कलेक्टोरेट में रिकार्ड रूम का ऐसा हॉल, सड़-गल कर खराब हो रहे सालों पुराने दस्तावेज, ऑनलाइन किए जाने की जरूरत

कलेक्टोरेट में रिकार्ड रूम का ऐसा हॉल, सड़-गल कर खराब हो रहे सालों पुराने दस्तावेज, ऑनलाइन किए जाने की जरूरत
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रायपुर: राजधानी रायपुर के कलेक्टोरेट में अंग्रेजों के जमाने का बना रिकॉर्ड रूम को अब आधुनिकीकरण करने की जरूरत है। इस रिकार्ड रूम में रखे सालों पुराने राजस्व संबंधी दस्तावेज धीरे-धीरे सड़-गल एवं फटकर कर खराब हो रहे हैं।

रायपुर: राजधानी रायपुर के कलेक्टोरेट में अंग्रेजों के जमाने का बना रिकॉर्ड रूम को अब आधुनिकीकरण करने की जरूरत है। इस रिकार्ड रूम में रखे सालों पुराने राजस्व संबंधी दस्तावेज धीरे-धीरे सड़-गल एवं फटकर कर खराब हो रहे हैं। इस रिकार्ड रूम में जिलेभर के राजस्व से संबंधित बस्ता रखे हुए हैं। पुराने बस्तों में किसी दस्तावेज की जरूरत पड़ने पर उसका नकल निकालना हो, तो लोगों को कलेक्टोरेट के भू-अभिलेख रिकार्ड रूम ही आना पड़ता है, लेकिन रिकार्ड में बस्तों का ऐसा अंबार लगा हुआ है कि एक नकल निकालने में एक कर्मचारी का जहां पसीना छूट जाता है, वहीं नकल निकालने के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को कई दिन, महीनों तक रिकार्ड रूम के चक्कर लगाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। हालात यह है कि शीघ्र ही अगर रिकार्ड रूम का आधुनिकीकरण कर भू-अभिलेखों को ऑनलाइन नहीं किया गया, तो पुराने रिकार्डों का धीरे-धीरे अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।

तीन मंजिला रिकार्ड रूम में हवा तक नहीं आ पाती, कर्मचारियों का घुटता है दम

कलेक्टोरेट का भू-अभिलेख रिकार्ड रूम तीन मंजिला बना हुआ है। हर एक मंजिल में तीन से चार हाॅल के जैसे कमरे बने हुए है, जिनमें जिलेभर के पुराने राजस्व रिकार्ड रखे हुए हैं। दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए इस रिकार्ड रूम को इस तरह से बनाया गया है कि इसके अंदर इंसान तो जा सकता है, लेकिन हवा नहीं जा पाती। यहीं नहीं, राजस्व दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए समय-समय पर उन पर केमिकल का छिड़काव भी किया जाता है। ऐसी स्थिति में इन रिकार्ड रूम से एक नकल के लिए दस्तावेज को ढूंढना यहां कार्यरत कर्मचारियों के लिए चुनौती से कम नहीं होता। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया कि बंद रिकार्ड रूम में काम करने में उनका दम घुटता है। जिस समय केमिकल दवा का छिड़काव होता है, उस दौरान तो सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।

हर महीने औसतन ढाई हजार आवेदन आते हैं

राजस्व रिकार्ड रूम में हर महीने डेढ़ से दो हजार आवेदन आते हैं। इनमें नकल निकालने से लेकर, रिकार्ड रूम का अवलोकन, जीर्ण-शीर्ण अभिलेखाें की संख्या एवं कोर्ट डिमांड के प्रकरण के लिए भी आते हैं। इनमें ज्यादातर नकल निकालने के लिए आवेदन आते हैं। औसतन हर महीने करीब 1200 आवेदन नकल के लिए आते हैं, जबकि अवलोकन के लिए 500, जीर्ण-शीर्घ के लिए 100 एवं कोर्ट डिमांड प्रकरण के लिए 700 आवेदन हैं।

अस्तित्व खो रहे रिकार्ड, उड़ रही स्याही, कागज टूटकर झड़ रहे

रिकार्ड रूम में लाखों दस्तावेज बिना बस्ता किए हुए रखे हुए हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण इन दस्तावेजों को बस्ता बनाकर बांध कर उन्हें व्यवस्थित नहीं किया गया है। ऐसे में बिना बस्ता बंधे पड़े दस्तावेजों का अस्तित्व खतरे में आ गया है, क्योंकि इनमें से कई दस्तावेजों के कागज अपने आप फटकर झड़ने लगे हैं, वहीं कई कागजों से स्याही भी उड़ गई है, जिससे कागज में क्या लिखा है, यह भी बता पाना मुश्किल है। ऐसे में जिन लोगों को नकल की जरूरत है, उनके यह काम भी नहीं आ पा रहा है।

तहसीलों को ऑनलाइन करने की योजना फाइल में सिमटी

रायपुर कलेक्टोरेट के भू-अभिलेख रूम में करीब डेढ़ साल पुराने दस्तावेज डंप पड़े हुए हैं। इस रिकार्ड को आधुनिकीकरण करने की जितनी जरूरत है, उतनी ही जरूरत रायपुर जिले के समस्त तहसीलों को रिकार्ड रूम को भी करने की जरूरत है। हालांकि शासन द्वारा डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआइएलआरएमपी) के तहत प्रदेश के सभी जिलों के तहसीलों में भू-अभिलेख को आनलाइन करने की योजना भी बनाई गई थी। इसके लिए सभी जिलों को एक-एक करोड़ रुपये की राशि भी जारी की गई थी। रायपुर जिले की तहसीलों में इस राशि में से 40 लाख रुपये खर्च कर रूम बनाकर काम्पैक्टर भी स्थापित किए गए हैं, जबकि बार कोडिंग, स्कैनिंग और अभिलेखों की कम्प्यूटरीकृत कापी अभी तक तैयार नहीं की गई है। इस तरह शासन की यह योजना भी कागजों तक सिमट कर रह गई है। इसके कारण पूरे जिले के राजस्व रिकार्ड अभी भी कलेक्टोरेट के रिकार्ड रूम में ही डंप पड़े हुए हैं।

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