बूलंद हौसले से असीम संभावनाएं खोल रही हैं छत्तीसगढ़ की ये महिलाएं

बूलंद हौसले से असीम संभावनाएं खोल रही हैं छत्तीसगढ़ की ये महिलाएं
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एक दिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पेमिन के पास आई और कहा कि देखो तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होना है और अपने परिवार को मजबूती देनी है… आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की एक पहल किसी महिला की जिंदगी में कैसे बदलाव ला सकती है, जानने के लिए पढ़िए बूलंद हौसले वाली छत्तीसगढ़ की इन महिलाओं की पूरी कहानी-

रायपुर। दुर्ग जिले के धमधा के रास्ते में लगे हुए बसनी गाँव की सड़क अब फलों और सब्जी की दुकान से गुलजार रहती है। गाँव की बाड़ी से उपजे देशी फलों का आकर्षण यहाँ मुसाफिरों को रोक लेता है और शायद ही कोई यहाँ से खरीदी किये बगैर आगे बढ़ता हो। इस रास्ते में व्यवसाय कर रहे दर्जन भर से अधिक दुकानों की सफलता का दरवाजा एक महिला पेमिन निषाद ने खोला। पेमिन ने शासन की सक्षम योजना का लाभ उठाया। पचास हजार रुपए से फलों की दुकान आरंभ की। ये दुकान उस समय आरंभ की जब यह सड़क सूनी रहती थी, लेकिन जिंदगी में आगे बढ़ना था बगैर सहारे के अपना परिवार चलाना था। आज बिल्कुल बगल से दूसरी दुकान भी आरंभ कर दी है। जब फल और सब्जी खरीदने लोग रूकेंगे तो चाय भी पीने रूकेंगे और इसके लिए उन्होंने होटल भी आरंभ कर दिया। यह सब छोटी सी शुरूआत केवल पचास हजार रुपए से हुई। एक दिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पेमिन के पास आई और कहा कि देखो तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होना है और अपने परिवार को मजबूती देनी है। शासन की एक योजना है सक्षम नाम की, इसके लिए विधवा, परित्यक्ता अथवा 45 वर्ष से अधिक आयु की अविवाहित स्त्री पात्र हितग्राही हैं। किसी तरह की ज्यादा औपचारिकताओं की जरूरत नहीं। ब्याज केवल 3 प्रतिशत और आराम से 5 साल तक किश्तों में चुकाते रहो।


पेमिन ने बुद्धिमत्ता दिखाई अपने व्यवसाय की शुरूआत के लिए धमधा-दुर्ग सड़क को चुना, यह बाड़ियों के पास की जगह थी। शिवनाथ नदी के किनारे की बाड़ियों के कलिंदर, पपीता, खीरा, भुट्ठा उन्होंने बेचने आरंभ किया। गर्मियों में तो बिक्री खासी बढ़ गई। पेमिन ने बताया कि कभी-कभी तो 20 हजार रुपए तक के फल भी बेच लिये। फिर दुर्ग से फल मंगवाने भी आरंभ किया। चुकंदर जैसे फलों पर ध्यान दिया। इसमें खून बढ़ता है और इसकी खासी डिमांड होती थी, इसलिए चुकंदर भी रखना आरंभ कर दिया। अब सड़क के किनारे दर्जन भर दुकानें हैं और इस सड़क से गुजरने वाले लोग अमूमन यहाँ खरीदी करते ही हैं। लाकडाउन में दो महीने व्यवसाय बंद रहा लेकिन किश्त चुकाने में किसी तरह की दिक्कत पेमिन को नहीं आई।

ऐसी ही चमकदार कहानी ग्राम हिर्री की नीरा यादव की है। पति की मृत्यु के पश्चात उन्होंने पान की दुकान चलाई। फिर आटा चक्की आरंभ की। किसी ने बताया कि सक्षम योजना के माध्यम से मिनी राइस मिल खोलने के लिए मदद मिल सकती है। निर्णय पर तुरंत कार्यान्वयन किया। अब हिर्री ही नहीं, टेमरी, बिरेझर जैसी नजदीकी बस्तियों से भी लोग उनके मिनी राइस मिल में पहुँचते हैं। सक्षम योजना से आर्थिक रूप से सबल हुई महिलाओं की चमकदार कहानियाँ यह साबित कर रही हैं कि महिलाओं में अनूठी उद्यमशीलता है और थोडा अवसर मिलने पर वे असीम आर्थिक संभावनाओं की राह खोल सकती हैं। जिला कार्यक्रम अधिकारी विपिन जैन ने बताया कि बीते वर्ष 97 लाख रुपए के ऋण 258 व्यक्तिगत रूप से महिलाओं को और समूहों को छत्तीसगढ़ महिला कोष के माध्यम से बांटे गये। महिलाओं ने इसका बेहतरीन उपयोग किया है और शहरों तथा गांवों में उद्यमशीलता की मिसाल रच रही हैं।


छत्तीसगढ़ की महिलाएं अब पुरूषों का व्यवसाय माने जाने वाले कई क्षेत्रों को अपनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं। महासमुन्द जिले के विकासखंड बागबाहरा के अंदरूनी गाँव कोमाखान में छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित बिहान की दीदीयां लोहे की तार फेंसिंग के निर्माण कार्य से जुड़ी हैं। एकता महिला स्व-सहायता समूह की इन दीदीयों के हौसलों के आगे लोहा भी नरम पड़ गया है। बिहान समूह की दीदीयों ने कुछ माह में ही 169 बण्डल फेंसिंग तार का विक्रय कर एक लाख 90 हजार 365 रूपए की आमदनी अर्जित की है। इनके बनाए फेंसिंग तार की सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में बहुत माँग है। आत्मनिर्भर बनकर ये महिलाएं न सिर्फ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत बना रहीं है, बल्कि दूसरों को भी रोजगार प्रदान कर उन्हें आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं। महिलाएं फेसिंग तार के साथ आचार, पापड़, निरमा, साबुन, फिनाइल का भी निर्माण करती हैं। समूह की महिलाओं ने बताया कि फेंसिंग तार का काम मुश्किल है, पर मास्टर ट्रेनर द्वारा प्रशिक्षण देने से आसान लगने लगा। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण क्षेत्र में निवासरत महिला एवं युवतियों को स्व-सहायता समूह के रूप में गठित कर उन्हें विभिन्न आजीविका गतिविधियों का प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महासमुंद जिले में 5 हजार 223 महिला स्व-सहायता समूह काम कर रही हैं। इनमें 55 हजार 910 महिलाएं मोमबत्ती, दीया, वाशिंग पाउडर, फिनॉयल, बाँस की टोकरी सहित अन्य सामग्रियां बनाकर आत्मनिर्भर बनी हैं। इसके साथ ही बिहान दीदीयां सिलाई-कढ़ाई करने, जैविक खाद बनाने और खुद बनाए सामानों को बाजार में बेचने का काम करती हैं।

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