अनूठी परंम्परा : यहां रावण दहन नहीं, वध होता है... जानिए कैसे अमृत पाने टूट पड़ते हैं ग्रामवासी...

कुलजोत संधु-केशकाल। दशहरा उत्सव का नाम आते ही रामलीला व रावण दहन की छवि मानस पटल पर कौंधने लगती है। नवरात्रि के बाद दशमी तिथि को विजयादशमी के अवसर पर रावण का दहन किया जाता है। वहीं, कोण्डागांव जिले के विकास खंड फरसगांव के छोटे से गांव में 1942 से अनूठी परंपरा चल रही है। यहां रावण बनाया तो जाता है, लेकिन उसे जलाया नहीं जाता... बल्कि मिट्टी से बने रावण का वध किया जाता है। यह अनोखी परम्परा कोण्डागांव जिले के ग्राम हिर्री और भुमका में निभाई जाती है।
रावण की प्रतिमा बनाकर किया जाता है वध
इन दोनों ग्रामों में ही दशहरा उत्सव अनोखे तरीके से मनाया जाता है। विगत कई वर्षों से, परम्परा अनुसार भुमका और हिर्री में दशहरा पर्व के दिन रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता, बल्कि रावण की प्रतिमा बनाकर रावण का वध किया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि रावण को मारना मुश्किल था क्योंकि उनकी नाभि में अमृत था। भगवान राम के द्वारा रावण की नाभि में तीर चलाकर रावण का वध किया गया था।
अमृत के लिए रावण पर टूट पड़ते हैं ग्रामवासी
रामायण की कथा के अनुसार ग्रामवासी भी इसी प्रक्रिया को दोहराते हुए रावण का वध करते हैं। उसके पश्चात ग्रामवासी रावण की नाभि से निकलने वाले अमृत के लिए रावण पर टूट पड़ते हैं। इसके बाद नाभि से निकलने वाले अमृत का माथे में तिलक करते हैं। महाज्ञानी ब्राम्हण रावण के बुरे कार्यों पर सच्चाई की जीत का ग्रामवासी तिलक वंदन करते हैं। इस अनोखी परम्परा को देखने के लिए क्षेत्र से ग्रामीण बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। देखें वीडियो...
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