Teacher's Day : सिर्फ 48 बच्चों के लिए तय करते हैं 32 किमी कच्चा रास्ता, फिर तैरकर पार करते हैं नदी, लालटेन से पढ़ाई

रायपुर। शहरी क्षेत्रों से दूर गांवों, आदिवासी क्षेत्रों तथा नक्सल पीड़ित इलाकों में आज भी शिक्षा (education )की तस्वीर उतनी सुंदर नहीं है, जितनी कल्पनाओं में की जाती रही हैं। यहां छात्रों (students)को शिक्षा प्राप्त करने से पहले अभावों से जूझना पड़ता है, लेकिन सुखद बात यह है कि इस लड़ाई में छात्र अकेले नहीं हैं। उनके साथ उनके शिक्षक ढाल बनकर खड़े हैं, जो छात्रों की राह आसान करने की कोशिश कर रहे हैं। यह वे शिक्षक (teachers)हैं, जिनके लिए अध्यापन सिर्फ नौकरी नहीं है बल्कि मिशन है। शिक्षक दिवस (Teacher's Day) पर जानिए ऐसे ही शिक्षकों की कहानी गिनती के 48 छात्र हैं। इनमें से 30 प्राथमिक कक्षा तथा शेष 18 माध्यमिक कक्षा के छात्र हैं। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए 4 शिक्षक रोजाना अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर स्कूल पहुंचते हैं। इन शिक्षकों में माध्यमिक शाला के ओमप्रकाश देव, नंदकिशोर भूसाखरे तथा प्राथमिक शाला के भैयालाल सोरी और गौरीशंकर सोम शामिल हैं। ओमप्रकाश देव 1998 से अध्यापन कार्य कर रहे हैं। यहां 2006 से कार्यरत हैं, जबकि अन्य शिक्षकों ने 2010 के बाद के वर्षों में यहां ज्वॉइनिंग दी। ओमप्रकाश बताते हैं, उनका घर छिपली में है जो नदी के पार है। अन्य शिक्षकों का घर भी नदी पार है। नदी और स्कूल के बीच की दूरी 30 से 32 किमी है। यहां ना तो पुल है और ना ही पक्की सड़क है। बारिश के दिनों में जब नदी उफान पर होती है तो सभी शिक्षक तैरकर नदी पार करते हैं। जंगल क्षेत्र होने के कारण वे एक साथ ही आना-जाना करते हैं।
नक्सलियों को शिक्षा दिलाने संघर्ष, पहली बार कांकेर जेल में सेंटर
आने वाले 26 सितंबर को कांकेर जेल में पहली बार ओपन बोर्ड का सेंटर बनेगा। यहां बंद कैदी दसवीं-बारहवीं की परीक्षाएं दिलाएंगे। यह संभव हो सका है शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला कांकेर के शिक्षक वाजिद खान की बदौलत वे ओपन बोर्ड परीक्षाओं के प्रभारी भी हैं। 1998 से अध्यापन कार्य कर रहे वाजिद कांकेर में 2012 से सेवारत हैं। वाजिद बताते हैं कि कांकेर जेल में बंद कैदियों में से अधिकतर नक्सल गतिविधियों से संबंधित हैं। जेल में केंद्र नहीं होने के कारण कैदियों के लिए पढ़ाई सुलभ नहीं थी । सुरक्षा सहित अन्य कारणों को देखते हुए जेल के बाहर स्कूलों में बने केंद्र में गिनती के ही कैदियों को परीक्षा में बैठने की अनुमति मिल पाती थी। उनके प्रयासों से पहली बार कांकेर जेल में केंद्र बन सका। कुछ दिनों बार होने वाली ओपन बोर्ड की परीक्षाओं में 36 कैदी शामिल होंगे। इसमें से एक महिला तथा शेष पुरुष कैदी हैं।
डर जाते थे बच्चे
वाजिद बताते हैं कि जिन कैदियों को बाहर परीक्षा दिलाने की अनुमति मिल जाती थी, उन्हें हथकड़ियों में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया जाता था। उन्हें देखकर अन्य बच्चे डर जाते थे और उनका प्रदर्शन भी प्रभावित होता था। कैदियों को मुख्यधारा में लाने के लिए शिक्षा जरूरी है। हमने पहले की तो जिला प्रशासन से भी मदद मिली। कैदियों की 52 हजार रुपए फीस कलेक्टर ने डीएमएफ से भरी । वाजिद के नेतृत्व में स्टाउट-गाइड के कई छात्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। स्मार्ट क्लास, कीचन गार्डन सहित कई अन्य नवाचार के लिए वे पहले भी पुरस्कृत हो चुके हैं।
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