ये किसी गरीब की झोपड़ी नहीं, मिनपा गांव का अस्पताल है: नक्सल दहशत के चलते नहीं बना पाए पक्की बिल्डिंग, यही इस क्षेत्र का पहला स्वास्थ्य केंद्र है

ये किसी गरीब की झोपड़ी नहीं, मिनपा गांव का अस्पताल है: नक्सल दहशत के चलते नहीं बना पाए पक्की बिल्डिंग, यही इस क्षेत्र का पहला स्वास्थ्य केंद्र है
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मिनपा... एक ऐसा गांव जहां तक पहुंचना बहुत ही दुष्कर है। मीलों-मील तक सड़कों का नामोनिशान नहीं है। जहां लोग अस्पताल, डॉक्टर, नर्स कुछ भी नहीं जानते। जहां बैगा यानी झाड़-फूंक करने वाला ही उनका डॉक्टर है। वहां साम्य भूमि फाउंडेशन और यूनिसेफ ने एक उप स्वास्थ्य केंद्र बनाया है। पढ़िए दिलचस्प तथ्यों से भरी ये रोचक स्टोरी...

सुकमा। यहां हम बात कर रहे हैं सुकमा जिले के ग्राम मिनपा की। यहां विकास और प्रशासन ज्यादातर हिस्सों से नदारद है। गांवों का यह हाल है कि कहने को तो मिनपा सुकमा से लगभग 90 किलोमीटर दूर है, लेकिन वहां पहुंचने में तीन घंटे से भी ज्यादा का समय लगता है। थोड़ी दूर तक सड़क ठीक है लेकिन बाद में वह टूटी हुई है। रास्ते में सीआरपीएफ के दर्जन भर कैंप हैं जहां चाक-चौबंद जवान अपने ऑटोमैटिक हथियारों के साथ खड़े मिलेंगे। जैसे-जैसे गांव के निकट पहुंचते जाएंगे, तो देखेंगे कि ज्यादातर पुलिए नक्सली बारूद का निशाना बन गए हैं। लेकिन पिछले दिनों मिनपा में जो हुआ वह किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। वहां स्थानीय आदिवासियों से मिलकर साम्य भूमि फाउंडेशन और यूनिसेफ ने एक उप स्वास्थ्य केंद्र बनाया है। कोंटा ब्लॉक के 150 गांवों में यह भी एक गांव है जहां कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं था लेकिन अब वह गर्व से कह सकते हैं कि वहां स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं।

खास बात ये है की स्वास्थ्य केंद्र एक झोपड़ी में बना है। क्योंकि इस इलाके में पक्का ढांचा खड़ा करना नक्सलियों को जरा भी पसंद नहीं है। हालत यह है कि उन्होंने स्कूलों के कई भवन उड़ा दिये हैं और सरकारी भवनों को भी क्षति पहुंचाई है। विकास उनके अस्तित्व के लिए खतरा है। वे यह मानते हैं कि अगर बच्चे पढ़-लिख जाएंगे तो उनके सामने नई चुनौती खड़ी हो जाएगी। इसलिए वे स्कूलों के पक्के ढांचे नहीं बनने देते। अस्पतालों की अनुमति नक्सली इसलिए नहीं देते क्योंकि उससे वे बाहर के लोगों से घुलने-मिलने लग जाएंगे। यह उनके लिए खतरा है। नक्सलियों के इस आतंक के कारण वहां पर विकास के कार्य ठप हो गये हैं। स्कूल-अस्पताल बनाना सरकार के लिए बेहद कठिन हो गया है।

साम्य भूमि फाउंडेशन के आदर्श कुमार कहते हैं कि यहां काम करने का अपना ही आनंद है हालांकि यह इलाका खतरनाक है। यहां काम करना एक जुनून जैसा है और इस बात का सबूत वह खुद हैं। वह एक मेकेनिकल इंजीनियर हैं और पुणे में नौकरी करते थे जिसे छोड़कर वह इन जंगलों में अब आदिवासियों के साथ काम करते हैं। सिर्फ वह ही नहीं बल्कि वहां काम करने वाली एएनएम और उनकी सहायक भी इस काम में हाथ बंटा रही हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि दंतेवाड़ा और सुकमा में कोविड का टीकाकरण कार्यक्रम सफल रहा है। इसकी सफलता का बड़ा उदाहरण इस बात से मिलता है कि शहर से कटे हुए मिनपा गांव के लगभग 2700 लोगों में कमोबेश सभी को टीका लग चुका है। लेकिन इसके लिये साम्य भूमि फाउंडेशन और यूनिसेफ ने भी बड़ी भूमिका निभाई। स्वास्थ्यकर्मी आइस बॉक्सों में टीकों को लेकर पैदल मीलों चले और उन्होंने टीके लगाये। उन दुर्गम इलाकों में यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।

झोपड़ी में बना मिनपा गांव का यह उप स्वास्थ्य केंद्र इस मायने में अद्भुत है कि इसने उस दुर्गम इलाके में जहां जिंदगी और मौत के बीच का फासला बहुत कम है, एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह आदिवासियों, स्वैच्छिक संगठन, चुनिंदा स्वास्थ्य कर्मियों और यूनिसेफ की पहल से बन पाया है और आगे के लिए रास्ते खोलता है। भविष्य में इस मॉडल पर कई और ऐसे केंद्र बन सकते हैं।






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