बड़ी अजब-गजब दास्तान : गंगा-जमुना की तहजीब को समेटे दो धर्मों को आपस में जोड़ रही बनारसी साड़ी

कुरुक्षेत्र। हिन्दू शादी में शुभ माने जाने वाली व महिलाओं की शान में चार चांद लगाने वाली हाथ से बनी बनारसी साड़ी का जलवा आज भी उतना कायम है, जितना बरसोंं पहले होता था। कुरुक्षेत्र में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में तो बनारसी साड़ियों का जलवा दोगुना हो जाता है। बनारस से आने वाले मुस्लिम कारीगरों का कहना है कि कुरुक्षेत्र उन्हें अपने घर जैसा लगने लगा है और बनारसी साड़ी बनाने के बहाने हिंदु समुदाय के रीति-रिवाज भी उनके लिए बड़े जाने-पहचाने से हो गए है। अहम पहलू यह है कि इस महोत्सव में हर साल बनारसी साड़िया लेकर आने वाले बनारसी कारीगरों को कुरुक्षेत्र और आसपास के लोग बहुत अच्छे से जानने और पहचानने लगे है। ग्राहक और दुकानदारोंं ने आपस में अपने फोन नंबर साझे किए हैं ताकि महोत्सव के समाप्त होने के बाद भी साड़ी खरीदने और बेचने का सिलसिला भी चलता रहे।
महोत्सव के स्टॉल नंबर 32 पर अपनी बनारसी साड़ियों को सजाएं शिल्पकार खुरशीद ने बातचीत करते हुए कहा कि बनारसी साड़ी अपनी धार्मिक आस्था से लेकर अपनी अमीरी दिखाने के कारण दुनिया भर में प्रसिद्घ है। वहीं अगर कभी भी बनारस की बात हो और बनारसी साड़ी की बात ना हो तो वो बात अधुरी ही रह जाती है। लेकिन जब आप गीता महोत्सव में उनके स्टॉन पर आओगे तो आपको वहां गंगा-जमुना तहजीब से लबालब बनारसी साडिय़ो का अनोखा सगंम मिलेगा। वह गीता महोत्सव में वह पिछले बीस वर्ष से आ रहें है। वे अब हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ-साथ तेजी के साथ बदलते इस फैशन के दौर को भी बखूब समझते है। हिन्दू शादी में शुभ माने जाने वाली बनारसी साड़ी को हम लोग उनकी धार्मिक भावना का ख्याल रखते हुए व फैशन की अंधी चकाचौंध में फैंसी साड़ियों के साथ बाजार में जगह बनाए हुए कायम है। उनके पास मौजूद अनेक वैरायटी की बनारसी साडिय़ां महोत्सव मे पहुंचने वाली महिलाओं का ध्यान उनके स्टॉल की तरफ आकर्षित कर रही है और महिलाओं को बनारसी साड़िया काफी पसंद आ रही है।
तीन साल में तैयार हुई साड़ी, कारीगर एक पल हो बैठा पागल
कहते है ना कि जब कोई काम करो, तो ऐसा करो की काम से नाम हो जाए। ऐसे ही बनारसी साड़ी बनाने की अपनी कला में खूब नाम कमाने वाले खुरशीद ने बातचीत करते हुए बताया कि उनके चाचा को एक साड़ी को बनाने में इतना समय लगा कि इस दौरान 40 शादी की दावत खाई व 16 लोगों को मिट्टी दे दी पर उनके चाचा कि वह साड़ी पूरी नहीं हुई। जब वह साड़ी तीन साल में बनकर तैयार हुई तो साड़ी बनाने वाले उनके चाचा एक पल के लिए पागल से हो गए। उस साड़ी के लिए उनके चाचा को विज्ञान भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पद्मश्री सम्मान भी मिला।
एक साड़ी को बनाने में 15 लोगों को लगता है डेढ़ महीने का समय
शिल्पकार खुरशीद ने बड़े उत्साह के साथ बातचीत करते हुए कहा कि हाथ से बनी बनारसी साड़ी हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाती है। लेकिन कभी सोचा है कि इसमें ऐसा क्या है कि इस साड़ी को हाथ से बनाने में 15 लोगों को डेढ महीने तक का समय लग जाता है। इसमें गंगा-जमुना की तहजीब होती है, जो दो धर्मों को आपसे में जोड़ती है। बनारसी साड़ी बनाने की पूरी कहानी समझने मे तो कम से कम दो महीने का समय लग जाएगा, लेकिन यह समझ लो कि इस साड़ी को बनाने के लिए धागा हिन्दू व्यापारियों के यहां से आता है। उसके बाद फिर ताना व बाना मुस्लिम कारीगरों के यहां तैयार होकर सिल्क बनता है। फिर वह रगांई के काम के लिए आगें दोबारा हिंदू या मुस्लिम कामगर के पास जाता है। जरी के काम भी हिन्दू-मुस्लिम दोनों कामगार मिलकर करते है, फिर तैयार होकर ज्यादातर हिन्दू व्यापारियों के पास दुकानों पर पहुंचता है। इस प्रकार कि जटिल प्रक्रिया के बाद बनारसी साड़ी उनके चाहवानों के पास पहुंचती है।
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