कलेक्ट्रेट की ऐसी तस्वीर जिसे देखकर आप दंग रह जाएंगे, अफसर परेशान

रायपुर: जिले के विकास से लेकर प्रशासनिक कसावट की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है, उनके दफ्तर को देखकर जिले की तस्वीर और तकदीर का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। बात जिले के माई-बाप के दफ्तर यानी कलेक्टोरेट की हो रही है। राजधानी का कलेक्टोरेट यूं तो खुद में इतिहास के कई शानदार और उपलब्धियों से भरे पन्नों को समेटे हुए है, लेकिन उसका वर्तमान इस लायक भी नहीं कि वह दूसरे दफ्तरों के लिए नजीर बन सके। कलेक्टोरेट में एंट्री से लेकर वहां के कार्यालय कक्ष और बाथरूम तक वक्त बीतने के साथ अव्यवस्था और उदासीनता की गंदगी ऐसी पसरी है कि किसी साहेबान ने उसे हटाना तो दूर, उस पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा।
आलम ये है कि जिन दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारियों के अलावा हर दिन सैकड़ों लोग आते हैं, वहां अव्यवस्था का आलम बना हुआ है। कलेक्टोरेट बिल्डिंग में जो लिफ्ट लगी हुई है, उसमें पान, गुटखे के थूक का ऐसा कलर चढ़ा हुआ है, जिसे देखकर लोग सीढ़ियों से ही जाना ज्यादा पसंद करते हैं। बाथरूम भी इतने गंदे हैं कि उसकी दुर्गंध से कलेक्टोरेट में आने वाले लोग परेशान हो जाते हैं, वहीं पेयजल की सुविधा तक नहीं है। सीढ़ियों के पास रखे कंडम और जर्जर फर्नीचर कलेक्टोरेट की शोभा में पलीता लगा रहे हैं। लीकेज प्रॉब्लम के कारण आए दिन परिसर में पानी का भी भराव हो जाता है। स्थिति इतनी गंभीर है कि महिला प्रसाधन की सफाई भी महिला कर्मचारियों को 50-50 रुपए जमा कर खुद से करानी पड़ती है। कलेक्टोरेट में कई सालों से व्याप्त अव्यवस्था को लेकर कर्मचारियों द्वारा कई बार अफसरों से गुहार भी लगाई जा चुकी है, लेकिन अव्यवस्था जस के तस बनी हुई है।
लिफ्ट में पान-गुटखे की पीक
तीन मंजिला कलेक्टोरेट बिल्डिंग में एक ही लिफ्ट है, उसे भी नियमित रूप से मेंटेंन नहीं किया जाता। कुछ महीने पहले यह करीब एक माह तक बंद रही। इस लिफ्ट को ठीक तो कर दिया गया, लेकिन इसमें पान व गुटखे की पीक के कारण इस कदर गंदगी फैली हुई है कि अधिकारी-कर्मचारी कोई भी इस लिफ्ट से जाना पसंद नहीं करते। इस बिल्डिंग के सीढ़ियों के पास अभी भी कई कंडम एवं जर्जर फर्नीचर पड़े हुए हैं, जिस पर धूल की मोटी परत और मकड़ियों के जाले लगे हुए हैं।
पेयजल की व्यवस्था नहीं, पानी बोतल के भरोसे
कलेक्टोरेट की तीन मंजिला बिल्डिंग में शुद्ध पेयजल की भी व्यवस्था नहीं है। बिल्डिंग में एक नल कनेक्शन दिया गया है, जिसमें टंकी का पानी आता है। यह पानी सिर्फ हाथ-मुंह धाेने के ही काम आता है, जबकि पीने के लिए यहां पानी की व्यवस्था ही नहीं की गई है। इसके कारण अधिकारी-कर्मचारी पीने का पानी बाहर से मंगाते या घर से लेकर आते हैं।
जेंट्स टॉयलेट की हालत सबसे ज्यादा खराब
कलेक्टोरेट में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग बाथरूम बने हुए हैं। महिला कर्मचारियों द्वारा सामूहिक रूप से महिला बाथरूम की अपने पैसों से नियमित सफाई कराई जाती है और उस बाथरूम पर ताला लगाकर भी रखते हैं, ताकि बाथरूम का सार्वजनिक रूप से उपयोग न किया जा सके। पुरुषों के बाथरूम पूरी तरह सार्वजनिक हैं, जिसके कारण इनकी स्थिति बेहद खराब है। बाथरूम की न ही नियमित सफाई हो पाती है, न ही वहां पानी की उचित व्यवस्था है। इसके दरवाजे भी खुले रहते हैं। इस कारण बाथरूमों से भारी दुर्गंध उठती हैं, जिससे हर कोई परेशान है।
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