राजकीय पशु कब्जे में आने के बाद भी नहीं पहुंच पाएगा छत्तीसगढ़, जानें क्या है मामला

राजकीय पशु कब्जे में आने के बाद भी नहीं पहुंच पाएगा छत्तीसगढ़, जानें क्या है मामला
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छत्तीसगढ़ राज्य का राजकीय पशु वन भैंसा है, इसकी संख्या राज्य में गिनती की है। इस बात को ध्यान में रखते हुए राजकीय पशु की संरक्षण, संवर्धन करने राज्य सरकार अब तक करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है।

रायपुर हरिभूमि न्यूज: छत्तीसगढ़ राज्य का राजकीय पशु वन भैंसा है, इसकी संख्या राज्य में गिनती की है। इस बात को ध्यान में रखते हुए राजकीय पशु की संरक्षण, संवर्धन करने राज्य सरकार अब तक करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है। बावजूद इसके संख्या बढ़ा नहीं पाए। वन विभाग के अफसर राज्य में असम के भरोसे राज्य में वनभैंसों की संख्या बढ़ाने की आस लगाए बैठे हैं। उनकी इस आस पर हाईकोर्ट ने पानी फेर दिया है। असम से वनभैंसा लाने मानस नेशनल पार्क में चार वनभैंसों को ट्रांसलोकेट कर लिया गया है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद चारों वनभैंसा अब मानस में ही अटक गए।

दरअसल, पूरा मामला इस प्रकार से है, वन विभाग की एक टीम वनभैंसा लाने की तैयारी करने फरवरी में असम गई थी, तब हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले वन्यजीव प्रेमी नितीन सिंघवी ने वन अफसरों को कहा था कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है। इसीलिए जब तक मामले की सुनवाई नहीं हो जाती वनभैंसा लाने की कोशिश उचित नहीं है। बावजूद इसके होली के दो दिन पहले वनभैंसा लाने टीम रवाना की गई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने कोर्ट में अर्जेंट सुनवाई के लिए अर्जी दाखिल की। वन विभाग की टीम ने असम से वनभैंसा लाने की पूरी तैयारी कर ली थी। इसी बीच कोर्ट ने वनभैंसा लाने पर रोक लगा दी।

तीमारदारी के चार लोगों को तैनात किया

वनभैंसा लाने वालों की टीम में शामिल उदंती-सीतानदी के डिप्टी डायरेक्टर वरुण जैन के मुताबिक ट्रांसलोकेट किए गए वनभैंसों को बोमा (बाड़े) में रखा गया है। असम के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की अनुमति से वनभैंसों की देखरेख के लिए छत्तीसगढ़ के दो डॉक्टर के साथ दो अन्य को तैनात किया गया है। मामले की अगली सुनवाई अप्रैल में होनी है। अप्रैल में कोर्ट जैसा आदेश देगा, उस आदेश के मुताबिक अगला कदम उठाया जाएगा। असम पहुंची शेष टीम को वापस बुला लिया गया है।

वनभैंसे की बात को लेकर गुमराह करते रहे डॉक्टर

असम में वनभैंंसा ट्रांसलोकेट करने की बात को लेकर वहां उपस्थित डॉक्टर गुमराह करते रहे। टीम में शामिल एक डॉक्टर के मुताबिक वनभैसों को चिन्हांकित कर ट्रांसलोकेट नहीं किया गया है। कोर्ट के आदेश के बाद डॉक्टर टीम के खाली हाथ लौटने की बात कहते रहे।

इसलिए याचिका दाखिल करनी पड़ी

गौरतलब है, बारनवापारा के कोर एरिया में असम से लाए गए एक मादा तथा एक नर वनभैंसा को 25 एकड़ के क्षेत्रफल में बाड़ा बनाकर रखा गया है। पूर्व में जब दो वनभैंसा लाए गए थे, तब वन विभाग की टीम का तर्क था कि वनभैंसा राज्य के प्राकृतिक वातावरण में ढल जाएंगे। इसके बाद इन वनभैंसा काे उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व के वनभैंसा रेस्क्यू सेंटर में रह रहे वनभैंसों से क्रास कर इनकी संख्या बढ़ाएंगे। तीन साल बाद भी वनभैंसों की संख्या नहीं बढ़ा पाने तथा असम से लाए गए वनभैंसों को कैद कर रखने के विरोध में श्री सिंघवी ने कोर्ट में याचिका दायर की। श्री सिंघवी ने पिछले वर्ष 2022 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

जीन पूल की विशेषता प्रभावित होगी

उल्लेखनीय है कि असम तथा राज्य के वनभैंसों का जीन पूल अलग-अलग है। असम के वनभैंसों का छत्तीसगढ़ के वनभैंसों के साथ क्रास करने से छत्तीसगढ़ के वनभैंसों का जीन पूल की विशेषता प्रभावित होगी। इसकी पुष्टि हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी यानी सीसीएमबी नामक डीएनए जांचने वाली संस्थान ने भी की है। सीसीएमबी के मुताबिक असम के वन भैसों में भौगोलिक स्थिति के कारण आनुवंशिकी फर्क है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने टीएन गोदाबरमन नामक प्रकरण में आदेशित किया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों की शुद्धता बरकरार रखी जाए। भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ के वनभैंसों का जीन पूल विश्व के अन्य अन्य देशों तथा राज्यों की वनभैंसों की अपेक्षा ज्यादा शुद्ध है।

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