SC ने ससुराल में ना रहने वाली महिला की शादी की रद्द, कोर्ट ने कहा- दबाव बनाने के लिए बलात्कार की बढ़ती शिकायतें निंदनीय

देश की सबसे बड़ी अदालत (Supreme Court) ने बुधवार को एक महिला की शादी को इस आधार पर रद्द कर दिया कि वह लंबे समय से अपने ससुराल (In-laws) में नहीं रह रही थी। उसने इसका कोई स्पष्ट कारण भी नहीं बताया। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि महिला द्वारा पेश किए गए सबूतों के अध्ययन से पता चलता है कि उसने वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू करने का कोई प्रयास नहीं किया।
ना उसने वैवाहिक अधिकारों (Marital Rights) के लिए याचिका दायर की। इस मामले में पता चला कि पति असम के तेजपुर में कारोबार कर रहा था और उसकी पत्नी गुवाहाटी के एक कॉलेज में नौकरी कर रही थी। वे 1 जुलाई 2009 से अलग रह रहे हैं। पीठ ने कहा कि जब पति की मां की मौत हुई थी तब वह दिसंबर 2009 में सुसराल गयी थी, लेकिन वहां बस एक दिन ही रुकी थी।
इस तथ्य को साथ रहने की बहाली नहीं कहा जा सकता। उसने यह नहीं कहा है कि वह फिर से साथ रहने के इरादे से 21 दिसंबर 2009 को अपने ससुराल आई थी। एक साथ रहने के प्रयास को फिर से शुरू करने के लिए प्रतिवादी की ओर से इरादा स्थापित नहीं है।
ससुराल वालों के खिलाफ बढ़ रहा रेप की शिकायत दर्ज कराने का चलन : हाईकोर्ट
वही एक अन्य मामले में ससुराल पक्ष द्वारा दायर याचिकाओं पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए बलात्कार का आरोप में एक रिपोर्ट दर्ज करने और फिर समझौते के आधार पर इसे रद्द करने की मांग करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने दुष्कर्म मामले से जुड़ी प्राथमिकी रद्द करने का आदेश देते हुए चिंता व्यक्त की। पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि केवल वैवाहिक मामलों में दबाव बनाने के लिए पति के परिवार के पुरुष सदस्यों के खिलाफ बलात्कार (Rape) की शिकायतें दर्ज करने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखकर दुख होता है। पीठ ने कहा कि पति के परिवार पर दबाव बनाने के लिए ससुर, देवर या परिवार के किसी अन्य पुरुष सदस्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की जाती है।
इसके साथ ही पीठ ने पीड़िता द्वारा ससुर के खिलाफ वैवाहिक विवाद में दुष्कर्म समेत अन्य धाराओं में दायर मामले को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता एवं सुलह केंद्र के समक्ष सुलह के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी है। भले ही शिकायतकर्ता ने ससुर के खिलाफ दुराचार का आरोप लगाया हो, अदालत की राय है कि वर्तमान कार्यवाही को जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इस मामले में रिपोर्ट खारिज की जाती है।
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