पशुधन की जनसंख्या में 1.23 प्रतिशत की दर से हो रही वृद्धि, चारे की किल्लत को दूर करने को अभी से जरूरी कदम उठाने होंगे

पशुधन की जनसंख्या में 1.23 प्रतिशत की दर से हो रही वृद्धि, चारे की किल्लत को दूर करने को अभी से  जरूरी कदम  उठाने होंगे
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यह विचार हकृवि के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे चारा अनुभाग द्वारा भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के साथ मिलकर हरियाणा राज्य में चारा उत्पादन बढ़ाने हेतु ह्यचारा संसाधन विकास योजना के तहत आयोजित की गई कार्यशाला में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।

हिसार : पशुओं की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए गुणवत्ताशील चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान समय में देश में करीब 11 प्रतिशत हरे चारे और करीब 23 प्रतिशत सूखे चारे के साथ-साथ लगभग 29 प्रतिशत दाने की कमी है। पशुधन की जनसंख्या में 1.23 प्रतिशत की दर से हो रही वृद्धि के चलते मांग और आपूर्ति के बीच यह अंतर आने वाले समय में और बढ़ सकता है जिसके लिए जरूरी कदम उठाना बहुत आवश्यक है।

यह विचार हकृवि के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे चारा अनुभाग द्वारा भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के साथ मिलकर हरियाणा राज्य में चारा उत्पादन बढ़ाने हेतु ह्यचारा संसाधन विकास योजना के तहत आयोजित की गई कार्यशाला में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस कार्यशाला में हकृवि, लुवास व एनडीआरआई, करनाल के वैज्ञानिकों, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों, पशुचिकित्सा विभाग के पशु चिकित्सकों व रिजनल फोडर स्टेशन के अधिकारियों सहित कुल 140 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

अर्थव्यवस्था खेती के साथ पशुपालन पर निर्भर

कुलपति ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था खेती के साथ-साथ पशुपालन पर निर्भर करती है। गुणवत्तापूर्ण हरा चारा न मिलने के कारण पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है। इसके लिए पशुपालकों को चारा फसलों की उन्नत प्रौद्योगिकियों के बारे में समय-समय पर जागरूक करने व उनको उच्च गुणवत्ता वाली चारा फसलों के बीज की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी जरूरी है। उन्होंने धान व गेंहू के बचे फसल अवशेषों को चारे के रूप में पशुओं को खिलाए जाने के लिए जरूरी उपचार की तकनीक को किसानों के बीच प्रचारित करने पर बल दिया और कहा कि इससे फसल अवशेषों को जलाने की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।

अब तक चारा फसलों की 51 किस्में विकसित

अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय के चारा अनुभाग ने चारे वाली फसलों की उन्नत किस्मों के विकास में बहुत उम्दा कार्य किया है। इस अनुभाग ने अब तक चारा फसलों की 51 किस्में विकसित की हैं। चारा अनुभाग द्वारा विकसित किस्मों में ज्वार, लोबिया, जई, बरसीम व रिजका की किस्में मुख्य तौर पर अधिक हरा चारा देने वाली, ज्यादा प्रोटीन मात्रा व पाचनशीलता युक्त हैं जो पशुओं के लिए ज्यादा लाभदायक हैं। भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के निदेशक डॉ. अमरेश चंद्रा ने कहा कि हरियाणा राज्य में चारा उत्पादन को बढ़ाने के लिए सभी संबंधित विभागों को मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि पशुपालकों को अधिक से अधिक लाभ मिले। नोडल ऑफिसर निआफटा, डॉ. पी. शर्मा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।

पशुपालकों को जागरूक करने की जरूरत

हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सह निदेशक डॉ. रोहताश सिंह व सह निदेशक (सांख्यिकी)डॉ. आरएस सोलंकी ने चारा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पशुपालकों को अधिक से अधिक जागरूक करने की सलाह दी। सहायक वैज्ञानिक डॉ. योगेश जिंदल ने हरियाणा राज्य में चारा उत्पादन हेतु उन्नत प्रोद्यौगिकियों के बारे में बताया। इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एसके पाहुजा सहित चारा अनुभाग के वैज्ञानिक एस आर्य, बजरंग लाल शर्मा, सतपाल, पी. कुमारी, रवीश पंचटा, नीरज खरोड़ आदि उपस्थित रहे।

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