Haryana Politics : दिग्गजों की रस्साकसी के बीच कैप्टन तटस्थ, एक गुट का साथ देने में नहीं दिलचस्पी

नरेन्द्र वत्स. रेवाड़ी। प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच चल रहे रस्साकसी के खेल में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव (Capt. Ajay Singh Yadav) पूरी तरह तटस्थ बनकर चुप्पी साधे हुए हैं। किसी समय पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का खुलकर विरोध करते हुए उनके विरोधी खेमे के करीब जाने वाले कैप्टन इस बार परिस्थितियों को देखते हुए चुप्पी साधकर कांग्रेस की इस गुटबाजी का नजारा देख रहे हैं।
गत 1 सितंबर को पूर्व विधायक व अपने पिता राव अभयसिंह की पुण्यतिथि पर कैप्टन अजय सिंह यादव ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को बतौर चीफ गेस्ट बुलाया था। उन्होंने किरण चौधरी और कुमारी शैलजा को भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया था, परंतु दोनों कार्यक्रम में नहीं पहुंची थीं। कांग्रेस की गुटबाजी इसके बाद ही तेज हुई है। विरोधी खेमा कांग्रेस में हुड्डा को हावी नहीं होने देना चाहता, जबकि हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस में खुद से ऊपर किसी को नहीं मानते। पूर्व में जब भी हुड्डा के साथ कैप्टन के राजनीतिक मतभेद बढ़े, वह दूसरे खेमे के करीब पहुंच जाते थे। हुड्डा का पलड़ा भारी नजर आते ही वह पाला बदलते रहे। इस समय विरोधी खेमा हाथ धोकर हुड्डा के पीछे पड़ा हुआ है। रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा और किरण चौधरी ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। दोनों खेमों के बीच वर्चस्व की जमकर जंग चल रही है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया भी इस जंग को खत्म कराने में विफल साबित हो रहे हैं। दोनों खेमों के समर्थक प्रदेश कांग्रेस प्रभारी के सामने कई मौकों पर आपस में भिड़ चुके हैं। ऐसे हालात में कैप्टन ने खुद को पूरी तरह तटस्थ बनाया हुआ है। चुप्पी तोड़ने के लिए वह किसी एक गुट के साथ खुलकर आने के लिए शायद वह सही समय का इंतजार कर रहे हैं। वह इस बात को भी नहीं भूले हैं, जब हुड्डा ने सीएम पद पर रहते हुए सरकार में उनकी उपेक्षा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वित्त मंत्री से बिजली मंत्री बनाने की टीस अभी तक उनके दिल में जरूर होगी।
हुड्डा से बड़े राजनीतिक नुकसान का खतरा
कैप्टन को इस बात की आशंका है कि खुलकर एक बार फिर से विरोध करने की सूरत में हुड्डा उन्हीं के गढ़ में उन्हें बड़ा राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसका कारण यह है कि अहीरवाल के अधिकांश प्रभावशाली कांग्रेसी नेता हुड्डा के खेमे में हैं। गुरूग्राम हलके में राव दानसिंह की सक्रियता और रेवाड़ी के कई प्रभावशाली नेताओं के सिर पर हुड्डा का हाथ कैप्टन के लिए खतरे से कम नहीं है। हुड्डा का खुलकर विरोध लोकसभा और विधानसभा दोनों हलकों में कैप्टन के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। यही कारण है कि कैप्टन इस समय दोनों खेमों की खींचतान से खुद को अलग रख रहे हैं। वह अपनी चुप्पी उस समय तक नहीं तोड़ेंगे, जब तक कांग्रेस में किसी एक गुट को स्पष्ट रूप से हाईकमान की ओर से पावरफुल करार नहीं दिया जाएगा।
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