यहां अंतिम यात्रा के लिए भी संघर्ष जारी है....जनप्रतिनिधि और प्रशासन है बेसुध

यहां अंतिम यात्रा के लिए भी संघर्ष जारी है....जनप्रतिनिधि और प्रशासन है बेसुध
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यदि गांव में किसी की मौत हो जाती है तो उफनते नाले के 3-5 फीट पानी से अर्थी ले जाना पड़ता है। बुधवार को भी ऐसी ही तस्वीर सामने आई जहां एक ग्रामीण की मौत के बाद गले से नीचे पानी में से ग्रामीण उसकी अर्थी श्मशान घाट ले गए। पढ़िए पूरी खबर...

देवेश साहू/बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के अंतिम छोर में टुण्ड्रा के पास स्थित ग्राम खपराडीह के ग्रामीणों को अंतिम यात्रा के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है। बारिश के दिनों में यदि इस गांव में किसी की मृत्यु हो जाती है तो शव को अंतिम संस्कार के लिए ग्रामीणों को करीब पांच फुट बहते पानी से भरे नाले को पार कर शमशान घाट जाना पड़ता है।

गांव खपराडीह के ग्रामीण हर बारिश में भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि गांव में किसी की मौत न हो। इसका कारण श्मशान घाट और गांव के बीच बहता नाला है। जो बारिश में उफान पर रहता है। यदि गांव में किसी की मौत हो जाती है तो उफनते नाले के 3-5 फीट पानी से अर्थी ले जाना पड़ता है। बुधवार को भी ऐसी ही तस्वीर सामने आई जहां एक ग्रामीण की मौत के बाद गले से नीचे पानी में से ग्रामीण उसकी अर्थी श्मशान घाट ले गए। बता दें कि गांव की आबादी मात्र 1100 की है। जो जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर व राजधानी से 140 किलोमीटर दूर है। हालांकि श्मशान घाट जाने के लिए एक दूसरा रास्ता भी है पर वह लंबा पड़ता है। इस कारण ग्रामीण इसी रास्ते का उपयोग करते हैं। उन्होंने नाले पर पुल बनाने की मांग प्रशासन से की है।

नाले में करीब 5 फुट तक रहता है पानी

गांव से करीब 500 मीटर दूर स्थित गोठान और मुक्तिधाम के बीच एक धरीं नाला है जो बरसात में उफान पर रहता है। बारिश में नाले में 3 से 5 से फीट पानी रहता है, जिसका बहाव काफी तेज होता है। जब बारिश में किसी की मौत होती है तो मजबूरी में ग्रामीणों को नाला पार करना पड़ता है। ऐसे में मौत के बाद उसके परिवार के साथ गांव वालों की तकलीफ और बढ़ जाती है। जितना दुख परिजनों को मौत पर होता है उससे ज्यादा दुख अंतिम संस्कार की सताती है।

लकड़ी ले जाना संभव नहीं, इसलिए शव को दफनाया

बुधवार सुबह गांव के युवक पुरुषोत्तम यादव की मौत हो गई, जिसका अंतिम संस्कार करने परिवार के लोग जब श्मशान घाट के लिए निकले तो अर्थी को उफान मार रहे नाले ने रोक लिया। इसके बाद ग्रामीण हिम्मत जुटाकर तेज बहते 5 फीट पानी में से श्मशान घाट पहुंचे और अंतिम संस्कार कर वापस आए। वहीं बड़ी बिड़वना है कि कंडे और लड़की नहीं ले जा पाने की स्थिति में परिजनों को अंतिम संस्कार की जगह शव को दफनाना पड़ा।

इस बरसात में तीसरी मौत, जमीन खोदी तो पानी निकला

गांव के सरपंच शंभु यादव ने बताया कि इस बरसात में ये तीसरी मौत है, जिसे इसी तरह ले जाना पड़ा। आज जब मिट्टी देने के लिए जमीन खोद रहे थे तब जमीन से पानी निकल रहा था, जिससे अंतिम संस्कार में दिक्कत हुई। गांव में मुक्ति धाम भी नहीं है। गांव में यादव और सतनामी समाज की बहुलता है। इस गांव में मुसलमान, केवट, मानिकपुरी समाज के भी लोग निवास करते हैं। वैसे गांव में मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई होती है।

जनप्रतिनिधि व अधिकारियों ने नहीं ली सुध, दफ्तरों के चक्कर काट रहे ग्रामीण

वहीं गांव की समस्या को लेकर गांव के सरपंच शंभु यादव ने नाले में पुल, गोठान में घेरा सहित अन्य समस्याओं को दूर करने की मांग विधायक चंद्रदेव राय, सांसद गुहाराम अजगल्ले को पत्र दिया है। उन्होंने अनुशंसा की है। कलेक्टर, सीईओ, जिला पंचायत, जनपद पंचायत सहित सभी जिम्मेदारों का दरवाजा खटखटाया पर अभी तक किसी ने सुध नहीं ली। वहीं गांव के लोग बरसात में मवेशियों को घरों में ही बांध कर रखते हैं वे नाले के कारण गोठान नहीं जा पाते।

नाले पर काम कराना मनरेगा से संभव नहीं : सीईओ

वहीं इस मामले को लेकर जनपद पंचायत कसडोल के सीईओ हिमांशु वर्मा का कहना है कि इस गांव में गोठान को जाने के दो रास्ते मौजूद हैं। एक रास्ता लंबा पड़ता है। वहां तक गाड़ियां जाती हैं। गांव में जो नाला है वह नाला काफी बड़ा है, उसका काम मनरेगा योजना के तहत कराना संभव नहीं है। मुक्तिधाम की जानकारी मुझे नहीं है आपसे पता चला है में उसे दिखवाता हूं कि क्या मामला है।

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