बेश कीमती लकड़ी का तस्कर फरार, वन विभाग ने कोर्ट में पेश किया चालान

ओडिशा से पंजाब भेजी जा रही बेशकीमती खैर की लकड़ी तस्करी का फरार मास्टर माइंड चार महीने बाद भी वन विभाग को नहीं मिला। अब लकड़ी तस्कर को फरार बताते हुए वन विभाग ने कोर्ट में चालान पेश कर दिया है। करीब 60 पन्नों की चार्जशीट में खैर की तस्करी का पूरा ब्योरा लिया है।
दरअसल लकड़ी तस्कर मनीष अग्रवाल लंबे समय से खैर की लकड़ी की तस्करी करता था। वह अपने गुर्गों की मदद से लकड़ी तस्करी करता था। उसके गिरोह के चालक समेत दो को पकड़ा गया था लेकिन मनीष अब तक नहीं पकड़ा गया। उसके पकड़े जाने के बाद ओडिशा से पंजाब तक के लकड़ी तस्करों का नेटवर्क फूटेगा लेकिन उसके नहीं मिलने से कई अहम कड़ियां अनसुलझी हैं।
यह था मामला
गौरतलब है कि बीते 12 मार्च को बलौदाबाजार निवासी अजय अग्रवाल और चालक पंजाब के पटियाला निवासी कृष्ण सिंह को गिरफ्तार किया गया था। उनके पास से कंटेनर क्रमांक एचआर-39 ई-1756 में लोड करीब 15.706 घनमीटर खैर की लकड़ी जब्त की गई थी। खैर की लकड़ी की कीमत करीब 2 करोड़ रुपए थी। कारोबारी मनीष अग्रवाल द्वारा लकड़ी ओडिशा से पंजाब भेजी जा रही थी। उनके खिलाफ भारतीय वन अधिनियम की धारा 40 और 41 के तहत मंदिरहसौद पुलिस ने केस दर्ज किया था।
छह हजार रुपए प्रति क्विंटल
जानकारी के मुताबिक खैर की बाजार में खास डिमांड रहती है। पेड़ को छीलकर इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तैयार किया जाता है। बाजार में इसकी छह हजार रुपए प्रति क्विंटल की कीमत मिल जाती है। खैर के टुकड़ों को उबालकर उसका रस जमा लिया जाता है, जो कत्थे के तौर पर बाजार में बिकता है। बाजार में कत्थे की डिमांड के अनुसार इसका रेट बढ़ता-घटता है। साथ ही इससे खेल के औजार, पूल का टेबल और फर्नीचर का सामान बनाया जाता है।
खैर तस्करी के गढ़ ये पांच राज्य
जानकारी के मुताबिक खैर के पेड़ को वन विभाग ने दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में रखा है। इसका इस्तेमाल औषधि बनाने और चमड़ा उद्योग में भी किया जाता है। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल डायरिया और पाइल्स जैसे रोग ठीक करने में होता है। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़ खैर तस्करी के प्रमुख केंद्र बन रहे हैं। खैर के एक वयस्क पेड़ से 5 से 7 लाख रुपए तक का फायदा होता है।
चालान पेश
खैर लकड़ी की तस्करी मामले में आरोपी फरार है। कोर्ट में चालान पेश कर दिया गया है। आरोपी की तलाश की जा रही है।
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