छत्तीसगढ़ में टिशू कल्चर से ऊगेगा सागौन का पौधा, कोयंबटूर जाएगी टीम, 12 साल में तैयार होंगे पेड़

छत्तीसगढ़ में टिशू कल्चर से ऊगेगा सागौन का पौधा, कोयंबटूर जाएगी टीम, 12 साल में तैयार होंगे पेड़
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छत्तीसगढ़ में वन विभाग अब टिशू कल्चर से सागौन के पौधे उगाने की तैयारी में है। खास बात ये है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जब इससे जुड़ी संभावनाओं के बारे में बताया गया तो उन्होंने गहरी दिलचस्पी ली। इसके बाद वन मंत्री मोहम्मद अकबर की अध्यक्षता में वन अधिकारियों की बैठक भी हुई है। अब इस सिलसिले में तैयारी ये है कि राज्य में टिशू कल्चर से संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों को प्रशिक्षण के लिए कोयंबटूर (तमिलनाडू) भेजा जाएगा।

रायपुर. छत्तीसगढ़ में वन विभाग अब टिशू कल्चर से सागौन के पौधे उगाने की तैयारी में है। खास बात ये है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जब इससे जुड़ी संभावनाओं के बारे में बताया गया तो उन्होंने गहरी दिलचस्पी ली। इसके बाद वन मंत्री मोहम्मद अकबर की अध्यक्षता में वन अधिकारियों की बैठक भी हुई है। अब इस सिलसिले में तैयारी ये है कि राज्य में टिशू कल्चर से संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों को प्रशिक्षण के लिए कोयंबटूर (तमिलनाडू) भेजा जाएगा।

बताया गया है कि राज्य सरकार को सागौन के पौधे तैयार करने, उसका रोपण करने तथा उससे होने वाले फायदे के संबंध में निजी क्षेत्र के लोगों से जानकारी मिली। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इस बारे में जानकारी मिलने के बाद वे सिमगा में एक फार्म हाउस में इससे संबंधित काम देखने भी गए। इसके बाद वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने अपने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाकर इस संबंध में विचार विमर्श किया है।

12-15 साल में तैयार होगा सागौन का पेड़

परंपरागत तरीक से सागौन के प्लांटेशन के बाद सागौन का पेड़ तैयार होने में 50 साल लगते हैं। लेकिन टिशू कल्चर से तैयार होने वाले पौधे रोपण के 12 से 15 साल के भीतर तैयार होकर हार्वेस्टिंग के लायक हो जाते हैं। छत्तीसगढ़ में अब तक सागौन का उत्पादन परंपरागत तरीके से होता है। इसलिए सागौन के विस्तार की संभावनाए काफी क्षीण है। नई तकनीक का इस्तेमाल होने से सागौन का उत्पादन कम समय में हो सकेगा।

संसाधन मौजूद है लेकिन काम नहीं

वन विभाग के सूत्रों की मानें तो राज्य में अभी बांस एवं नीलगिरी के पौधों के उत्पादन के लिए टिशू कल्चर लैब की व्यवस्था है। इसका दायरा इतना सीमित है कि यह राज्य के काम नहीं आता। राजधानी रायपुर के समीप ग्राम गोढ़ी में वन विभाग का लैब है। इसी तरह नवा रायपुर जंगल सफारी के पास बॉटिनकल गार्डन में भी नीलगिरी क्लोनल तैयार करने की व्यवस्था है, लेकिन वन विभाग के अधिकारी इस लैब को विकसित करने के बजाए तैयार पौधे अन्य प्रदेशों से खरीदी करने में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं। हालत ये है कि पूर्ववर्ती सरकार के समय गोढ़ी के लैब के विस्तार को अनुमति मिली थी, लेकिन बाद में इसे भी रोक दिया गया।

कोयंबटूर में तैयार होता है सागौन टिशू कल्चर

बताया गया है कि तमिलनाडू के कोयंबटूर में सागौन के टिशू कल्चर पौधे तैयार किए जाते हैं। राज्य सरकार का विचार है कि यहां के वन व कृषि विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों को वहां भेजकर प्रशिक्षण दिलाया जाए। बताया गया है कि एक हफ्ते या अधिक के प्रशिक्षण के बाद राज्य में सागौन टिशू कल्चर पर काम शुरु हो सकता है।

छत्तीसगढ़ में व्यापक संभावनाएं

वन विभाग के जानकार अधिकारियों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में सागौन के टिशू कल्चर पौधे तैयार करने के मामले में काफी संभावनाएं है। दरअसल राज्य में प्राकृतिक तौर पर भी सागौन की उत्पादन होता है। यहां का वातावरण सागौन के लिए अनुकूल है। खास बात ये भी है कि देश में अभी सागौन के टिशू कल्चर पौधों की उपलब्धता बहुत कम है। लिहाजा छत्तीसगढ़ में न केवल पौधे तैयार कर अन्य प्रदेशों में बेचा जा सकता है, बल्कि यहां सागौन का उत्पादन बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा सकता है।

कोयंबटूर भेजेंगे टीम

सागौन का टिशू कल्चर पौधे के उत्पादन को लेकर एक बैठक हो चुकी है। प्रारंभिक रूप से विचार किया गया है कि वन एवं कृषि विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों तथा निजी क्षेत्र को लोगों को प्रशिक्षण के लिए कोयंबटूर भेजा जाए।

-राकेश चतुर्वेदी, वन बल प्रमुख

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