विदेशी कोयले से धधक रही संयंत्रों की भट्ठी, उत्पादन करना पड़ा आधा

रायपुर. प्रदेश की राेलिंग मिलें और स्पंज आयरन प्लांट अब विदेशी कोयले के भरोसे चल रहे हैं। सबसे ज्यादा परेशानी में रोलिंग मिल संचालक हैं, क्योंकि इनको रियायती दर पर कोयला मिलता ही नहीं है। स्पंज आयरन का एसईसीएल में लिंकेज होने के कारण इनको कोयला कम कीमत में मिल जाता है, लेकिन इस समय इनको वहां से कोयला नहीं मिल रहा है, क्योंकि अभी उद्योगों को कोयला देने पर रोक है। कोयला संकट के कारण उद्योगों को अपना उत्पादन कम करना पड़ा है। एक तरफ जहां रोलिंग मिलों में 50 फीसदी उत्पादन हो रहा है, वहीं स्पंज आयरन का उत्पादन 70 फीसदी हो रहा है।
केंद्रीय कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी के फरमान के बाद अब एसईसीएल ने निजी उद्योगों को कोयले की सप्लाई बंद कर दी है। इसका आदेश भी हाे गया है। इसका असर यह हो रहा है कि पहले से परेशानी में चल रही रोलिंग मिलें, स्पंज आयरन प्लांटों में आने वाले समय में तालाबंदी का खतरा मंडरा रहा है। खुले बाजार में कोयले की कीमत पांच गुनी है, इतनी ज्यादा कीमत में कोयला लेकर लंबे समय तक प्लांट चलाना संभव नहीं है।
चाइना के कारण कोयला संकट
कोयला संकट का एक बड़ा कारण चाइना को बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है, चाइना में कोयले की ज्यादातर खदानों को बंद कर दिया गया है। अब चाइना किसी भी देश से किसी भी कीमत पर कोयला ले रहा है। इसका असर यह हुआ है कि कोयले की कीमत आसमान पर चली गई है और कोयला मिल भी नहीं रहा है।
रोलिंग मिल संचालक ज्यादा परेशानी में
कोयला संकट के कारण रोलिंग मिल संचालकों के सामने ज्यादा परेशानी खड़ी हो गई है। एक तो इनका एसईसीएल में लिंकेज न होने के कारण इनको स्पंज आयरन की तरह कम कीमत में कोयला नहीं मिलता है। स्पंज आयरन उद्योग को चार हजार रुपए टन में कोयला मिल जाता है। अब यह बात अलग है कि इनको जितना कोटा है, उतना कोटा नहीं मिल पाता है। अब तो इनको भी कोयला नहीं मिल रहा है, लेकिन ज्यादातर स्पंज आयरन में एक-एक माह का स्टॉक होने के कारण इनके सामने परेशानी कम है। रोलिंग मिल संचालकों को कोयला खुले बाजार से ही खरीदना पड़ता है। जो विदेशी कोयला खुले बाजार में पहले छह हजार रुपए टन था, वह इस समय 20 हजार रुपए टन हो गया है। 18 रुपए टन में कोयला विशाखापट्टनम में मिल रहा है, वहीं से यहां तक लाने में करीब दो हजार प्रति टन पर भाड़ा लग जाता है। घरेलू कोयले की कीमत दस हजार रुपए टन है, पर इनकी क्वालिटी अच्छी नहीं है। रोलिंग मिल संचालक बताते हैं कि विदेशी कोयला एक टन माल बनाने के लिए एक टन के आसपास लगता है, जबिक घरेलू कोयला डेढ़ टन से भी ज्यादा लगता है। इसलिए विदेशी कोयला लेना ज्यादा फायदे का सौदा रहता है।
बंद हो जाएंगे उद्योग
इतनी ज्यादा कीमत पर कोयला लेकर लंबे समय तक उद्योग चलाना संभव नहीं है। कोयले की कीमत के कारण उत्पादन लागत भी बहुत बढ़ जाती है। अगर जल्द ही कोयले की कीमत पर अंकुश नहीं लगा तो उद्योगों में तालाबंदी हो जाएगी।
- मनोज अग्रवाल, अध्यक्ष, रोलिंग मिल एसोसिशन
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