बारसूर में अनूठा विवाह समारोह : पेड़ बने दूल्हा-दुलहन और पूरे गांव ने रस्मो में निभाई सहभागिता... नाचते-गाते आदिवासियों ने की अच्छी पैदावार की कामना

यामिनी पांडे-दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के देवनगरी बारसूर में कई वर्षों से एक अनोखी परंपरा चली आ रही है। यहां के गांव के प्रमुख बैगा, सिरहा और गुनिया गांव के ग्रामीणों के साथ मिलकर महुआ के फूलों की अच्छी पैदावार के लिए महुआ पेड़ की शादी करवाते हैं। यह परंपरा ग्रामीणों की गहरी आस्था से जुड़ी है। इस विवाह की मुख्य विशेषता यह है कि जैसे मनुष्यों के विवाह में विभिन्न रस्मों और नियमों का पालन किया जाता है, ठीक वैसे ही महुआ के पेड़ों का विवाह भी करवाया जाता है।
रस्मों के अनुसार किया जाता है विवाह
मिली जानकारी के अनुसार, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आदिवासी रीति- रिवाजों से दूल्हा- दुल्हन को जिस तरह तेल-हल्दी लगाया जाता है वैसे ही महुआ के टहनियों को भी तेल-हल्दी लगाकर उनका विवाह करवाया जाता है। इस शादी में ग्रामीण गाजे-बाजे के साथ नाच-गान करते हैं। हल्दी-तेल की रस्म निभाकर पूरा गांव उत्सव मनाता है। इन रस्मों को निभाने के बाद देवी-देवताओं की पूजा कर महुआ फूल के अच्छे पैदावार की प्रार्थना की जाती है। अहम बात यह है कि जनजातीय समाज मे जन्म से लेकर मृत्यु तक महुआ पेड़ के फल-फूल और पत्तियों का विशेष महत्व होता है। महुआ के बिना जनजातीय समाज की सभी परम्पराएं अधूरी मानी जाती हैं।
ग्रामीणों की आमदनी का जरिया है महुआ
बता दें कि ग्रामीण एक-एक फूलों को संग्रहित कर घर के आंगन में लाकर अच्छी तरह सुखाते हैं। फिर उन्हें बेचकर धन अर्जित करते हैं। सदियों से ग्रामीणों के लोगों के लिए महुआ फूल उनकी आमदनी का जरिया बना हुआ है। महुआ के पेड़ से लेकर फूल, छाल और पत्ते सभी उपयोगी है। अलग-अलग बीमारियों के लिए इसके फूल, छाल और पत्तों का औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। अब छत्तीसगढ़ सरकार भी ग्रामीणों से महुआ फूल खरीदकर उसका अलग-अलग उपयोग कर रही है।
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