Rudreshwar Mahadev Temple : स्वयंभू रूद्रेश्वर महादेव की पूजा कर आगे बढ़े थे भगवान राम !

धमतरी। छत्तीसगढ़ में कई प्रमुख शिवालय हैं, इनमें से एक रुद्री का रूद्रेश्वर महादेव मंदिर(Rudreshwar Mahadev Temple )है। इस मंदिर (Temple)का इतिहास हजारों साल पुराना है। मंदिर पुजारी राजकुमार निषाद ने बताया कि,भगवान राम, माता सीता, भाई लक्ष्मण ने यहां महादेव की पूजा की थी। मंदिर का निर्माण कांकेर (kanker )के राजा ने करवाई थी। महानदी (Mahanadi )के तट पर स्थित रुद्रेश्वर महादेव पर छत्तीसगढ़ के साथ-साथ कई अन्य प्रदेश के श्रद्धालुओं की आस्था है। यहां शिवलिंग स्वयंभू है। दिल्ली से राम वन गमन पथ (Ram Van Gaman Path from Delhi)का सर्वे में इस मंदिर को विशेष महत्व दिया गया है।
मंदिर देखरेख कर रहे विनोद जाधव ने बताया कि, त्रेता युग में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के दौरान यहां भोलेनाथ की पूजा की थी, विश्राम भी किया था। सालों से उनके पूर्वज मंदिर की देखरेख कर रहे हैं। सावन में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर पूजा- अर्चना करते हैं। सावन महीने में यहा अखंड रामायण पाठ होता है। सावन के प्रत्येक सोमवार यहीं से कांवर यात्रा निकलती है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु महानदी से जल लेकर पहले रुद्रेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं। उसके बाद कांवर यात्रा आगे बढ़ती है।
ऐसे बना था मंदिर
जानकारी के अनुसार ,धमतरी (Dhamtari)पहले बस्तर(Bastar)का हिस्सा हुआ करता था। कांकेर (kanker )के राजा शिकार करने के लिए रुद्री तट पर पहुंचे थे। उनकी नजर स्वयंभू रुद्रेश्वर महादेव (Swayambhu Rudreshwar Mahadev)पर पड़ी तो उन्होंने स्वयं उपस्थित होकर मंदिर का निर्माण करवाया। बाद में मंदिर जर्जर होने पर कई अन्य श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर का निर्माण किया गया। पूर्व मंत्री कृपाराम साहू के कार्यकाल में मंदिर बरामदा और द्वार बनाया गया। मंदिर का गर्भगृह सबसे पुराने मंदिर का गवाह है, जिसे कांकेर के राजा ने बनवाया था।
हर रोज होता है श्रृंगार
रूद्रेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं ने एक समिति बनाई हुई है। यह समिति रोजाना सुबह-शाम महादेव का विशेष श्रृंगार करती है। श्रृंगार भी हर रोज अलग-अलग प्रकार से किया जाता है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रृंगार का वीडियो और फोटो वाट्सअप ग्रुप में भेजा भी जाता है।
पुरा महत्व की चीजें बयां करती हैं इतिहास
मंदिर के इतिहास के बारे में लोगों को ज्यादा नहीं मालूम, लेकिन यहां बिखरी पड़ी पुरातत्व महत्व की चीजे इस मंदिर के हजारों साल पुराने इतिहास की गवाही दे रहे हैं। मंदिर के भीतर ही भगवान विष्णु की शेषशैया पर विश्राम करते काले पत्थर की प्रतिमा है। मंदिर के बाहर पेड़ के नीचे खंडित अवस्था में भगवान विष्णु की शंख, चक्र के साथ प्रतिमा रखी है। एक प्रतिमा सालों से पेड़ नीचे पड़ा हुआ है, जिसे पेड़ ने अपने तने में समेट लिया है। मंदिर के सामने चबूतरे में कई शिवलिंग एक लाइन में स्थापित हैं। ये शिवलिंग हजारों साल पुराने हैं।
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