78 साल की उम्र में स्वस्थ भारत की अलख जगा रहे हरियाणा के ये दादा, इनके योगासन के आगे पानी भरते हैं युवा

78 साल की उम्र में स्वस्थ भारत की अलख जगा रहे हरियाणा के ये दादा, इनके योगासन के आगे पानी भरते हैं युवा
X
जिस उम्र में लोग अक्सर लाठी का सहारा लेकर चलने लगते हैं, उस उम्र में हरियाणा के नारनौल शहर के केशव नगर निवासी कैप्टन जगराम आर्य योगासन्नों के बल पर न केवल खुद को चुस्त-दुरुस्त बनाए हुए हैं, बल्कि नैतिक एवं वैदिक पाठ का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं।

सतीश सैनी : नारनौल

जिस उम्र में लोग अक्सर लाठी का सहारा लेकर चलने लगते हैं, उस उम्र में हरियाणा के नारनौल शहर के केशव नगर निवासी कैप्टन जगराम आर्य योगासन्नों के बल पर न केवल खुद को चुस्त-दुरुस्त बनाए हुए हैं, बल्कि वह रोजाना शिक्षण संस्थान ही नहीं, गांवों में जाकर नैतिक एवं वैदिक पाठ का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं। स्वामी दयानंद को आदर्श मानते हुए आर्य उनकी विचारधारा का प्रकाश जन-जन तक फैलाने में अपने जीवन को समर्पित किए हुए हैं। कैप्टन जगराम आर्य योगासन में युवाओं को भी टक्कर देते हैं।

नारनौल शहर के मोहल्ला केशव नगर में रह रहे कैप्टन जगराम आर्य यूं तो राजस्थान के नजदीकी गांव निहालोठ के रहने वाले हैं। सात मई 1945 को उनका जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उनकी माता का नाम अणची देवी व पिता का नाम श्योनारायण था। पांच बहन-भाईयों में वह सबसे छोटे हैं। वह आठ जुलाई 1965 में आर्टलरी में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए। वह स्रातक, विद्या वाचस्पति एवं कोविद हिंदी ( समकक्ष स्रातकोत्तर ) होने के चलते शीघ्र ही सेन्य सेवा में धर्मगुरु/धर्माचार्य बन गए और रोजाना सैनिकों को उपदेश देना, हवन-प्रवचन करना उनका नित्य कर्म बन गया। 31 मई 2002 को जब वह सेवानिवृत हुए, तब तक वह कैप्टन बन चुके थे। सेवानिवृत्ति उपरांत उन्होंने अपने नित्यकर्म नहीं छोड़े, बल्कि इसमें कुछ न कुछ और विस्तार करते चले गए।

वर्ष 2002 में उन्होंने आर्य समाज संघीवाड़ा में दयानंद सभा का गठन किया और वह इसके अध्यक्ष चुने गए। छह साल तक इस पद पर कुशलता एवं दक्षता के साथ अपने दायित्व का बखूबी निर्वाहन किया। तत्पश्चात वह वेदप्रचार मंडल के जिलाध्यक्ष बने और वर्ष 2009 में वेदप्रचार पदयात्रायों का आयोजन करने लगे। हरियाणा एवं राजस्थान के करीब 500 गांवों में उन्होंने आर्य समाज का गठन किया और आमलोगों के साथ-साथ हजारों स्कूलों व कॉलेजों में जाकर विद्यार्थियों को नैतिक एवं वैदिक पाठ पढ़ाया। गांवों में आर्य समाज के साथ-साथ वैदिक पुस्तकालय की स्थापना भी करवाई। इसके जरिए वह लोगों के दुर्व्यसनों को छुड़वाने लगे। विद्यार्थी जीवन से ही युवक-युवतियों ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ाया एवं जनेऊ धारण करवाई। शराब एवं धूम्रपान को महापाप की श्रेणी में रखने हुए लोगों को प्रेरित किया। गोसेवा के लिए लोगों को प्रेरित किया। पोधारोपण करवाया और वृद्धजनों को सम्मान दिलाया। कन्या भ्रूण हत्या रोकने को भी कदम उठाए।

वेदोपदेशक के साथ-साथ लेखन में भी रुचि

कैप्टन जगराम आर्य की वेदोपदेशक के साथ-साथ लेखन में भी रुचि रही है। कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उनके लेख छप चुके हैं, वहीं उन्होंने वेदप्रचार पदयात्रा भाग एक से पांच तक का लेखन किया। लोगों में अपने कोष से सत्यार्थ प्रकाश एवं आर्य सत्संग गुटका, वैदिक प्रश्नोत्तरी, दो बहनों की बातें और दो मित्रों की बातें नामक पुस्तकें, महर्षि दयानंद का चरित्र और ओम ध्वज नि:शुल्क प्रदान किए। उत्कृष्ट कर्म, कर्मफल व्यवस्था के साथ-साथ अपने गुरु बचनसिंह आर्य के जीवन चरित्र की भी रचना लिखी। 77 पड़ाव पार करने पर भी वह मयूरासन, र्स्वांग आसन्न, प्राणायाम, संध्या ध्यान, प्रात:भ्रमण नित्य करते हैं।

राष्ट्रपति ने किया था सम्मानित

कैप्टन जगराम आर्य पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा एवं केआर नारायणनन के हाथों सम्मानित हैं। जब सेवानिवृत्ति उपरांत उन्होंने आर्य समाज का प्रचार-प्रसार करना शुरू किया, तब उन्हें मुंबई में तत्कालीन कमिश्नर सतपाल आर्य ने सम्मानित किया था। उनकी सदाचार के क्रियाकलापों के देखते हुए अनेक शिक्षण संस्थान ही नहीं, नारनौल के डीसी एवं एसपी भी कई बार सम्मानित कर चुके हैं। उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई से अपने पैतृक गांव निहालोठ के राजकीय उच्चत्तर विद्यालय में एक हॉल का निर्माण करवाया। जिस पर उन्हें वहां के एसडीएम द्वारा भामाशाह अवार्ड से सम्मानित किया गया।

Tags

Next Story