इस मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार के विज्ञापनों पर खर्च का मांगा ब्यौरा, जानें क्या है पूरा मामला

दिल्ली नगर निगम कर्मचारियों (MCD Employees) के बकाया सैलरी और पेंशन की (Salary) याचिका पर आज दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार (Delhi Government) से उसके विज्ञापनों पर खर्च किए गए रुपये की पूरी ईमानदारी से जानकारी देने को कहा है। इस दौरान दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार (Central Government) उसे 305 करोड़ रुपये ही दे रही हैं। दिल्ली सरकार पर आरोप लगाया कि इनके ऊपर 900 करोड़ रूपये का बीटीए बकाया है और इसीलिए उसके पास फंड की अभी भी कमी बनी हुई है। दावा किया कि उसने कुछ कर्मचारियों को अप्रैल तक का तो कुछ को मई महने तक का वेतन दे दिया है।
इस बात पर एनएमसीडी ने हाईकोर्ट में माना कि उसने फंड जुटाने के लिए 'टाउन हॉल' को एएसआई को देने का फैसला किया है। इसके लिए कई संस्थानों को पत्र भी लिखा गया है और कीमत तय की गई है। उन्होंने कहा कि उसने अपने दो बड़े अस्पतालों को लीज देने के लिए केंद्र से अनुरोध किया है। नॉर्थ एमसीडी ने अपनी 11 ऐसी संपत्तियों का ब्यौरा दिल्ली हाईकोर्ट के सामने रखा और दावा किया कि इन्हें लीज पर देने के लिए टेंडर जारी किए गए है ताकि फंड जुटाया जा सके।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों को आप दोनों की आपसी लड़ाई से क्या फायदा। उन्हें आप जैसे मर्जी सैलरी दें ताकि वे अपने घर का खर्चा चला सकें। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें निगम की संपत्ति की कुर्क करनी होगी। हाईकोर्ट ने कहा कि हम तब तक ऐसा नहीं करेंगे जब तक एमसीडी नहीं बता देती कि उसने फंड जुटाने के लिए क्या प्रभावी कदम उठाए। जिसे लेकर एमसीडी और दिल्ली सरकार आमने-सामने दिखे।
दिल्ली सरकार ने एमसीडी दावों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि समस्या पिछले पांच सालों से जारी है और हर बार एमसीडी की ओर से कोशिश यही रहती है कि वह दिल्ली सरकार में खामी दिखाए। सरकार को राजस्व बनाने वाला संस्थान नहीं है। हमें केंद्र से पिछले पांच साल से 305 करोड़ ही मिल रहे हैं ओर हमारा बजट नहीं बढ़ाया गया है तो क्या हम केंद्र को निशाना बना रहे है नहीं ना।
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