Veer Narayan Singh sacrifice day: जल-जंगल-जमीन के लिए लड़े, अंग्रेजों की नाक पर कर रखा था दम, पढ़िए छत्तीसगढ़ के वीर सपूत की अमर कहानी

कुश अग्रवाल- बलौदाबजार। छत्तीसगढ़ में जन्में अमर शहीद और स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही वीर नारायण सिंह को उनके बलिदान दिवस पर आज पूरा देश नमन कर रहा है। अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले, मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शहीद वीर नारायण की कहानी आज भी देश में माताएं अपने बच्चों को सुनाती हैं। आइए जानते हैं उस वीर के बारे में जिसने न सिर्फ छत्तीसगढ़ महतारी बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाया है।

शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले अंतर्गत सोनाखान में हुआ था। वे बिंझवार समुदाय से हैं और उनके पिता रामराय सिंह जमींदार थे। अंग्रेज सोनाखान पर कब्जा करने की फिराक में थे लेकिन रामराय सिंह ने जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सन् 1856 में पूरा देश अकाल की मार सह रहा था। इंसान समेत पशु-पक्षी सभी इसके ग्रास बनते जा रहे थे। इधर पिता के बाद वीर नारायण सिंह जमींदार बनें और उन्होंने समस्या के निदान के विषय में सोचा।
जनहित के लिए की थी लूटपाट
बताया जाता है कि, सोनाखान इलाके में एक माखन नाम का व्यापारी था। जिसके पास अनाज का बड़ा भंडार था। इस अकाल के समय माखन ने किसानों को उधार में अनाज देने की मांग को ठुकरा दिया। तब ग्रामीणों ने नारायण सिंह से गुहार लगाई और जमींदार नारायण सिंह के नेतृत्व में उन्होंने व्यापारी माखन के अनाज भण्डार के ताले तोड़ दिए और गोदामों से उतना ही अनाज निकाला जितना भूख से पीड़ित किसानों के लिए आवश्यक था। इस लूट की शिकायत व्यापारी माखन ने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर से कर दी। उस समय के डिप्टी कमिश्नर इलियट ने सोनाखन के जमींदार नारायण सिंह के खिलाफ वारन्ट जारी कर दिया और नारायण सिंह को सम्बलपुर से 24 अक्टूबर 1856 में बंदी बना लिया। कमिश्नर ने नारायण सिंह पर चोरी और डकैती का मामाला दर्ज किया था।
संबलपुर के राजा ने की थी जेल से भागने में सहायता
वीर नारायण सिंह जेल में थे लेकिन अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी आग बनकर फैल गई थी। इसी दौरान संबलपुर के राजा सुरेन्द्रसाय की मदद से किसानों ने नारायण सिंह को रायपुर जेल से भगाने की योजना बनाई और इस योजना में सफल हुए। इससे आक्रोशित अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह की गिरफ्तारी के लिए बड़ी सेना भेज दी।
अपनी सेना के साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़े
इधर नारायण सिंह ने भी अपनी कमर कस ली और अत्याचारी हुकूमत के खिलाफ लड़ने के लिए खुद की सेना बना ली। वे अपने 900 जवानों के साथ अंग्रेजों पर टूट पड़े। लेकिन भारतीय इतिहास का कड़वा सच या दुर्भाग्य यह रहा है कि, वे दुश्मन से लड़कर जीतने की ताकत रखते हैं इसीलिए अपनों से हार जाते हैं। नारायण सिंह के साथ भी यही हुआ। रिश्ते में चाचा लगने वाले देवरी के जमींदार ने अंग्रेजों से हाथ मिलाकर गद्दारी की। इसके बाद अंग्रेजों ने सोनाखान को चारों तरफ से घेरकर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया।
जनता के सामने दी गई फांसी
इसके बाद 10 दिसंबर 1857 में अंग्रेजों ने रायपुर के जय स्तंभ चौक पर आम नागरिकों के सामने फांसी दे दी। नारायण सिंह की बहादुरी ने अंग्रेजों की मुसीबतें और बढ़ा दी। उनकी शहादत के बाद जन आक्रोश फूटा और क्रूर शासकों के खिलाफ जमकर विद्रोह हुआ। इसके बाद कई वर्षों तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई। छत्तीसगढ़ में विद्रोह की नींव रखने में वीर नारायण सिंह ने अहम भूमिका निभाई। आज उनके बलिदान दिवस पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है।
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