सरसों के बाद गेहूं भी करेगा किसानों की बल्ले-बल्ले, ओपन मार्केट में MSP से अधिक भाव रहने की उम्मीद

सरसों के बाद गेहूं भी करेगा किसानों की बल्ले-बल्ले, ओपन मार्केट में MSP से अधिक भाव रहने की उम्मीद
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ओपन मार्केट में इस बार गेहूं के भाव में तेजी सरकारी खरीद एजेंसियों को एमएसपी पर खरीद से वंचित रख सकती है। भाव ज्यादा मिलने से गेहूं की फसल भी किसानों की मौज करने वाली है।

नरेन्द्र वत्स : रेवाड़ी

सरसों की सरकारी खरीद वैसे तो सोमवार से शुरू हो चुकी है, परंतु ओपन मार्केट में भाव काफी अधिक होने के कारण सरकार को एमएसपी पर सरसों का एक दाना भी मिलने की उम्मीद नहीं है। ओपन मार्केट में इस बार गेहूं के भाव में तेजी सरकारी खरीद एजेंसियों को एमएसपी पर खरीद से वंचित रख सकती है। भाव ज्यादा मिलने से गेहूं की फसल भी किसानों की मौज करने वाली है। ऐसे में गेहूं की खरीद के दौरान मंडियों में होने वाली मारा-मारी इस बार देखने को नहीं मिलेगी।

इस बार सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रखा गया है, परंतु इस समय सरसों के भाव 6500 रुपए प्रति क्विंटल तक चल रहे हैं। मंडियों में सरसों की आवक तेज होने के साथ ही सरकारी खरीद एजेंसी हैफेड तो तैयार है, लेकिन उसे सरकारी रेट पर सरसों नहीं मिलेगी। अपनी मिलों के लिए हैफेड को ओपन मार्केट से ही सरसों की खरीद करनी पड़ेगी। लगभग हर साल एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए किसानों को मंडियों में पसीना बहाना पड़ता है। एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती किसान भी अक्सर प्रदेश की मंडियों का रुख करते हैं। सरकार इस पर गत वर्ष ही पाबंदी लगा चुकी है। गत वर्ष सरसों के भाव अच्छे मिलने के कारण इस बार किसानों ने सरसों की फसल पर ज्यादा जोर दिया था, जिससे पूरे प्रदेश में गेहूं का रकबा कम हो गया।

रेवाड़ी जिले में इस बार गेहूं का रकबा करीब 30 फीसदी तक कम है। सरकार ने इस बार गेहूं का एमएसपी 2015 रुपए निर्धारित किया हुआ है। इस समय बाजार में गेहूं के दाम 2200 से 2250 रुपए प्रति क्विंटल तक बने हुए हैं। उप्र और राजस्थान से भी इस बार प्रदेश की मंडियों में गेहूं की आवक होने की उम्मीद नहीं है। इन दोनों राज्यों में भी गेहूं की बिजाई कम की गई है।

मार्केट रेट का रहेगा पूरा असर

आढ़तियों के अनुसार इस बार अगर गेहूं के मार्केट रेट कम नहीं हुए, तो सरकारी खरीद एजेंसियों को गेहूं के लिए भी तरसना पड़ जाएगा। मार्केट रेट कम आने की स्थिति में ही सरकारी एजेंसियों को अपने गोदाम भरने के लिए गेहूं मिल सकेगा। इसके लिए सरकार को मजबूरी में बोनस का सहारा लेना पड़ सकता है।

आढ़ती नहीं करते गेहूं की खरीद

मंडियों में गेहूं की खरीद से आढ़ती बचते हैं। इसका कारण यह है कि आढ़तियों को गेहूं की खरीद पर 4 फीसदी फीस देनी पड़ती है, जो रिफंडेबल नहीं है। गेहूं की खरीद के लिए आढ़ती सरकार से इस फीस को खत्म करने या कम करने की मांग लगातार करते आ रहे हैं।

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