परीक्षा प्रणाली में बदलाव बिना परीक्षा का गुलाम बना रहेगा एजुकेशन सिस्टम : सिसोदिया

नई दिल्ली। शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण सुधार की बात की जाये तो वो मौजूदा परीक्षा पद्धति में सुधार होगा। एजुकेशन सिस्टम में जब तक मौजूदा परीक्षा प्रणाली को नहीं बदला जायेगा तबतक पूरा का पूरा एजुकेशन सिस्टम साल के अंत में होने वाली 3 घंटे की परीक्षा का गुलाम बना रहेगा। और एजुकेशन सिस्टम सीखने का जरिया नहीं बल्कि परीक्षा में पास होने की जंग बनकर रह जायेगा।यह बातें उपमुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने गुरुवार को आईआईटी दिल्ली द्वारा आयोजित 13वें एजुकेशन कांफ्रेंस एडूकार्निवल में ये बातें कही। उन्होंने कहा कि मौजूदा परीक्षा प्रणाली बच्चों के लर्निंग आउटकम को जानने, उसकी कमियों-खूबियों को जानने के बजाय उसे पास या फेल का तमगा देने के लिए बनी हुई है।
सिसोदिया ने कहा कि आज पूरा शिक्षा तंत्र परीक्षा का गुलाम बना हुआ है। ऐसे में अगर हमें शिक्षा सुधार के लिए काम करना है तो सबसे पहले मौजूदा मूल्यांकन पद्धति को बदलना होगा। उन्होंने कहा कि परीक्षा प्रणाली के बोझ तले शिक्षा व्यवस्था चरमरा चुकी है क्योंकि मौजूदा परीक्षा प्रणाली बच्चों के लर्निंग आउटकम को जानने, उसकी कमियों-खूबियों को जानने के बजाय उसे पास या फेल का तमगा देने के लिए बनी हुई है।
उन्होंने आगे कहा कि दशकों से विभिन्न आयोगों और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मूल्यांकन को लेकर ये बातें कही गई लेकिन जमीनी स्तर पर इसे अमल में नहीं लाया गया और इस कारण बच्चे, अभिभावक, शिक्षक या कहे तो पूरी की पूरी शिक्षा व्यवस्था परीक्षा के डर से भयभीत होती है| वो परीक्षा प्रणाली जो बच्चों के सीखने-समझने, उनके बेहतरी के क्षेत्र जानने, उनकी कमजोरियों को दूर करने का साधन होनी चाहिए थी वो सिर्फ और सिर्फ बच्चों के रटने का आंकलन करने का तंत्र बनकर रह गई।
डीबीएसई के माध्यम से कुछ बदलाव शुरू किए जिनके नतीजे बेहतर देखने को मिले
उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि परीक्षा प्रणाली को बदलने के लिए हमने दिल्ली सरकार के कुछ स्कूलों में अपने नए बोर्ड दिल्ली बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन (डीबीएसई )के माध्यम से कुछ अनूठे बदलाव करने शुरू किए है और इसके बेहतर नतीजे देखने को मिले है। उन्होंने बताया कि डीबीएसई के माध्यम से हमने पारंपरिक शिक्षण मूल्यांकन प्रणाली में 5 प्रमुख बदलाव किए जिसमें साल के अंत में होने वाले हाई स्टेक परीक्षा के बजाय, साल भर निरंतर आंकलन ताकि बच्चे के हर पक्ष का सही मूल्यांकन किया जा सकें, पेन-पेपर परीक्षाओं के अलावा नई मूल्यांकन विधियों जैसे परियोजनाओं, प्रदर्शन, प्रस्तुतियों, रिपोर्ट आदि को अपनाना, बच्चों में रटकर की प्रधानता को ख़त्म कर कॉन्सेप्ट्स को समझने, उसे जांचने और परखने का मौका दिया गया, बच्चों के उत्तर को सही-गलत बताने के बजाय उनका रूब्रिक आधारित मूल्यांकन और मार्क्स या ग्रेड देने के बजाय विपरीत विस्तृत गुणात्मक प्रतिक्रिया को प्राथमिकता देने जैसे बदलाव शामिल हैं।
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