अनूठी हस्तकला : मां से सीखी रियासतकालीन कला को नए आयाम दे रहीं नेशनल अवार्डी अनीता

हरिभूमि न्यूज. बहादुरगढ़
विश्व प्रसिद्ध चंबा रुमाल कढ़ाई कला को नई बुलंदियों पर पहुंचाने में जुटी नेशनल अवार्डी अनीता बहादुरगढ़ के सेक्टर-6 स्थित के कम्युनिटी सेंटर में प्राचीन कारीगर एसोसिएशन द्वारा नाबार्ड के सहयोग से आयोजित हस्तशिल्प प्रदर्शनी एवं सांस्कृतिक उत्सव में भी प्रभाव छोड़ रही हैं। विदित है कि चंबा रुमाल की इस तरह कढ़ाई की जाती है कि ये दोनों तरफ एक जैसा दिखता है। चंबा रूमाल पर सिर्फ ऐतिहासिक चित्रों को ही उकेरा जाता है।
दरअसल, अनूठी हस्तकला के लिए विश्वविख्यात चंबा रूमाल किसी पहचान का मोहताज नहीं है। चंबा रूमाल रेशम व सूती कपड़े पर कढ़ाई कर तैयार किया जाता है। रूमाल को बनाने में दो सप्ताह से दो महीने का समय लग जाता है। हालांकि कीमत अधिक होने के कारण रूमाल को बेचना मुश्किल होता है। ब्रिटिश अधिकारियों व पड़ोसी रियासतों के राजाओं को रूमाल उपहार के रूप में दिया जाता था। बताया जाता है कि 18वीं सदी में चंबा रूमाल तैयार करने का काम अधिक था। चंबा के राजा भूरी सिंह ने 1911 में दिल्ली दरबार में ब्रिटिश शासकों को चंबा रूमाल तोहफे में दिया था। जर्मन व इग्लैंड संग्रहालयों में भी चंबा रूमाल मौजूद है। चंबा रूमाल की कीमत गुणवत्ता पर निर्भर करती है। दो सौ से एक लाख रुपए तक रूमाल की कीमत है।
हिमाचल कीअनीता ने साढ़े चार महीने की मेहनत से बगीचे में नायक-नायिकाओं के साथ नीले रंग में राधा-कृष्ण रुमाल पर उकेरे हैं। इसके लिए उसे वर्ष-2018 का राष्ट्रीय हस्तशिल्पी पुरस्कार भी मिल चुका है। इससे पहले वह 2015 में स्टेट अवार्ड प्राप्त कर चुकी है। इस कला में महारत प्राप्त अपनी मां बीना देवी से चंबा रुमाल बनाने की बारीकियां सीखने के साथ ही अनीता 18 वर्ष से चंबा रुमाल बना रही हैं। शादी के बाद पति लालचंद समेत ससुराल पक्ष ने उन्हें प्रोत्साहित किया। चंबा रुमाल को ख्याति दिलाना ही अनीता का ध्येय है। वह इच्छुक महिलाओं को चंबा कढ़ाई का प्रशिक्षण भी देती हैं।
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