कोयला संकट के बीच खदान बंद करने की तैयारी : कोयला चोरी रोकने में नाकामी छुपाने की कोशिश कर रहा है एसईसीएल प्रबंधन

उमेश यादव-कोरबा। कोयला चोरी रोकने में नाकाम एसईसीएल प्रबंधन अब खदान को बंद करने की तैयारी कर रहा है। जी हां कोरबा के छुराकछार अंडरग्राउंड खदान से हर रोज सरेआम करीब 250 टन कोयले की चोरी हो रही है। काले हीरे की लूट रोकने के लिए सीआईएसएफ के साथ ही त्रिपुरा रायफल के सशस्त्र जवानों को तैनात किया गया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है। कोयला चोरी रोकने में नाकाम अफसर अपनी नौकरी बचाने के लिए खदान को बंद करने क़ी योजना बना रहे हैं। अधिकारियों के इस निर्णय से ट्रेड यूनियन आक्रोशित है।
कोरबा जिले की जमीन पर कोयले का अकूत भंडार है। एशिया क़ी सबसे बड़ी कोयला खदान जिले में संचालित है। कोरबा के कोयले से देश के विभिन्न प्रांतों में संचालित उद्योगों की सांसें चल रही हैं। मगर इसका एक पहलू और है- कोरबा जिले में काले हीरे की लूट मची है। ओपन और भूमिगत खदानों से सरेआम कोयले की चोरी हो रही है। विभिन्न खदानों में कोयला चोरी रोकने के लिए सीआईएसफ के जवान पहले से तैनात थे। हालात बिगड़ता देख करोड़ों रुपए खर्च कर त्रिपुरा रायफल को खदान की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया है। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। कोयला चोरी रोकने में नाकाम, लाचार एसईसीएल प्रबंधन अब भूमिगत खदान को बंद करने की योजना बना रहा है।
उल्लेखनीय है कि एसईसीएल कोरबा एरिया के जीएम विश्वनाथ सिंह ने पिछले दिनों ट्रेड यूनियन की बैठक ली। इस दौरान अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए कहा था कि खदानों में हो रही कोयला चोरी रोकने में एसईसीएल प्रबंधन सक्षम नहीं है। बैठक में मौजूद श्रमिक नेता दीपेश मिश्रा के मुताबिक जीएम ने साफ शब्दों में कहा है कि छुरकछार, बल्गी अंडरग्राउंड खदान में हर रोज सैकड़ों टन कोयले की चोरी हो रही है। इस पर रोक लगाने के लिए प्रबंधन के पास कोई रास्ता नहीं है। बेहतर यही है कि भूमिगत खदान को बंद कर दिया जाए।
जीएम के इस कथन ने ट्रेड यूनियन के नेताओं को भी हैरत में डाल दिया। श्रमिक नेताओं ने बैठक में ही कहा कि अगर एसईसीएल प्रबंधन कोयला चोरी रोकने में सक्षम नहीं है तो प्रशासन की मदद ली जाएगी लेकिन खदान को बंद करने का निर्णय गलत है। दीपेश मिश्रा ने विरोध जताते हुए कहा कि एसईसीएल क़े अफसरों को अपनी नौकरी की चिंता है,. खदान बंद होने से हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे। इलाके क़े 5 हजार के करीब व्यवसायी प्रभावित होंगे इसकी चिंता प्रबंधन को नहीं है।
उल्लेखनीय है कि कोरबा जिले में आधा दर्जन से अधिक ओपन और भूमिगत खदान संचालित है। गेवरा, दीपका, कुसमुंडा क्षेत्र क़ी खुली खदानों से प्रतिदिन करीब दो लाख टन कोयले का उत्पादन होता है। वहीं पांच अंडरग्राउंड खदानों से हर रोज करीब 3 हजार टन कोयला निकाला जाता है। खुली खदानों में कोयला चोरी आम बात है लेकिन भूमिगत खदान से कोयले की लूट कई सवालों को जन्म देती है। दरअसल अंडरग्राउंड खदानों में प्रोडक्शन के बाद मौके पर ही कोयले का वजन लेने के बाद डिस्पेच किया जाता है। यानी कोयले की अफरातफरी की कोई गुंजाइश नहीं होती। बावजूद इसके छुराकछार बल्गी खदान से प्रतिदिन 250 टन तौल कर कोयला पार हो रहा है। इस घटना से एसईसीएल के अफसरों की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजमी है। बहरहाल देश क़े विभिन्न प्रान्तों में कोयले की कमी की वजह से उद्योगों में बिजली संकट उत्पन्न हो रहा है। ऐसे में खदान को बंद करने की अफसरों की योजना ने चिंता में डाल दिया है।
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