स्कूल-कॉलेज अब काम के नहीं, स्कूलों से 25 फीसदी छात्र डमी एडमिशन लेकर कर रहे कोचिंग

रायपुर। कुछ साल पहले तक बारहवीं की पढ़ाई करते हुए छात्र छात्राएं मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे प्रोफेशनल काेर्स की तैयारी करते थे। कालेज की पढ़ाई के साथ-साथ यूपीएससी या पीएससी जैसी परीक्षाओं में जुटते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। छात्रों को स्कूल और कालेज जाना वक्त की बर्बादी लग रहा है। यही वजह है कि केवल डिग्री पाने के लिए डमी एडमिशन लेने का नया चलन शुरू हुआ है। कालेज जाने की बजाय भी छात्र प्राइवेट फार्म भरकर डिग्री ले रहे हैं और कालेज जाने की बजाय वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इसमें कोचिंग सेंटरों की चांदी हो गई है।
हालात यह हैं कि छात्रों को पूरा वक्त कोचिंग सेंटर में पढ़ाने और चुनिंदा स्कूलों में डमी अटेंडेंस लगाने के लिए पूरा रैकेट ही काम करने लगा है। शहर के बड़े स्कूलों ने खुद ही यह स्वीकार किया है कि उनके पास कोचिंग सेंटर संचालकों के लगातार फोन आ रहे हैं और वे छात्रों की डमी अटेंडेंस लगाने की शर्त पर अच्छी-खासी रकम भी देने को तैयार हैं। डमी अटेंडेंस का मामला इतना अधिक बढ़ गया कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तक भी इसकी शिकायत पहुंच गई। सीबीएसई ने इसके लिए जांच कमेटी भी बना दी है। कमेटी ने जांच में पाया है कि छोटे स्कूल डमी एडमिशन दे रहे हैं।
रोड और बलौदाबाजार के स्कूल
सूत्रों के अनुसार, समिति की रिपोर्ट में आरोप सही पाए गए हैं। जिला शिक्षा कार्यालय को इसकी भनक भी नहीं हुई। सीबीएसई स्कूलों के अलावा स्टेट बोर्ड के विद्यालयों में भी डमी अटेंडेंस का खेल चल रहा है। कोरोना संक्रमण के बाद से इस ट्रेंड ने जोर पकड़ लिया है। अम्लेश्वर, विधानसभा और बलौदाबाजार रोड स्थित निजी स्कूलों के खिलाफ भी शिकायत सामने आई है।
ऐसे समझें पूरा खेल
दरअसल पालक 10वीं के बाद से ही छात्रों को कोचिंग में भेजने पर जोर दे रहे हैं। ग्यारहवीं कक्षा से ही छात्रों को नीट, जेईई सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाने वाले कोचिंग सेंटर में भेजा जा रहा है। कोचिंग सेंटर में छात्रों को 4 से 5 घंटे की पढ़ाई करवाई जा रही है। स्कूल के साथ कोचिंग में भी इतने लंबे समय तक पढ़ाई कर पाना छात्रों के लिए संभव नहीं हैं। ऐसे में कोचिंग उन्हें डमी अटेंडेंस की सुविधा दे रहे हैं। अर्थात कोचिंग सेंटर्स ने कुछ निजी स्कूलों से अनुबंध कर लिया है। काेचिंग में पढ़ाई करने वाले छात्र अनुबंध वाले स्कूलों में एडमिशन लेते हैं और स्कूल कोचिंग वाले छात्रों के कक्षा में आए बगैर ही उपस्थिति दर्ज कर देते हैं।
इसके बदले में स्कूलों को छात्रों की सामान्य फीस के साथ ही कुछ अतिरिक्त राशि भी बतौर कमीशन कोचिंग सेंटर देते हैं। इस तरह से छात्र पूरे वक्त कोचिंग में पढ़ाई करता है और स्कूल जाए बगैर ही उसकी उपस्थिति लग जाती है। इसे ही डमी अटेंडेंस कहा जाता है।
कक्षा के वक्त कोचिंग के बाहर सैकड़ों की भीड़
हरिभूमि की टीम ने पाया कि राजधानी के बड़े कोचिंग सेंटर में उस वक्त भी सैकड़ों की संख्या में छात्र मौजूद रहते हैं, जो समय स्कूल संचालन का होता है। स्पष्ट है कि छात्र स्कूल ना जाकर कोचिंग में अध्ययन कर रहे हैं। इसके विपरित जिन स्कूलों पर डमी अटेंडेंस का आरोप लगा है वहां शाला लगने के समय भी सन्नाटा पसरा नजर आया। डमी अटेंडेंस वाले 90 प्रतिशत छात्र विज्ञान और गणित संकाय के हैं। वाणिज्य संकाय के छात्रों में यह ट्रेंड अपेक्षाकृत कम है तो कला संकाय में ना के तुल्य है।
टॉपर बच्चे स्कूल से बाहर
होलीहार्ट्स स्कूल के प्रबंधक आशुतोष सिंह ने बताया, दसवीं के बाद 25 प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। ये हमारे टॉपर छात्र होते हैं। हमारे यहां से टीसी लेकर वे छोटे स्कूलों में विज्ञान या गणित में प्रवेश ले रहे हैं, जहां उन्हें डमी अटेंडेंस की सुविधा मिल सके। हम किसी कोचिंग सेंटर का नाम नहीं लेना चाहते, लेकिन कई बड़े इंस्टिट्यूट ने हमसे भी डमी अटेंडेंस के लिए संपर्क किया था। इसके लिए वे हमें अच्छी-खासी रकम देने को भी तैयार थे। हम शिक्षा से खिलवाड़ नहीं करना चाहते, इसलिए इनकार कर दिया।
इंडस्ट्री बन गई है, गैंग काम कर रहा
ब्राइटन स्कूल के प्रबंधन अभिनव सिंह ने भी यह स्वीकार किया कि डमी अटेंडेंस के लिए बड़ा गैंग काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पास भी कई बार इस तरह के ऑफर आ चुके हैं। कोचिंग की पूरी इंडस्ट्री बन गई है। दसवीं के बाद बच्चे बड़ी संख्या में स्कूल छोड़ रहे हैं। मॉनिटरिंग के लिए कमेटी बनाए जाने की आवश्यकता है।
पता करवाते हैं
डमी अटेंडेंस अथवा सीबीएसई जांच का मामला संज्ञान में नहीं हैं। हम पता करवाते हैं।
शिकायत हुई है
कुछ स्कूलों के खिलाफ डमी अटेंडेंस की शिकायत डमी स्कूल में की गई है। बोर्ड ने जांच टीम भेजी थी। शिकायत सही पाई गई है।
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