अप्रैल तक राशन बांटकर छात्रों को खाना देना भूला विभाग, आपदा में इस बार नहीं राहत

अप्रैल तक राशन बांटकर छात्रों को खाना देना भूला विभाग, आपदा में इस बार नहीं राहत
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लोक शिक्षण संचालनालय अप्रैल तक का राशन बांटकर अब खाना देना भूल गया है। प्रत्येक वर्ष 1 मई से 15 जून की अवधि में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान छात्रों को राशन नहीं दिया जाता लेकिन आपदा के दौरान छात्रों को इस अवधि में भी अपवाद स्वरूप राशन दिया जाता रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आए सूखा के दौरान छात्रों को गर्मी की छुट्टियों में भी मध्यान्ह भोजन परोसा गया था।

लोक शिक्षण संचालनालय अप्रैल तक का राशन बांटकर अब खाना देना भूल गया है। प्रत्येक वर्ष 1 मई से 15 जून की अवधि में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान छात्रों को राशन नहीं दिया जाता लेकिन आपदा के दौरान छात्रों को इस अवधि में भी अपवाद स्वरूप राशन दिया जाता रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आए सूखा के दौरान छात्रों को गर्मी की छुट्टियों में भी मध्यान्ह भोजन परोसा गया था। बीते वर्ष भी कोरोना को आपदा मानकर छात्रों को सूखा राशन दिया गया था। इस वर्ष छात्रों को अप्रैल तक का ही सूखा राशन दिया गया है।

इस वर्ष अब तक ऐसा कोई आदेश नहीं निकाला गया है और ना ही ऐसी कोई घोषणा ही की गई है। 16 जून से नए सत्र की शुरुआत हो चुकी है। छुट्टियों के इतर नए सत्र में भी मध्यान्ह भोजन या सूखा राशन की कोई व्यवस्था अब तक नहीं की गई है। गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए पिछले साल छात्रों को मध्यान्ह भोजन की जगह सूखा राशन देने का फैसला लिया गया था। इसके अंतर्गत छात्रों को तीन माह का सूखा राशन एक साथ प्रदान किया जा रहा है।

65 लाख छात्रों को इंतजार

सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों को मध्यान्ह भोजन बांटा जाता है। रायपुर जिले में 1 लाख 70 हजार तथा पूरे प्रदेश में लगभग 65 लाख छात्रों को इस योजना का लाभ मिलता है। राजधानी में छात्रों के मध्यान्ह भोजन के लिए 2 करोड़ की राशि प्रतिमाह खर्च की जाती है। पूरे प्रदेश में लगभग 76 करोड़ रुपए की राशि हर माह मध्यान्ह भोजन के लिए दी जाती है। कोरोना के कारण पालकों का व्यवसाय कई तरह से प्रभावित हुआ है। प्रदेश के 65 लाख छात्र को सूखे राशन का इंतजार है।

महंगाई ने बढ़ाया खर्च

सूखा राशन के अंतर्गत सभी छात्रों को प्रदान किए जाने दाल, चावल, सोयाबीन बड़ी, अचार सहित अन्य चीजों की मात्रा निर्धारित कर दी गई है। सूखा राशन लेने के लिए सभी छात्र विद्यालय पहुंचते हैं जबकि स्कूलों में मध्यान्ह भोजन बनाए जाने के दौरान अनुपस्थित छात्रों के भोजन का खर्च बच जाता है। प्रतिदिन कुछ संख्या में छात्र अनुपस्थित रहते ही हैं अथवा कुछ छात्र अपेक्षाकृत कम मात्रा में भोजन करते हैं। इसीलिए मध्यान्ह भोजन बनाने वाली समितियां 90 फीसदी बच्चों का अनुमान लेकर खाना तैयार करती हैं। इससे कुछ राशि बच जाती है। इसके अलावा बीते कुछ दिनों में बढ़ी महंगाई ने भी सूखे राशन का खर्च बढ़ा दिया है। इन दो वजहों से भी छात्रों काे भोजन देना महंगा हो रहा है।


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