सुगंधित चावल की फसल का कद 40 सेंटीमीटर घटाया, अब 40 दिन पहले पकेगी

रायपुर. सुगंधित चावल की फसल में किसानों को मानसून में होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने नया फार्मूला बनाया है। अब चावल की पैदावार नई तकनीक के बीज के जरिए होगी, जिससे कम से कम समय में ज्यादा उत्पादन होगा। यही नहीं, फसलों के पककर तैयार होने में वक्त भी कम लगेगा।
कृषि विवि के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा ने बताया, विवि ने पहली बार भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की मदद से जवा फूल चावल, दूधराज, जीराफूल, विष्णुभोग, लक्ष्मीभोग, तुलसी जैसे सुगंधित चावलों की हाइट कम करने और जल्द उत्पादन करने के लिए 2013 में रिसर्च शुरू किया था, जो बीते महीने सफल हुआ है। उन्होंने बताया, कुछ सालों से किसानों ने सुगंधित चावल की फसल लेना कम कर दिया था। इसका कारण हमें पता चला कि चावल को तैयार होने में 160 दिन का समय लगता था, इसलिए खर्च भी अधिक लगता था। इसकी ऊंचाई भी 140 सेंटीमीटर होती थी। चावल की फसल तैयार होने के अंतिम समय में बरसात होने से फसल गिर जाती थी, जिससे किसानों को नुकसान होता था। फसल तैयार होने में अधिक समय लगता था और अगली फसल खराब होती थी।
किसान को नहीं होगा नुकसान
चावलों की नई किस्म विकसित करने से उनके मूल गुणों में परिवर्तन आया है। अब सुगंधित चावल की फसल 120 दिन में तैयार हो जाएगी, जैसे बाकी फसल होती है। इसके अलावा अब इसकी हाइट भी 140 सेमी से घटकर 100 सेमी हो गई है। हवा, बरसात होने से फसल नहीं गिरेगी। नई किस्म के चावल से पैदावार अधिक हो चुकी है। वैज्ञानिक ने बताया, रिसर्च सेंटर में गेमा रेडिएशन के जरिए चावल में परिवर्तन लाया गया है। पिलोट्रोपिजम विधि के जरिए चावल में अन्य गुण भी शामिल हुए हैं। रिसर्च के बाद उपज की क्षमता में बढ़ोतरी देखने को मिली है। रिसर्च के दौरान चार से पांच बार गुणवत्ता की जांच की गई। अब यह चावल पहले की तुलना और बेहतर बन चुका है।
तैयार कर रहे बीज
चावल में रिसर्च सफल होने के बाद अब कृषि विवि में सभी नई किस्म के चावल किसानों के लिए तैयार किए जा रहे हैं। दूधराज के 24 क्विंटल बीज तैयार किए थे, जिसे किसानों व सरकार को दिया गया। वर्तमान में जीराफूल, नगरी दूधराज, रामजीरा, लक्ष्मीभोग समेत अन्य सुगंधित चावल के बीज तैयार किए जा रहे हैं। एक वर्ष में ये सभी बनकर तैयार हो जाएंगे। विवि में कृषि वैज्ञानिक किसानों की अन्य समस्याओं पर रिसर्च कर रहे हैं।
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