Sunday Special: जानें लाल किले की अनसुनी बातें, विश्व धरोहर की सूची में शामिल, जो कर देगी आपको हैरान

Sunday Special देश की राजधानी दिल्ली (Delhi History) में स्थित लाल किला (Red Fort) कई सालों से भारत की शान बढ़ा रहा है। 15 अगस्त, 1947 में भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने के बाद, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू (First Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru) ने दिल्ली के लाल किले से पहली बार ध्वजा रोहण (National Flag) कर देश की जनता को संबोधित किया था और अपने देश में अमन, चैन, शांति बनाए रखने एवं इसके अभूतपूर्व विकास करने का संकल्प लिया था। इसलिए लाल किले को जंग-ए-आजादी (Jung-e-Azadi) का गवाह भी माना जाता है। वहीं तभी से हर साल यहां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2021) के मौके पर देश के प्रधानमंत्री द्धारा लाल किले पर झंडा फहराए जाने की परंपरा है।
लाल किले का निमार्ण शाहजहां ने 1638 ईसवी में करवाई थी। इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। इस किले को बनवाने के लिए शाहजहां ने अपनी राजधानी आगरा को दिल्ली स्थानांतरित कर लिया था। यहां पर रहकर उन्होंने इस शानदार किले को दिल्ली के केन्द्र में यमुना नदी के पास बनवाया। यह यमुना नदीं के तीन तरफ से घिरा हुआ है, जिसके अद्भुत सौंदर्य और आर्कषण को देखते ही बनता है। इस किले का निर्माण 1638 से शुरू होकर 1648 ईसवी तक चला, इसके निमार्ण में करीब 10 साल का समय लगा।
इस भव्य किला बनने की वजह से भारत की राजधानी दिल्ली को शाहजहांनाबाद कहा जाता था, साथ ही यह शाहजहां के शासनकाल की रचनात्मकता का मिसाल माना जाता था। देश की आजादी के बाद भी इस किले का महत्व कम नहीं हुआ, इसका उपयोग भारतीय सैनिकों को प्रशिक्षण देने में किया जाने लगा।, साथ ही यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रुप में मशहूर हुआ, वहीं इसके आर्कषण और भव्यता की वजह से इसे 2007 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया था और आज इसकी खूबसूरती को देखने दुनिया के कोने-कोने से लोग दिल्ली आते हैं।
लाल किले का निर्माण लाल बलुआ पत्थर एवं सफेद संगमरमर के पत्थरों से किया गया है। इस किले के निर्माण के समय इसे कई बहुमूल्य रत्नों व सोने-चांदी से सजाया गया था, लेकिन जब मुगलों का शासन खत्म हुआ और अंग्रेजों ने लाल किले पर कब्जा जमाई तो उन्होंने इस किले से सभी बहुमूल्य रत्न और धातु निकाल ले गए। करीब डेढ़ किलोमीटर की परिधि में फैले भारत के इस स्मारक के चारों तरफ करीब तीस मीटर ऊंची पत्थर की दीवार बनी हुई है। जिसमें मुगलकालीन वास्तुकला का बेहद सुंदर नक्काशी का दर्शाया गया है।
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