छत्तीसगढ़ के शिमला में आदिवासी महिलाएं बना रहीं तिबत्ती कारपेट, कलेक्टर के ट्वीट ने बदली जिंदगी

रायपुर। अम्बिकापुर का मैनपाट, इस क़स्बे को छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से जाना जाता है। लेकिन इन दिनों मैनपाट आदिवासी महिलाओं को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है। दरअसल महिला यहां गलीचा बनाकर अपना रोजी-रोटी चलाने के मकशद से काम शुरू की थी, लेकिन उनके कार्यों की प्रशंसा और कामकाज की चर्चा पूरे देश में होने लगी है। बीते दिनों आदिवासी महिलाओं ने प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को गलीचा भेंट किया था, जिसे कलेक्टर संजीव झा ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर शेयर किया था।
कलेक्टर के एक ट्वीट ने आदिवासी महिलाओं की जिंदगी बदल दी है। जी हां, अब इस गलीचा की डिमांड मसूरी स्थित आईएएस अकादमी से होने लगी है। बता दें कि अम्बिकापुर जिले के रघुनाथपुर, दरिमा और मैनपैट में आदिवासी महिलाएं को तिबत्ती कारपेट प्रशिक्षण दिया गया था। ये महिलाएं पिछले 4 महीने से ट्रेनिंग के बाद कारपेट बना रही हैं।
गौरतलब है कि अम्बिकापुर कलेक्टर संजीव झा ने जिले की कमान संभालते ही आदिवासी महिलाओं के जनजीवन में व्यापक उत्थान की दिशा में काम किया है। यही वजह है कि आज महिलाएं आत्म-निर्भर और गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की उदाहरण बनी हुई है। कलेक्टर संजीव झा की सोंच ने आदिवासी अंचल की महिलाओं को आर्थिक स्वालंबन की मुख्यधारा में लाकर खड़े कर दिया है। जिससे अम्बिकापुर के मेनपाट का ग़लीचा पूरे भारत में प्रसिद्ध हुआ।
इस संबंध में कलेक्टर संजीव झा ने कहा कि शासन की योजनाओं और प्रशिक्षण का लाभ अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक पहुंचाना ही हमारा दायित्व है। मुझे बड़ी खुशी हुई आदिवासी महिलाएं समूह में गलीचा बनाने तथा अन्य प्रशिक्षण में भाग लेकर रोजगार हासिल कर रही है। मसूरी आईएएस एकादमी से मैनपाट की महिला समूह द्वारा निर्मित गलीचा को आर्डर मिलना पूरे छत्तीसगढ़ के लिए यह गौरव की बात है। आदिवासी महिलाओं की प्रतिभा ने पूरे देश में छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया है, जिसकी भूरी-भूरी प्रशंसा भी होने लगी है।
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