ित परिवार ही मुआवजा नहीं लेना चाहते। पदयात्रा करते हुए सोमवार को कोंडागांव से दंतेवाड़ा पहुंचे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि, सिलगेर मामले को लेकर राज्य सरकार संवेदनशील है। ऐसा पहली बार हुआ है कि घटना के बाद सत्ताधारी दल के सांसद के नेतृत्व में 8 विधायक पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे। स्थानीय सांसद की अगुवाई वाली टीम ने सिलगेर पहुंचकर पीड़ित परिवारों से बात की है। इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है। सरकार हर स्तर पर उन्हें सहायता पहुंचाने की कोशिश कर रही है। मरकाम ने कहा, सांसद दीपक बैज ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें सारी बातें हैं। मुआवजे की भी बात है। पहले पीड़ितों के परिजन तैयार तो हो जाएं। मरकाम ने कहा, उनको मुआवजा मिलेगा आप इंतजार कीजिए। राज्य सरकार बस्तर के साथ-साथ पूरे छत्तीसगढ़ के सभी वर्गों के प्रति जवाबदेही समझती है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी कहा था, सरकार मुआवजा देने को तैयार है। उन्होंने खुद पीड़ित परिवारों से बात की है। वे लोग मुआवजा अथवा सरकारी नौकरी लेने को तैयार नहीं हैं।
लखीमपुर में 50-50 लाख मुआवजा के बाद उठे सवाल
CM भूपेश बघेल ने यूपी के लखीमपुर खीरी में मारे गए चार किसानों और एक पत्रकार के परिजनों को 50-50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता की घोषणा की थी। उसके बाद से राज्य में विपक्ष इस पर सवाल उठा रहा है। कहा जा रहा है, बस्तर के सिलगेर में भी 4 किसानों को गोली मार दी गई। सरकार ने उन्हें अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया है। कांग्रेस पर चुनावी राजनीति के लिए उत्तर प्रदेश के किसानों को मुआवजा देने और सिलगेर के पीड़ितों की उपेक्षा का भी आरोप लग रहा है।
क्या हुआ था सिलगेर में
बसतर में नक्सलियों के खिलाफ अभियान में जुटे सुरक्षा बल सिलगेर गांव में एक कैंप बना रहे थे। ग्रामीणों ने इस कैंप का विरोध किया। ग्रामीणों का तर्क था कि सुरक्षा बलों ने कैंप के नाम पर उनके खेतों पर जबरन कब्जा कर लिया है। ऐसे ही एक प्रदर्शन के दौरान 17 मई को सुरक्षाबलों ने गोली चला दी। इसमें तीन ग्रामीणों की मौत हो गई। भगदड़ में घायल एक गर्भवती महिला की कुछ दिनों बाद मौत हो गई। पुलिस का कहना था कि ग्रामीणों की आड़ में नक्सलियों ने कैंप पर हमला किया था। जिसकी वजह से यह घटना हुई। ग्रामीणों ने पुलिस पर आरोप लगाया। वहां लंबा आंदोलन चला। कुछ दिनों की शांति के बाद वहां फिर से आंदोलन शुरू हो गया है।
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