तस्करों ने भेदा जाल, आबकारी की मोस्ट वांटेड लिस्ट में चार शामिल, अवैध शराब सप्लाई में इनका तगड़ा नेटवर्क

दूसरे राज्यों की शराब की खपत के लिए प्रदेश में सिंडिकेट बनाकर काम किया जा रहा है। शराब के काले कारोबार के धंधे में कई बड़े शहरों में एजेंट बनाए गए हैं जो मोटी कमीशन लेकर शराब खपा रहे हैं। इस कारोबार में तीन ऐसे नाम सामने आए हैं जिन्होंने अलग-अलग शहरों में सिंडिकेट बना लिया है। ये चेहरे आबकारी ने मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल भी किए हैं। आरोपी अभी तक आबकारी का जाल भेदकर फरार हाेने में कामयाब रहे हैं।
इन तीन चेहरों में जेडी सिंग-बेमेतरा, सोनू सरदार-खरोरा और छोटू लोधी-बलौदाबाजार शामिल हैं। आबकारी जांच दस्ते को जब तक सटीक खबरें मिलीं, उसके पहले ही ये आरोपी चकमा देकर फरार हो गए हैं। कचना में इस गैंग के दो मामले पकड़ने के बाद जांच तेज हुई है और इनके द्वारा बड़ा नेटवर्क बनाकर कारोबार करने का पता चला है। अफसरों का कहना है लवन में रहते हुए छोटू लोधी ने दुर्ग-रायपुर जैसे बड़े शहर में अपने गुर्गे तैनात किए हैं।
हमला, बंधक बनाने की कोशिश
राजेंद्रनगर रायपुर शराब दुकान में आबकारी अफसरों पर बड़ा हमला किया गया था। उप निरीक्षक नीलम किरण, पंकज कुजूर और जीआर आड़े की टीम ने बड़े लिकर गैंग पकड़े, लेकिन कई बार ऐसा हुआ जब उनके काफिले को भी तस्करों ने घेरने और बंधक बनाने की कोशिश की। हालांकि टीम ने किसी भी तरह से गैंग का स्टॉक बरामद कर उन्हें जब्त कर लिया।
लिकर के लिस्टेड सौदागर - नंबर 01- जेडी सिंग- बेमेतरा में खोल रखा था शराब बनाने का अवैध कारखाना। यहीं से दो ड्रम स्प्रीट बरामद किया गया। आरोपी मौके से गायब होने के बाद से लापता। नंबर 02- सोनू सरदार- खरोरा में शराब के अवैध कारोबार का अच्छा-खासा नेटवर्क बनाया। पिछले बाद आबकारी ने जब छापा मारा, सोनू चकमा देकर फरार हो गया। मौके से 25 पेटी शराब जब्त की गई। नंबर 03- सोनू गिदवानी- बलौदाबाजार से बिलासपुर तक स्टाक सप्लाई में मास्टर माइंड। कई बार आबकारी की घेराबंदी को भेदकर फरार हुआ। नंबर 04- छोटू लोधी। लवन-बलौदाबाजार में शराब बेचने वालों का सिंडिकेट मास्टर है। आबकारी की लिस्ट में यह आरोपी बहुत शातिर है। फोन बंद कर लेने से आबकारी के लिए आफत।
बड़े तस्करों को पकड़ने में ऐसी परेशानी..
आबकारी के पास स्टाफ की तंगी, उप निरीक्षकों के साथ सिपाहियों की सीमित संख्या। नतीजा- तगड़ी घेराबंदी की कोशिश कई बार नाकाम। सर्विलांस और साइबर सिस्टम नहीं होने से लाठीटेक व्यवस्था पर निर्भर होने की मजबूरी। नतीजा- फोन नेटवर्क-जीपीएस ट्रैक सिस्टम के बिना सटीक मोबाइल लोकेशन जांच नहीं। वैपन्स के बिना कई दूर गांवों और जंगलों में जांच रोकने की मजबूरी, रात में मुश्किल। नतीजा- आबकारी स्टाफ पर बेखौफ हमला। गाड़ी में तोड़फोड़ और बंधक बनाने का डर। वांटेड लेकिन ईनामी घोषित करने का सिस्टम आबकारी के पास नहीं। नतीजा- हुलिया मालूम होने के बाद भी मुखबिरी तंत्र कमजोर।
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