ईंट-भट्ठा संचालकों के लिए खतरे की घंटी, ईंट पकाने के लिए जिगजैग नहीं, अपनाना होगा पीएनजी सिस्टम

राजकुमार : नारनौल
प्रदेश के एनसीआर क्षेत्र में आने वाले जिलों के ईंट-भट्ठा संचालकों के लिए खतरे की घंटी बजी है। प्रदूषण रोकने के लिए अपनाई जा रही जिगजैग प्रणाली की जगह अब पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) सिस्टम अपनाना होगा। एनजीटी (NGT) का मानना है कि इस प्रणाली को अपनाने से ईंट-भट्ठों से निकलने वाले धुएं रूपी प्रदूषण से राहत मिलेगी और लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित नहीं होगा।
उल्लेखनीय है कि इलाके में ईंट-भट्ठे लघु उद्योग के रूप में स्थापित किए जाते रहे हैं और अनेक भट्ठा संचालक भवन निर्माण आदि कार्यों में ईंटों की आपूर्ति करके इससे अपनी आजीविका का साधन जुटाते रहते हैं। पूर्व में ईंट-भट्ठे जहां कोयले से चलते थे, वहीं करीब दो दशक पहले यह सरसों की पदाड़ी से भी चलाए जाने लगे। हालांकि कोयले से पकी ईंटों की तुलना में पदाड़ी से पकी ईंटों को कमतर आंका गया, लेकिन दिक्कत यह रही कि कोयले के जलने से जो वायु प्रदूषण होता था, वह कोयले की तुलना में कुछ ज्यादा ही हो गया। इस कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में इसके ईंट पकाने के उपयोग पर पाबंदी लगा तथा जिगजैग प्रणाली अपनाने को विकल्प दे दिया। कुछ साल जिगजैग प्रणाली अपनाने के बावजूद इसके परिणाम उतने कारगर सिद्ध नहीं हुए, जितनी अपेक्षा की जा रही थी। मतलब कि वायु प्रदूषण कम नहीं हो सका।
एनजीटी मुताबिक आने वाले दिनों में अब जिगजैग तकनीक से भट्ठे चलाने की अनुमति नहीं होगी, क्योंकि इससे भी वायु प्रदूषण पर विराम नहीं लग सका है। एनसीआर वाले जिलों में ईंट-भट्ठा चलाने के लिए आने वाले दिनों में पीएनजी गैस का इस्तेमाल करना होगा। जानकारी अनुसार इस संबंध में एनजीटी ने खराब हवा क्वालिटी और लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए यह निर्णय दिया है। एनजीटी का मानना है कि इनसे निकलने वाले धूएं रूपी प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य संबंधी कई तरह के खतरे पैदा हो रहे हैं। इसलिए अब एनसीआर के जिलों के ईंट-भट्ठा संचालकों को पीएनजी गैस का इस्तेमाल करना होगा। अगर ईंट-भट्ठा संचालकों ने आदेशों का पालन नहीं किया तो यह बंद कर दिए जाएंगे।
ईंट-भट्ठा एसोसिएशन जिला महेंद्रगढ़ के प्रधान महेंद्र यादव ने बताया कि पीएनजी की चर्चा जरूर है, लेकिन अब तक कोई आदेश प्राप्त नहीं हुए हैं। एनजीटी और सरकार नए-नए रूल लागू करके भट्ठा उद्योगों एवं रोजगार को खत्म कर रही है। बड़ी मुश्किल से 50-60 लाख रुपये खर्च करके जिगजैग प्रणाली लागू की थी, लेकिन फिर से इन्हें बंद किया जा रहा है। न तो संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं और न ही पीएनजी उपलब्ध है। ऐसे में भट्ठा संचालक ईंट-भट्ठों को बंद करने को ही मजबूर हो जाएंगे।
क्या है पीएनजी
एलपीजी की भांति ही पीएनजी भी होती है। हालांकि पीएनजी एलपीजी से काफी हल्की एवं सस्ती होती है। पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) के लिए उपभोक्ता को आवश्यक फिटिंग करानी होती है और गैस भंडार से भट्ठे की ईंटों तक यह पाइपों के जरिए पहुंचाई जाती है और इसमें आग लगाकर ईंटों को पकाया जाता है।
जिले की स्थिति
महेंद्रगढ़ जिला एनसीआर क्षेत्र में आता है तथा अनेक कायदे-कानूनों के अनुसार ही प्रदूषण का नियम भी दिल्ली की भांति यहां भी लागू होता है। कुछ समय पहले तक जिले में पूरे सौ ईंट-भट्ठे चलते थे, लेकिन जबसे जिगजैग प्रणाली लागू की गई, इनकी संख्या में गिरावट आ गई। करीब 69 भट्ठों पर जिगजैग प्रणाली भट्ठा मालिकों ने लगाई और चार-पांच पर अब भी काम चल रहा है। लेकिन एनजीटी के निर्णय के अनुसार यह प्रणाली भी विफल साबित हुई है और इसका खर्च उठाने के बावजूद अब पीएनजी प्रणाली लागू करने का भार भी वहन करना होगा। मगर यह सब हरियाणा सरकार एवं प्रशासनिक अधिकारियों के रुख पर निर्भर करता है। क्योंकि अभी तक जिला प्रशासन ने इस संबंध में कोई आदेश जारी नहीं किए हैं।
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