मदनवाड़ा कांड के लिए तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता जिम्मेदार : न्यायिक जाँच आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश

रायपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से सुरक्षाबलों की मुठभेड़ और पुलिसकर्मियों की शहादत के सबसे बड़े मामलों में से एक है मदनवाड़ा कांड। विधानसभा में बुधवार को मदनवाड़ा नक्सल मुठभेड़ पर वर्तमान सरकार द़्वारा बनाई गई विशेष जांच आयोग की रिपोर्ट पेश की गई। आयोग के चेयरमैन जस्टिस एसएम श्रीवास्तव ने तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया है। जस्टिस श्रीवास्तव ने माना कि लड़ाई के मैदान में अपनाए जाने वाले गाइड लाइनों और नियमों के विरुद्ध काम किया गया। यही नहीं आईजी मुकेश गुप्ता ने शहीद एसपी वीके चौबे को बगैर किसी सुरक्षा कवच के आगे बढ़ने का आदेश दिया, और खुद एण्टी लैण्डमाइन व्हीकल में बंद रहे या फिर अपनी खुद की कार में बैठे रहे।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मदनवाड़ा नक्सल मुठभेड़ पर गठित न्यायिक जाँच आयोग की रिपोर्ट बुधवार को विधानसभा में पेश कीजस्टिस एसएन श्रीवास्तव की अध्यक्षता में विशेष जाँच आयोग का गठन हुआ था। 12 जुलाई 2009 को हुई मदनवाड़ा नक्सल मुठभेड़ में एसपी वीके चौबे समेत 29 पुलिसकर्मियों की शहादत हुई थी। आयोग ने तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कड़ी टिप्पणी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, यह घटना घमंड का नतीजा है, जिसमें कलंकित, फूहड़पन और गैर जिम्मेदाराना ढंग से नेतृत्व किया गया। मुठभेड़ में किसी भी नक्सली को चोट नहीं आई, ना कोई हताहत हुआ। यह आईजी रहे मुकेश गुप्ता, जो कमांडर चीफ़ थे, की लापरवाही, कमियाँ और काहिलपन है। हताहतों की संख्या इसलिए बढ़ी क्योंकि कमांडर का कोई प्रदर्शन नहीं था। एसपी की चेतावनी के बाद भी एंबुस में भेजा गया। जाँच रिपोर्ट में कहा गया है कि आईजी ने चिल्लाकर एसपी को आगे बढ़ने पर मजबूर किया, यदि ऐसा नहीं किया जाता तो एसपी की जान बच सकती थी।
आईजी ने जानबूझकर मातहतों को खतरे में झोंका
जस्टिस एसएम श्रीवास्तव ने घटनास्थल पर मौजूद रहे पुलिसकर्मियों के बयानों का सूक्ष्मता से आंकलन करते हुए अपनी रिपोर्ट पेश की है। इसमें उन्होंने पाया कि आईजी मुकेश गुप्ता को यह स्पष्ट रूप से पता था कि नक्सली बड़ी संख्या में मौजूद हैं और अपनी पोजिशन ले चुके हैं। वे सब जंगल में छुपे हुए हैं, और वे रोड के दोनों साइड से फायर कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में फोर्स को पीछे से ताकत देने के बजाय ताकि वह आगे बढ़े, उन्हें सीआरपीएफ और एसटीएफ की मदद लेनी ही थी। ड्यूटी पर रहने वाले कमाण्डर तथा उच्च अधिकारी को यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि वे इस तरह की कार्यवाही न करें जो कि उनके मातहतों को खतरनाक परिस्थितियों में डाल दे। आयोग ने पाया कि मदनवाड़ा में बगैर उचित प्रक्रियाओं के और बगैर राज्य सरकार के अनुमोदन तथा एसआईबी की खुफिया रिपोर्टों के बावजूद भी पुलिस कैम्प स्थापित किया गया। उस कैम्प में कोई भी वॉच टावर नहीं था, कोई भी अधोसंरचनाएं नहीं थीं। वहां पर रहने का प्रबंध पुलिस वालों के लिए नहीं था। मदनवाड़ा के सीएएफ कर्मचारियों के लिए कोई भी टॉयलेट तक नहीं था। गवाह के साक्ष्य में यह बात प्रकाश में आई कि इस कैम्प का उद्घाटन भी तितर-बितर ढंग से करते हुए आईजी जोन ने सिर्फ एक नारियल फोड़कर कर किया था।
मुकेश गुप्ता की घटनास्थल पर मौजूदगी को माना संदिग्ध
आयोग ने आईजी जोन मुकेश गुप्ता के घटनास्थल पर मौजूद रहने को संदेहास्पद माना। वहीं एसआई किरीतराम सिन्हा और एण्टी लैण्ड माइन व्हीकल के ड्राइवर केदारनाथ के हवाले से माना कि घटनास्थल के दिन वे कुछ दूरी पर नाका बेरियर के पास उपस्थित थे। यदि वे घटनास्थल पर आए भी होंगे तो वे काफी देर से आए होंगे, जब सीआरपीएफ पहुंच चुकी थी। घटनास्थल पर बने रहने की कहानी तथा नक्सलियों पर फायरिंग करने की कहानी यह उनके स्वयं के द्वारा रची गई है। यहां यह भी नोट करना आवश्यक है कि पूरी कहानी बनाई गई थी, तथा रची गई थी। इसी कारण यह मामला कोर्ट में सभी को बरी करने के बाद खत्म हो गई।
तत्कालीन एडीजी गिरधारी नायक का बयान सबसे अहम
जाँच रिपोर्ट में तत्कालीन एडीजी, नक्सल ऑपरेशन गिरधारी नायक के बयान का भी जिक्र है। इस बयान में गिरधारी नायक ने कहा है कि तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता ने युद्ध क्षेत्र के नियमों का पालन नहीं किया, जिसकी वजह से 25 पुलिसकर्मियों की घटनास्थल पर शहादत हो गई। गिरधारी नायक ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया है कि उन्होंने अपने जाँच प्रतिवेदन में आईजी मुकेश गुप्ता को आउट आफ़ टर्न प्रमोशन की अनुशंसा नहीं की थी। जबकि उन्होंने सलाह दी थी कि जब एक भी नक्सली नहीं मारा गया, एक भी शस्त्र दूँढा नहीं गया ऐसे में पुलिस कर्मियों को पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए। जांच आयोग ने गृह विभाग को जारी 35 बिंदुओं पर निर्देश भी दिए हैं...
कब, क्यों और कैसे हुई थी मदनवाड़ा नक्सल हिंसा
राजनांदगांव जिले में 12 जुलाई 2009 में नक्सलियों ने मौत का ये तांडव किया था। न्यायाधीश शंभुनाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट मुख्य सचिव अमिताभ जैन को पिछले दिनों सौंप दी थीं। महाराष्ट्र की सीमा से लगे मानपुर-मोहला क्षेत्र के स्टेट हाइवे से सात किमी दूर कोरकोट्टी मार्ग पर नक्सलियों ने एंबुस में फंसाकर कर पुलिस जवानों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी, जिसमें जिले के एसपी सहित 29 जवानों की शहादत हुई थी। नक्सली मदनवाड़ा में बनाए जा रहे पुलिस के बैस कैंप से नाराज थे। कैंप के पास दो जवानों को नक्सलियों ने पहले अपना निशाना बनाया था। नक्सली हमले की सूचना पर राजनांदगांव के तत्कालीन एसपी विनोद चौबे भी मौके पर पहुंच थे। मदनवाड़ा जाने वाले स्टेट हाइवे से सात किमी दूर लगभग 300 नक्सलियों ने जवानों को एम्बुस में फंसाया था। जवान जैसे ही एंबुस में फंसे नक्सलियों ने ब्लास्ट के बाद अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थीं। नक्सली हमले में एसपी विनोद चौबे सहित 29 पुलिस कर्मी शहीद हो गए थे। 25 जवान कोरकोट्टी के जंगलों में, दो जवान मदनवाड़ा में और जवानों का शव लाते समय दो पुलिसकर्मी नक्सली हमले में शहीद हुए थे। नक्सलियों ने जवानों के रायफल, पिस्टल सहित हथिया लूट लिए थे। नक्सलियों का तांडव दो घंटे तक जारी रहा। मामले में मानपुर थाने में अपराध दर्ज किया गया था।
कैसे हुई यह जांच
सितंबर 2019 में सीएम भूपेश बघेल ने बिलासपुर में शहीद विनोद चौबे की प्रतिमा के अनावरण के दौरान जांच की घोषणा की थी। इस कार्यक्रम में शहीद IPS विनोद चौबे की पत्नी रंजना चौबे ने सीएम को जांच की मांग करते हुए ज्ञापन सौंपा था। वहीं विपक्ष में रहते भूपेश बघेल ने खुद घटना की न्यायिक जांच की मांग सरकार से की थी। उन्होंने एसपी की मौत पर साजिश का संदेह भी जाहिर किया था।
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