यादें : उस समय एंटिना घूमाकर आता चैनल, 80-90 के दशक में इन धारावाहिकों का रहता था बेसब्री से इंतजार

दीपक कुमार डुमड़ा : बवानीखेड़ा
परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठकर मूवी देखने का अवसर देने वाले राष्ट्रीय चैनल दिल्ली दूरदर्शन की लोकप्रियता न के बराबर रह गई है। पहले दिल्ली दूरदर्शन पर सप्ताह में दो बार शनिवार व रविवार को प्रसारित होने वाली फिल्मों से लोग अपना मनोरंजन करते थे। दिल्ली दूरदर्शन देखने वाले लोग भी अब डिजीटल तकनीक द्वारा फिल्मों का लुत्फ उठाते देखे जा सकते हैं। लोगों के घरों में टेलीविजन स्टेटस सिंबल हुआ करते थे और 80 के दशक से पूर्व किसी-किसी के घर में ब्लैक-एंड-व्हाइट टेलीविजन ही होते थे। बुजुर्गों की मानें तो भारत में 1982 के पश्चात रंगीन टेलीविजन आए। जिस घर में भी रंगीन टेलीविजन होता था, उसमें कोई भी कार्यक्रम देखने का एक अलग ही उत्साह होता था और वहां कार्यक्रम देखने के लिए दर्शकों की भीड़ होती थी। फिर 1991 में जमाना आया केबल नेटवर्क का जिसने हर किसी को अपनी और खींचकर अपना दिवाना बना दिया।
केबल नेटवर्क ने टेलीविजन को दिलाई एक नई पहचान
बुद्धु बक्सा कहे जाने वाले टेलीविजन को केबल नेटवर्क ने एक नई पहचान दी। इसमें विभिन्न टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले अनेक कार्यक्रम और फिल्मों ने लोगों को काफी आकर्षित किया। इन टीवी चैनलों में न्यूज चैनल, भक्ति चैनल, मूवी चैनल, कार्टून चैनल ने अपना एक विशेष स्थान बनाया। अब दौर आया है डिजीटल तकनीक का जिसके माध्यम से थ्री-डी मूवी और बढिया साऊंड सिस्टम के साथ डिजीटल प्रिंट में मूवी देखने का। इस तकनीक ने बहुत ही कम समय में लोगों को आकर्षित कर अपना एक खास स्थान बना लिया। धीरे-धीरे जहां इस उद्योग का प्रसार हो रहा है वहीं दर्शकों की संख्या में भी लगातार वृद्धि होती जा रही है।
मुंडरों से गायब हुए टीवी एंटिना
घरों की मुंडेरो पर टीवी एंटिना हुआ करते थे। लोगों में सोनू मनोज कुमार, विनोद कुमार, कविता, सुनीता, बिमला, रीटा, मीनू, बाला, ज्योति की मानें तो उन्हें आज भी वे दिन याद हैं जब दूरर्शन और डीडी मैट्रो चैनल न लगने के कारण उन्हें अपने छतों पर चढकर एंटिना घुमाना पड़ता था और नीचे खड़ेे भाई-बहन से पूछना पड़ता था कि चैनल लगा या नहीं। चैनल लगने पर खुशी होती और नहीं लगने पर निराशा हाथ लगती थी। जालंधर दूरदर्शन और डीडी मैट्रो के कार्यक्रम देखने के लिए लोग स्पेशल एंटिना लगाते थे। जैसे-जैसे मनोरंजन की नई-नई तकनीक आने लगी, वैसे-वैसे लोग मनोरंजन के नए-नए साधनों का इंतजाम करने लगे। लोग भी अपना मनोरंजन करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार होने लगे। इसी के चलते मार्कीट में डिश एंटिना और केबल ऑपरेटरों द्वारा डिजीटल बॉक्स उपलब्ध करवाया जा रहा है।
किन धारावाहिकों का रहता था बेसब्री से इंतजार
80 और 90 के दशक में दिल्ली-दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले विक्रम बेताल, दादा-दादी की कहानियां, मालगुडीडेज, गुल-गुलशन गुलफाम, लोहित किनारे, एक कहानी, द सॉर्ड ऑफ टीपू सुलतान, मशाल, सांझा चूल्हा, संसार, चाणक्य, हम लोग, रामायण, महाभारत, चंद्रकांता, बुनियाद, विष्णुपुराण, भारत एक खोज, आजादी की कहानी, सर्कस, फौजी, उड़ान, मुगा नसरूददीन, अदालत, जंगलबुक, हिमालय दर्शन, हरियाणा डायरी, कृषि दर्शन, शांति, साप्ताहिकी, रंगोली, सुरभि, अलीफ लैला, तेनालीरामा, जानकी जासूस, व्योमकेश बक्शी, तहकीकात, चित्रकार, जप-तप-व्रत व शिव माहपुराण सहित अनेक धारावाहित प्रसारित होते थे जिन्हें लोग बड़े चाव से देखते थे। वहीं जालंधर दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम मेरा पिंड- मेरा खेत और अस्सी ते कानून व डीडी मैट्रो पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक जुनून का भी हर किसी को इंतजार रहता था।
नहीं है युवा पीढ़ी को कुछ पता
80-90 के दशक के बारे में युवा पीढ़ी को कोई जानकारी नहीं है। हाईटैक्निॉलोजी के चलते युवा पीढ़ी जानना भी नहीं चाहती और न ही आज के समय को इतना समय की पुराने समय को याद करे। फिर भी यादों के गलियारों से उस समय के लोग बीते दिनों को याद करते हैं।
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