बरोदा उप-चुनाव : कभी सुरजेवाला को फंसाया था अब हुड्डा को फंसाया

बरोदा उप-चुनाव : कभी सुरजेवाला को फंसाया था अब हुड्डा को फंसाया
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मौजूदा समय में कांग्रेस (Congress) में चल रही घमासान से हर कोई वाकिफ है। कांग्रेस में ही वर्चस्व की लड़ाई पहले जहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर के बीच थी। वहीं लड़ाई अब भूपेंद्र हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला(Bhupendra Hooda and Randeep Surjewala) के बीच चलती दिखाई दे रही है।

दीपक वर्मा. सोनीपत

कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है। अब बडे़-बुजुर्ग कहते हैं तो ठीक ही कहते है। समय के बलवान होने की बात बरोदा उप-चुनाव (Baroda by-election) में भी सही दिखने लगी है। मौजूदा समय में कांग्रेस (Congress) में चल रही घमासान से हर कोई वाकिफ है। कांग्रेस में ही वर्चस्व की लड़ाई पहले जहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर के बीच थी। वहीं लड़ाई अब भूपेंद्र हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला के बीच चलती दिखाई दे रही है। हालांकि इनके आपसी तलख रिश्ते जगजाहिर हैं।

कभी जींद उप-चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा खेमे के कारण रणदीप सुरजेवाला को चुनाव लड़ना पड़ा था और आज बरोदा उप-चुनावों के लिये रणदीप सुरजेवाला खेमे के कारण हुड्डा खेमा परेशान है। हुड्डा खेमे को अपने प्रत्याशी की टिकट के लिये दौड़ भाग करनी पड़ रही है। वहीं सुरजेवाला खेमे ने इस तरह की स्थिति पैदा कर दी है कि हुड्डा अपने समर्थक नेता को टिकट दिलवा भी लाते हैं तो भी उन्हें नुकसान होगा और नहीं भी दिलवा पाते हैं तो भी उन्हें नुकसान होगा। इतना ही नहीं ये नुकसान सिर्फ बरोदा तक सीमित नहीं रहने वाला।

इस चुनाव में खींचतान का परिणाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के किलोई हलके तक पहुंच सकता है। स्थिति ऐसी बनी है कि कांग्रेस के विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा की मौत के बाद अब उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के कारण। श्रीकृष्ण हुड्डा के बेटे जीता हुड्डा ये चुनाव लड़ना चाहते हैं, जीता हुड्डा की राहुल गांधी दरबार में पैरवी के लिए रणदीप सुरजेवाला आ गए हैं। सुरजेवाला का साथ कुमारी शैलजा भी दे रही है। इसी वजह से पूर्व मुख्यमंत्री का खेमा इन दिनों परेशानी में बना हुआ है।

टिकट मिले या ना मिले दोनों स्थिति में नुकसान

मौजूदा स्थिति में पूर्व मुख्यमंत्री के खेमे में काफी हलचल बनी हुई है। बताया जा रहा है कि जिस तरह से जीता हुड्डा या उनकी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए सुरजेवाला प्रयास कर रहे हैं, उसी से ये बेचैनी बढ़ी हुई है। क्योंकि इससे दिवंगत कांग्रेस नेता श्रीकृष्ण हुड्डा के परिवार में यह संदेश जा रहा है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनके परिवार को टिकट नहीं दिलाना चाहते। ऐसे में अगर परिवार से किसी को टिकट मिलती है तो भी और नहीं मिलती तो भी श्रीकृष्ण हुड्डा का परिवार भूपेंद्र सिंह के खिलाफ होता दिखाई दे रहा है। बता दें कि श्रीकृष्ण हुड्डा ने अपने ही हलके किलोई से खुद को दूर कर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए रास्ता साफ किया था। इसी वजह से भूपेंद्र हुड्डा हर बार चुनावों में श्रीकृष्ण हुड्डा के पक्ष में वोट मांगते रहे। किलोई हलके में आज भी श्रीकृष्ण हुड्डा और उनके परिवार का वर्चस्व है। अगर इस परिवार में यह बात पक्की हो गई कि भूपेंद्र हुड्डा उनके खिलाफ है तो किलोई हलके में भी भूपेंद्र हुड्डा को आने वाले समय में दिक्कत हो सकती है।

5 साल के लिये दी थी टिकट, बात वर्चस्व की भी

बता दें कि पिछले साल जींद में हुए उप-चुनाव के दौरान कांग्रेस से रणदीप सुरजेवाला को टिकट दी गई थी। 22 हजार 740 मतों के साथ सुरजेवाला तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं 50 हजार 566 मतों के साथ भाजपा के कृष्ण मिड्ढा ने जीत दर्ज की थी। उस समय रणदीप सुरजेवाला को टिकट दिलवाने में हुड्डा खेमे का बड़ा हाथ था। कांग्रेस नेतृत्व के सामने प्रचार किया गया था कि सुरजेवाला का पुराना हलका जींद ही है और इनका वहां वर्चस्व भी है। इसी वजह से रणदीप सुरजेवाला को चुनाव लड़ना पड़ा था। वहीं इस बार बरोदा उपचुनाव के दौरान श्रीकृष्ण हुड्डा परिवार से टिकट की पैरवी करते हुए कहा जा रहा है कि पांच साल के लिये श्रीकृष्ण हुड्डा को विधायक बनाया था, इसीलिये उप-चुनावों में परिवार का हक सबसे ज्यादा बनता है। इसके अलावा आलाकमान के सामने यह भी प्रचार किया जा रहा है कि हलके में भूपेंद्र हुड्डा का वर्चस्व है। ऐसे में अब ये उप-चुनाव भूपेंद्र हुड्डा के लिये भी बड़ा बन गया है।

हर एक दल के लिये महत्वपूर्ण है बरोदा उप-चुनाव

बरोदा-उपचुनाव इस समय हरियाणा की राजनीति के लिये बड़ा महत्व रखता है। हर एक राजनीतिक दल के लिये ये चुनाव सरकार बनाने जीतना ही महत्वपूर्ण है। भाजपा के लिये चुनाव जीतना इसीलिये महत्वपूर्ण है, क्योंकि मौजूदा समय में प्रदेश की सरकार भाजपा व जजपा के गठबंधन से चल रही है। भाजपा का उम्मीदवार जीतेगा तो भाजपा को एक और विधायक मिलेगा। जिसके बाद भाजपा का किला और मजबूत होगा। कांग्रेस के साथ भी ये ही स्थिति ये सीट जीत कर कांग्रेस प्रदेश भर में भाजपा के खिलाफ हवा बनाने की कोशिश करेगी। वहीं इनेलो के लिये तो और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में केवल अभय सिंह चौटाला ही जीते थे, अन्य सभी जगहों पर इनेलो का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था। इनेलो अगर चुनाव जीतती है तो उसके चुनाव चिन्ह और राजनीतिक दल के भविष्य की संभावनाएं भी अच्छी रहेंगी।

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