आरक्षण पर घमासान : अब राज्यपाल ने CM बघेल को लिखी चिट्ठी, अब तक की कार्रवाई को लेकर मांगी जानकारी, विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की कही बात....

रायपुर। छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे को लेकर अब भी सियासत गरमाई हुई है। इस बीच राज्यपाल ने सीएम भूपेश बघेल को चिट्ठी लिख कर अब तक की कार्रवाई को लेकर जानकारी मांगी है। साथी ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर, विधेयक पारित कराने का उल्लेख किया है। इस चिट्ठी को लेकर भी अब सियासती माहौल में हलचल शुरू हो गई है।
दरअसल प्रदेश में चल रहे आरक्षण के मुद्दे पर राज्यपाल अनुसुइया उइके ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चिट्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने शासन द्वारा अब तक, की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी है। इस चिट्ठी में राज्यपाल महोदया ने विधानसभा का विशेष सत्र आहूत कर, विधेयक पारित कराने का उल्लेख भी किया है।वहीं, इस अध्यादेश के माध्यम से राज्यपाल ने समस्या के समाधान की बात भी कही है। राज्यपाल ने इस चिट्ठी के मध्यम से राजभवन द्वारा सहयोग करने का भरोसा भी दिलाया है। इस मामले में आदिवासी समाज के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात की थी।
आदिवासियों को आरक्षण दिला कर रहेंगे : केदार गुप्ता
राज्यपाल द्वारा सीएम को चिट्ठी लिखें जाने के मामले में भाजपा प्रदेश प्रवक्ता केदार गुप्ता का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि हम आदिवासियों के प्रति कृत संकल्पित हैं। उन्हें आरक्षण दिला कर रहेंगे। हमने एक महीना पहले राज्यपाल से मुलाकात कर, उन्हें ज्ञापन सौंपा था कि आरक्षण के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना चाहिए। संविधान में स्पष्ट है कि यदि हाईकोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को निरस्त कर दिया है, तो इसे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर ही लागू किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी वर्ग इस सरकार से नाराज है और सरकार को जवाब देने के लिए भी तैयार है। इसके लिए आदिवासियों ने राज्योत्सव का बहिष्कार भी किया है।
जरुरत पड़ने पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाएंगे : कांग्रेस
वहीं, भाजपा के आरोपों पर कांग्रेस ने भी पलटवार किया है। कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने अपने बयान में कहा कि हमारी सरकार आदिवासियों के आरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक गई है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर विधानसभा का विशेष सत्र आहूत किया जाएगा। भाजपा को इस मामले में राजनीति करने का कोई हक नहीं है। तत्कालीन भाजपा सरकार की लापरवाही के चलते ही यह स्थिति निर्मित हुई है।
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