केन्द्र ने हाईकोर्ट से कहा, समलैंगिक विवाह को हमारा समाज और हमारा कानून इजाजत नहीं देता

केन्द्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं है क्योंकि हमारा कानून, हमारी न्याय प्रक्रिया, समाज और हमारे नैतिक मूल्य इसे मान्यता नहीं देते हैं। समलैंगिक विवाह को हिन्दू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष ये बातें कहीं।
याचिका का विरोध करते हुए मेहता ने कहा कि हमारे यहां विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसे विवाहों को मान्यता देने और उनका पंजीकरण कराने की अनुमति दो अन्य कारणों से भी नहीं दी जा सकती है। पहला याचिका अदालत से इस संबंध में कानून बनाने का अनुरोध कर रही है। दूसरा इन्हें दी गयी कोई भी छूट विभिन्नन वैधानिक प्रावधानों के विरूद्ध होगी।
उन्होंने कहा कि जबतक कि अदालत विभिन्न कानूनों का उल्लंघन ना करे, ऐसा करना संभव नहीं होगा। याचिका दायर करने वालों के वकील ने कहा कि प्रभावित लोग समाज में बहिष्कार के डर से सामने नहीं आ रहे हैं इसलिए जनहित याचिका दायर की गयी है। अदालत ने वकील से कहा कि वह उन समलैंगिक जोड़ों की सूचना उन्हें दे जो अपने विवाह का पंजीकरण नहीं करा पा रहे हैं। अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 21 अक्टूबर की तारीख तय की है।
हाईकोर्ट ने इस संबंध में जनहित याचिका की जरुरत पर भी सवाल उठाया। उसका कहना है कि जो लोग इससे प्रभावित होने का दावा करते हैं, वे शिक्षित हैं और खुद अदालत तक आ सकते हैं। पीठ ने कहा कि हम जनहित याचिका पर सुनवायी क्यों करें।
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