Sahastrabahu jayanti: कलार समाज के लोगों ने धूमधाम से मनाई भगवान कार्तवीर्य-अर्जुन जयंती

कुलजोत संधु-कोंडागांव। छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के ग्राम जुगानी कलार में आज कलार समाज ने सहस्त्रबाहु अर्जुन की जयंती का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया। सबसे पहले सहस्त्रबाहु अर्जुन के छाया चित्र पर विधि विधान से पूजा अर्चना की गई इसके बाद कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
बता दें कि, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सहस्त्रबाहु अर्जुन की जयंती मनाई जाती है। वहीं आज फरसगांव में कलार समाज के लोगों ने विधिवत पूजा-अर्चना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके बाद मुख्य अतिथि कलार समाज संभागीय अध्यक्ष दिनेश पोया, संरक्षक अमर सिंह कश्यप और अन्य समाज के लोगों ने सहस्त्रबाहु अर्जुन के जीवनी के बारे में बताया। इस कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रनिधि, गांयता, पुजारी, कलार समाज के पदाधिकारी,बुजुर्ग, महिला युवा जन मौजूद रहे।
जानिए कौन हैं महाराज सहस्त्रबाहु अर्जुन
महाराज सहस्रबाहु का जन्म हैहय वंश की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। उनका जन्म नाम एकवीर था। चन्द्रवंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। कहते हैं कि समराट सहस्रबाहु अर्जुन का धरती के संपूर्ण द्वीपों पर राज था। मत्स्य पुराण में इसका उल्लेख भी मिलता है। उन्होंने भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय को प्रसन्न किया और एक हजार हाथों का वरदान प्राप्त किया और चक्रवर्ती समराट की उपाधि प्राप्त कर ली। वे माहिष्मति के पराक्रमी राजा थे। उन्होंने ही कलार, कलाल और कलवार समाज की स्थापना की थी।
कलार समाज के संस्थापक हैं महाराज कार्तवीर्य अर्जुन
महाराज सहस्रबाहु, कार्तवीर्य अर्जुन हैहयाधिपति, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि नामों से भी जाने जाते हैं। कलार समाज के लोग उन्हें भगवान विष्णु का ही एक अवतार मानते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। मध्यप्रदेश में इंदौर के पास महेश्वर नामक स्थान पर सहस्त्रबाहु जी का प्राचीन मंदिर है, जो नर्मदा तट पर बसा है। इस मंदिर के ठीक विपरीत नर्मदा के तट के दूसरे छोर पर नावदा टीला स्थान है जो कि प्राचीन अवशेष के रूप में विख्या त है।
उन्होंने कई युद्ध लड़े। एक बार तो रावण से भी उनका युद्ध हुआ था। इस युद्ध में उन्होंने रावण को परास्त किया था। वहीं जब महाराज सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय बिना उनकी अनुमति के ले ली थी। तो ऋषि पुत्र परशुराम जी ने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन की भुजाएं कट गई और वह मारे गए। तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि का वध कर दिया। इसके बाद क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।
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