नवरात्रि आज से : दो प्रेमियों की मौत के बाद कैसे डोंगरगढ़ में विराजीं मां बम्लेश्वरी, पढ़िए पूरी कहानी...

नवरात्रि आज से : दो प्रेमियों की मौत के बाद कैसे डोंगरगढ़ में विराजीं मां बम्लेश्वरी, पढ़िए पूरी कहानी...
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राजा विक्रमादित्य अपने आप को अपराधी महसूस कर रहे थे। उन्हें दो प्रेमियों ही हत्या का पाप अपने सिर आता दिखाई दे रहा था। फिर राजा विक्रमादित्य ने क्या किया पढ़िए...

राजा शर्मा/डोंगरगढ़। डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा पर चारों ओर पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। छत्तीसगढ़ी में डोंगर शब्द का अर्थ होता है पहाड़ और गढ़ से किला अर्थात पहाड़ों का किला। डोंगरगढ़ एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में सुप्रसिद्ध है, जहां की सबसे ऊंची पहाड़ी पर स्थित है दो हजार वर्ष पुराना माता बम्लेश्वरी का मंदिर जो कि देश-विदेश में लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। सोलह सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित माता बम्लेश्वरी शक्ति पीठ की मान्यता उज्जैन नरेश विक्रमादित्य से जुड़ी हुई है।

डोंगरगढ़ का पुरातन नाम कमावती नगर

किवदंतियों के अनुसार, डोंगरगढ़ का पुरातन नाम था कमावती नगर, जिसके राजा कामसेन कला संगीत प्रेमी थे तथा उनके राज्य में एक राज्य नर्तकी थी कामकंदला, जो बहुत ही सुन्दर और गुणवान नर्तकी थी। कहा जाता है एक बार राजा के राज संगीत कार्यक्रम में एक गरीब संगीतकार माधव नल पहुंचे थे। माधव ने पहरेदारों से राजा से मिलने की बात कही, लेकिन जब उन्हें राजा से मिलने नहीं दिया तो उसने पहरेदारों को कहा कि महराज को जाकर बता दो की जो नर्तकी नृत्य कर रही है, उसके पैरों के घुंघरुओं का एक दाना नहीं है तथा तो तबलची तबला बजा रहा है, उसका एक अंगूठा नकली है।

राजा कामसेन ने माधव नल को अपना राज संगीतज्ञ बनाया

फिर पहरेदार जाकर राजा को माधव की बात बताते हैं। इसके बाद राजा ने जांच करवाई तो माधव की बातें अक्षर सह सही पाई गई। फिर संगीत प्रेमी राजा कामसेन, माधव नल को अपना राज संगीतज्ञ बना कर कमावती नगर में ससम्मान रख लेते हैं। जल्दी ही माधव और कामकंदला का संगीत उनके बीच का प्रेमसूत्र बन गया, लेकिन कहते हैं ना इश्क और मुश्क छिपाने से नहीं छिपता। ये बात राजा कामसेन के पुत्र मदनादित्य को नहीं जीम, क्योंकि खूबसूरत नर्तकी पर उसकी नजर बहुत पहले से थी। बहुत से षड्यंत्र कर मदनादित्य ने माधव को अपमानित कर राजद्रोह का आरोप लगा कर कामावती नगर से बाहर जाने पर विवश कर दिया और कामकंदला पर अनेक प्रताड़ना बरपाने लगा।

राजा विक्रमादित्य ने कामसेन को हरा कर डोंगरगढ़ पर विजय पाई

इधर अपमानित माधव बदला लेने की आग में जलता हुआ उज्जैन जा पहुंचा। उज्जैन के राजा माधव के संगीत से प्रभावित हो कर डोंगरगढ़ पर चढ़ाई कर दी। अंततः राजा विक्रमादित्य ने राजा कामसेन को हरा कर डोंगरगढ़ पर विजय पाई। भयंकर युद्ध से दोनों राज्यों को काफी नुकसान हुआ, जिसे देख राजा विक्रमादित्य के मन में सवाल आया की इतना बड़ा युद्ध जिन प्रेमियों के लिए मैंने किया है क्या इनका प्रेम सत्य है। इसी बात के उत्तर के लिए उन्होंने कामकंदला को झूठ कह दिया की युद्ध तो हम जीत गए, लेकिन इस युद्ध में माधव वीरगति को प्राप्त हो गए हैं। इसे सुनते ही कामकंदला ने तालाब में डूब कर आत्महत्या कर ली। माधव तक ये बात जब पहुंची तो उन्होंने भी प्राण त्याग दिया।

विक्रमादित्य ने कठोर तपस्या कर किया माता को प्रसन्न

अब राजा विक्रमादित्य अपने आप को अपराधी महसूस कर रहे थे। उन्हें दो प्रेमियों ही हत्या का पाप अपने सिर आता दिखाई दे रहा था। राजा विक्रमादित्य ने मां आदि शक्ति का आवाहन किया और कठोर तपस्या की। तपस्या से माता प्रसन्न हुई और वरदान मांगने को कहा, तब राजा विक्रमादित्य ने दोनों प्रेमियों के जीवन के साथ माता को कमावती नगर में रहने का वरदान मांगा। कहते हैं तभी से मां बम्लेश्वरी का मंदिर डोंगरगढ़ में स्थित है और लाखों श्रद्धालु हर वर्ष यहां अपने आस्था के दीप जलाते हैं। देखिए वीडियो-



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