पहली बार पल-पल बिजली गुल, राजधानी में मुस्तैद और तकनीकी जानकारों की भारी कमी

पहली बार पल-पल बिजली गुल, राजधानी में मुस्तैद और तकनीकी जानकारों की भारी कमी
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राजधानी रायपुर में बिजली व्यवस्था का भारी बुरा हाल है। कभी भी किसी भी इलाके में पल-पल में बिजली गुल हो जाती है। एक बार बिजली जाने का मतलब है कि घंटों फुर्सत। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि राजधानी में अब पहले की तरह मुस्तैद और तकनीकी जानकारों की भारी कमी है। इसके अलावा बिजली विभाग के पास अपना अमला भी कम है ज्यादातर काम ठेके के भरोसे चल रहा है।

राजधानी रायपुर में बिजली व्यवस्था का भारी बुरा हाल है। कभी भी किसी भी इलाके में पल-पल में बिजली गुल हो जाती है। एक बार बिजली जाने का मतलब है कि घंटों फुर्सत। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि राजधानी में अब पहले की तरह मुस्तैद और तकनीकी जानकारों की भारी कमी है। इसके अलावा बिजली विभाग के पास अपना अमला भी कम है ज्यादातर काम ठेके के भरोसे चल रहा है। नई लाइनों में लगाए गए सामानों के बारे में यह कहा जाता है इसमें स्तरीय सामान नहीं लगे हैं। जेई और एई भी रायपुर के स्थान पर दूसरे जिलों के ज्यादा हैं। एक और बड़ी बात यह कि कोरोनाकाल में मेंटेनेंस का काम सही तरीके से नहीं हो सका है।

राजधानी रायपुर में एक समय ऐसा था, जब यहां पर किसी भी इलाके में बहुत कम बिजली गुल होती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उस समय का जो स्टॉफ था वह तकनीकी जानकारी में महारथ रखता था। यही नहीं पहले तो लगातार 365 दिनों तक मेंटेनेंस का काम चलता था। यही नहीं खराबी आने से पहले यह भी पता लगाने का काम होता था कि कहीं खराबी आने वाली तो नहीं है। इसके लिए बकायदा सर्वे कराया जाता था। लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं होता है।

जानकारों का टोटा

रायपुर में राजधानी होने के कारण यहां का जो स्टॉफ रहता था वह तकनीकी जानकारी में उस्ताद होता था। जिन इलाके में जो तकनीकी स्टॉफ रहता था, उसको उस इलाके का पूरा ज्ञान रहता था। कहीं खराबी आने पर उनको समझ आ जाता था कि वहां पर खराबी का कारण क्या हो सकता है। ऐसे में खराबी होने पर उसको बनाने में ज्यादा समय भी नहीं लगता था लेकिन आज तो काम ही ठेके पर चल रहा है। ठेके में जिनसे काम लिया जाता है उनको न तो किसी इलाके का ज्ञान है न ही उनको तकनीकी जानकारी है। अमला भी लाठी टेक है। खराबी होने पर उसको ढूंढने में घंटों लग जाते हैं।

जेई-एई बाहर के

पॉवर कंपनी के पुराने जानकारों की मानें तो पहले राजधानी रायपुर में जेई और एई लंबे समय तक एक ही डिवीजन और एक ही डीसीू सेंटर में रखे जाते हैं। इसी के साथ ये अधिकारी मैदानी स्तर पर भी जाकर काम करते थे। इनको अपने क्षेत्र का पूरा ज्ञान रहता था। लेकिन आज स्थिति ऐसी है कि दूसरे जिलों के जेई और एई को यहां लाकर बिठा दिया गया है। इनको न तो रायपुर के बारे में कुछ पता न है न ही अपने उस सेंटर के बारे में जानते हैं जहां पर उनको तैनात किया गया है। इसके अलावा एक और सबसे बड़ी बात यह है कि आज कल के ज्यादातर जेई भी स्पॉट पर नहीं जाते हैं और फोन और वाट्सऐप पर ही आदेश दे देते हैं।

स्तरहीन सामान

जानकारों की मानें तो आज जो भी नई लाइनें, ट्रांसफार्मर लगे हैं उनकी क्वालिटी ठीक नहीं है। ऐसे में ये जल्द खराब हो जाते हैं। पहले सामानों की क्वालिटी पर ध्यान दिया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। स्तरहीन सामान होने के कारण लगातार एक ही क्षेत्र में बार-बार खराबी आती है। राजधानी में पहले कभी ऐसा नहीं होता था लेकिन अब तो रोज कई इलाकों में पल-पल बिजली गुल हो जाती है।

गैंग भी नहीं जाते दूसरे इलाके में

रायपुर में पहले जब किसी इलाके में ज्यादा खराबी हो जाती थी तो दूसरे इलाके के गैंग को भी वहां मदद करने केे लिए भेजा जाता था लेकिन अब तो सारा काम ठेके पर चलता है ऐसे में एक इलाके का ठेकेदार अपने कर्मचारियों को दूसरे इलाके में भेजता नहीं है। पहले ज्यादातर स्टॉफ बिजली विभाग का रहता था तो किसी भी गैंग को कहीं भी भेज दिया जाता था। ऐसा होने से काम जल्दी हो जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता है।


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