क्रोकोडाइल्स को चर गए 'विभाग के मगरमच्छ' : सैलानियों का तो पता नहीं, पर विभाग के अफसरों की अनदेखी पड़ गई भारी..

देवेश साहू/बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के कसडोल ब्लॉक से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित बारनवापारा अभयारण्य में सैलानियों को लुभाने के नाम पर अफसरों के कमाई का एक जरिया बनते जा रहा हैं। अभयारण्य के अंदर मगरमच्छ पालन केंद्र (क्रोकोडाइल पार्क) इसका बड़ा उदाहरण है। करोड़ों रुपए से भी ज्यादा फूंकने के बाद इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया है।
गौरतलब है कि, पर्यटकों को आकर्षित करने और अभयारण्यों में इनकी संख्या बढ़ाने के लिए कुछ साल पहले बारनवापारा के कोठारी रेंज स्थित मरेर तलाब में विभाग की ओर से करोड़ों रुपए खर्च करके मगरमच्छ पालन केंद्र बनाया गया था। साथ ही मगरमच्छ लाकर भी रखें गए थे, लेकिन देखरेख के अभाव और विभाग की लापरवाही की वजह से एक के बाद एक इन मगरमच्छों की मृत्यु हो गई। वहीं जो बचे हुए मगरमच्छ थे, उनको रायपुर के जंगल सफारी में छोड़ दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि जब हमारे सहयोगी ने इसकी जानकारी लेने की कोशिश की तो कोठारी रेंज के रेंजर जीवन साहू ने ना सिर्फ जवाब देने से मना किया बल्कि दुर्व्यवहार करते हुए झटक दिया।
बारनवापारा अभ्यारण में ऐसा कुछ है मुझे जानकारी नहीं : डीएफओ
वहीं बलौदाबाजार जिला वन मंडल अधिकारी मयंक अग्रवाल से मगरमच्छ पालन केंद्र के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि बारनवापारा अभयारण्य में ऐसा कुछ है मुझे नहीं मालूम है। आपको जानकारी चाहिए तो एक आवेदन दे दीजिए अगर होगा तो जानकारी मिल जाएगी। मगरमच्छ पालन केंद्र के बारे में पूछने पर अधिकारियों के इस तरह के रवैये से साफ जाहिर होता है कि करोड़ों खर्च कर बनाए गए मगरमच्छ पालन केंद्र का अब ना तो कोई अस्तित्व बचा है और ना ही इसका कोई उपयोग किया जा रहा। इसके निर्माण में खर्च किए गए करोड़ों रुपए से अफसरों ने खूब मलाई खाई और इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया।
दफ्तर में अधिकारी मिले नदारत, फोन भी नहीं उठाया
जिले के अंतिम छोर में जंगलों के बीच दफ्तर होने का फायदा अधिकारी किस तरह से उठाते हैं ये बारनवापारा अभ्यारण स्थित दफ्तरों में साफ तौर पर देखा जा सकता है। सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक रेंजर कृषाणु चंद्राकर और सहायक वन सरंक्षक आनंद कुदरिया नदारद थे। दफ्तर में उपस्थित संविदा कर्मी छबि लाल सूरी ने बताया कि अधिकारी कार्यालय नहीं आते हैं। अपने बंगले में रहकर ही काम करते हैं। हम फाइल बंगला में ही पहुंचा देते हैं। इसके बाद एक कर्मचारी फाइल को लेकर रेंजर के बंगला पर पहुंचा दिया। वहीं हरिभूमि की टीम सुबह से शाम तक दफ्तर में अधिकारियों के इंतजार में बैठी रही और लगातार फोन करते रहे, लेकिन रेंजर ने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा और ना ही दफ्तर पहुंचे।
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