ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष एमडी जगदल्ला ने अपने पद से दिया इस्तीफा

ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष एमडी जगदल्ला ने अपने पद से दिया इस्तीफा
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छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी अभिकरण (ट्रिब्यूनल) के अध्यक्ष सेवानिवृत्त जज एमडी जगदल्ला ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। डेढ़ लाइन के इस इस्तीफे में उन्होंने लिखा है कि वे शासकीय असुविधा के कारण काम करने में असमर्थ हैं।

रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी अभिकरण (ट्रिब्यूनल) के अध्यक्ष सेवानिवृत्त जज एमडी जगदल्ला ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। डेढ़ लाइन के इस इस्तीफे में उन्होंने लिखा है कि वे शासकीय असुविधा के कारण काम करने में असमर्थ हैं। अध्यक्ष के इस इस्तीफे को लेकर सहकारिता क्षेत्र में कई सवाल उठ रहे हैं। खास बात ये है कि उन्होंने कुछ महीने पहले एक फैसला दिया था, जिसमें सरकारी अधिकारियों की जमकर खिंचाई की थी। ये भी कहा था कि अफसरों को मूल कानून का ज्ञान नहीं है।

सहकारिता सचिव को भेजा है इस्तीफा

हरिभूमि को एमडी जगदल्ला के इस्तीफे की कॉपी मिली है। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के सहकारिता विभाग के सचिव को भेजे गए त्यागपत्र पर 5 जनवरी को हस्ताक्षर किए हैं। इस्तीफे में ये भी लिखा है कि 1 फरवरी 2023 से उनका इस्तीफा स्वीकार किया जाए। सहकारिता के क्षेत्र में इस पदत्याग को लेकर चल रही चर्चा में कहा जा रहा है कि यह इस्तीफा कंडीशनल है। अब से पहले शायद ही किसी अध्यक्ष ने इस तरह पद छोड़ा है।

क्या है शासकीय असुविधा

श्री जगदल्ला ने इस्तीफे की पहली लाइन में साफ किया है कि वे शासकीय असुविधा के कारण इस्तीफा दे रहे हैं। इससे ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि वे किसी न किसी सरकारी कारण से कुपित होकर ये कदम उठा रहे हैं। इस बीच ये जानकारी भी मिल रही है कि उनके साथ काम करने वाले स्टेनो टायपिस्ट को सरकार ने हटा लिया था। तीन-चार महीने बीतने के बाद भी उसकी जगह किसी को नहीं भेजा गया था। इसकी वजह से ट्रिब्युनल का कामकाज ठप हो गया था।

सरकारी अफसरों पर बेहद तल्ख टिप्पणी तो वजह नहीं

श्री जगदल्ला ने पिछले साल 10 अक्टूबर को एक मामले में फैसला दिया था। उन्होंने इस फैसले में लिखा कि पंजीयक सहकारी संस्थाएं अटल नगर रायपुर एवं प्रभारी संयुक्त पंजीयक अंबिकापुर को मूल कानून, मूल शक्ति, मूल अधिकारिता का ज्ञान ही नहीं है। जिसके आधार पर सहकारिता विभाग के सभी अधिकारियों को कार्य करना होता है, आधार स्तंभ है। बुनियादी कानून की अज्ञानता गंभीर प्रकृति का कदाचरण है व न्याय सिद्धांत के अनुसार कानून की अज्ञानता क्षम्य नहीं है। इसे सहकारी क्षेत्र के इतिहास की सबसे गंभीर टिप्पणी माना जा रहा है।

ट्रिब्यूनल का काम बाधित

कुछ महीनों से सहकारिता विभाग द्वारा अधिकरण के दैनिक कार्यों में व्यवधान पैदा किया जा रहा है। इस सअधिकरण को सिविल न्यायालय की शक्तियां प्रयोग करने का अधिकार है। अधिकरण द्वारा अनेक निर्णयों में पंजीयक सहकारिता के विरुद्ध टिप्पणी की गई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त कारणों से ही सहकारिता विभाग द्वारा अधिकरण को पंगु बनाने की चेष्टा की जा रही है। विधि द्वारा स्थापित किसी न्यायिक अधिकरण के अध्यक्ष द्वारा शासन के दुर्भावनापूर्ण कृत्य से निराश होकर सशर्त त्यागपत्र का संभवत: यह प्रथम उदाहरण है।

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