सावन का पहला सोमवार आज : यहां पर है 13 वीं शताब्दी का ऐतिहासिक मंदिर, सावन में उमड़ी भक्तों की भीड़

सावन का पहला सोमवार आज : यहां पर है 13 वीं शताब्दी का ऐतिहासिक मंदिर, सावन में उमड़ी भक्तों की भीड़
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भगवान शिव की आराधना के लिए जाना जाता है। भगवान शिव सावन माह में बड़े ही प्रसन्न होते हैं। इसलिए भगवान शिव की पूजा-अर्चना को लेकर जिले के शिवालयों में तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। पढ़िए पूरी खबर...

जेएम तांडी - भिलाई। सावन को रिमझिम बारिश और भगवान शिव की आराधना के लिए जाना जाता है। भगवान शिव सावन माह में बड़े ही प्रसन्न होते हैं। इसलिए भगवान शिव की पूजा-अर्चना को लेकर जिले के शिवालयों में तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, लेकिन भिलाई तीन स्थित देवबलौदा का प्राचीन शिव मंदिर में अद्भुत शिवालय मौजूद है। जो अपने आप में पौराणिक व प्राचीन काल के इतिहास को समेटे हैं। यहां भगवान शिव का भक्तों का मेला पहले सावन सोमवार से लगा रहता है। भिलाई से 10 किलोमीटर स्थित देवबलौदा में इस शिव मंदिर का निर्माण कलचुरी राजाओं ने 13 वीं शताब्दी में कराया।

पत्थरों से उकेरी गई है कला

मंदिर की बनावट काफी भव्य है। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी भी उत्कृष्ट व आश्चर्यजनक है। मंदिर की दीवारों पर पशु, पक्षी, पेड़ पौधे रामायण के किरदारों के साथ-साथ नृत्य संगीत को भी पत्थरों पर उकेरा गया है। मंदिर के बरामदे को बड़े-बड़े पत्थरों के माध्यम से बनाया गया है। वहीं गर्भ गृह में जाने के लिए 6 फीट नीचे सीढ़ियों के माध्यम से नीचे उतरना पड़ता है। राजधानी रायपुर और दुर्ग के बीच भिलाई-तीन, चरोदा रेलवे लाइन के किनारे बसे देवबलौदा गांव में 13 शताब्दी का ऐतिहासिक शिव मंदिर कई रहस्यों को साथ लिए हुए है। यह शिव मंदिर आश्चर्य और रहस्य से भरा है। यहां नवरंग मंडप नागर शैली में बना देवबलौदा का प्राचीन शिव मंदिर अपने आप में खास है। इस मंडप में 10 स्तम्भ हैं, जिनमे शेव द्वारपाल के रूप में विभिन्न आकृतियां उकेरी गई है। इस मंडप का छत भी पत्थरों से बना है।

उज्जैन की तर्ज पर अब महाकाल की भस्म आरती

संतोष दुबे - राजनांदगांव। महाकाल की प्रसिद्ध नगरी उज्जैन की तर्ज पर संस्कारधानी में सिंधोला स्थित महाकाल मंदिर में नियमित रूप से दिन में पांच बार पूजा-अर्चना की जाती है। इस वर्ष दो सावन के आठ सोमवार को शहर के अलग-अलग स्थानों से महाकाल के बाबा चंद्रमौलेश्वर स्वरूप की पालकी बाजे-गाजे एवं भजनों के बीच निकाली जाएगी। शहर के पास स्थित सिंघोला में प्रतिष्ठित डागा परिवार ने महाकाल की नगरी उज्जैन की तर्ज पर अपने पोहा मिल परिसर में 2015 में महाकाल स्वरूप दक्षिणमुखी शिवलिंग की स्थापना की है। लगभग साढ़े चार फीट नर्वदेश्वर भगवान की यह शिवलिंग उज्जैन के दक्षिणमुखी ज्योर्तिलिंग जैसा ही बनाया गया है।

सावन के आठ सोमवार को निकलेगी महाकाल चंद्रमौलेश्वर की सवारी

पांच पहर होती है महाकाल की आरती मंदिर के संस्थापक डागा परिवार के पवन डागा ने बताया कि, सिंघोला महाकाल मंदिर में उज्जैन की तर्ज पर महाकाल की दिन में पांच पहर विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। जिसके तहत सुबह पांच बजे भस्म आरती, साढ़े 9 बजे बाल भोग श्रृंगार आरती, साढ़े 12 बजे भोग आरती, शाम साढ़े 7 बजे संध्या आरती, रात पौने १ बजे शयन आरती की गूंज बनी रहती है। यहां डागा परिवार सहित शहर के महाकाल भक्त बड़ी संख्या में पूजा-अर्चना करने एवं दर्शन करते हैं।चंद्रमौलेश्वर की निकलेगी पालकी महाकाल मंदिर सिंघोला एवं महाकाल सेना के तत्वाधान से विगत तीन वर्षों से उज्जैन की तर्ज पर बाजे-गाजे एवं भजनों के बीच भव्य रूप से बाबा महाकाल के चंद्रमौलेश्वर स्वरूप की पालकी निकाली जा रही है। इस वर्ष दो सावन के आठ सोमवार को शहर के अलग-अलग स्थानों से भगवान चंद्रमौलेश्वर की पालकी भव्यता के साथ निकाली जाएगी। जिसमें बड़ी संख्या में शहरवासी सहित अघोरी के स्वरूप में भी भक्त शामिल होंगे।

1200 साल पुराना शिव मंदिर आज भी दिव्य रूप में

सुरेश रावल - जगदलपुर। संभागीय मुख्यालय से महज 18 किलोमीटर दूर स्थित बस्तर ब्लाक का रियासतकालीन शिव मंदिर 1200 साल पुराना होने के बाद भी दिव्य रूप में है। मंदिर के प्रवेश द्वार के उपर गजलक्ष्मी की अनुपम कलाकृति है। मंदिर की बनावट और कलाकृति से पता चलता है कि दक्षिण कोसल के पांडुवंशी राजाओं का वंश प्रतीक गजलक्ष्मी का होना 7वीं 8वीं शताब्दी |.

दो गर्भगृह वाला इकलौता मंदिर

दंतेवाड़ा जिले का बारसूर मंदिरों और तालाबों का प्राचीन शहर माना जाता है। 11वीं शताब्दी के छिंदक नागवंशी राजाओं ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था, जिसमें 32 खंभों के रूप में जाना जाने वाला बत्तीसा मंदिर शामिल है। यह 32 खंभों के मंडप के साथ दो गर्भगृह वाले अनुठे देवालय के लिए भी प्रसिद्ध है। गर्भगृह में स्थित प्राचीन शिव लिंग तथा उसकी जलहरिया इसे खास बनाती है। शिव लिंग के जलहरियों को चारों दिशाओं में घुमाया जा सकता है। संपूर्ण बस्तर क्षेत्र में एक ही मंडप के नीचे दो शिवालय वाला बत्तीसा मंदिर 32 पाषाण स्तंभों में खड़ा है।


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