बरोदा उपचुनाव: हार-जीत के बाद कैसे बदल जाएगी हरियाणा की राजनीति और किन नेताओं का करियर हो जाएगा खराब

धर्मेंद्र कंवारी. रोहतक
बरोदा उपचुनाव का इंतजार केवल बरोदा हलके के वोटर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की जनता बडी बेसब्री से कर रही है। वैसे तो उपचुनावों में हरियाणा की जनता कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेती है लेकिन ये चुनाव ऐसे वक्त में हो रहे हैं जब ये एक सीट प्रदेश के सियासी माहौल को बिल्कुल बदलकर रख देगी। भाजपा-जजपा गठबंधन, कांग्रेस और इनेलो तीनों के लिए ये चुनाव करो या मरो वाली स्थिति में हो रहा है। सारी पार्टियों के लिए इसके अलग-अलग मायने हैं। कुल मिलाकर बरोदा का उपचुनाव आग का दरिया है और सारी पार्टियों को उसमें डूबकर जाना है। बरोदा उपचुनाव के तीन नवंबर को वोट डाले जाएंगे और दस को वोटों की गिनती हो जाएगी। ये चुनाव सारी पार्टियों व नेताओं के करियर के लिए भी अहम रहने वाला है।
भाजपा: भाजपा के लिए ये सीट केवल सीट भर नहीं है। असल में ये मुख्यमंत्री मनोहर लाल के लिए संजीवनी की तरह है। 40 सीटें जीतने के बाद जजपा के साथ गठबंधन के बावजूद ये सीट जीतकर मनोहर लाल दिखाना चाहेंगे कि भाजपा में उनका कोई विकल्प नहीं है और वो आज भी सर्वेसर्वा हैं। एक सीट उनको गठबंधन सहयोगी पर हावी होने का मौका देगी। किसान आंदोलन और पीटीआई आंदोलन के बीच के हो रहा ये उपचुनाव अगर भाजपा निकाल जाती है तो अगले दो तीन साल मुख्यमंत्री मनोहर लाल सुकून के साथ विपक्ष को कोसते हुए निकाल सकते हैं और अगर गडबड हुई तो बहुत सारी अंगुलियां उनपर उठना भी तय है।
कांग्रेस: दिवंगत विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा को भूपेंद्र सिंह हुड्डा की छाया माना जाता था लेकिन अब कांग्रेस उनकी पसंद के अनुसार चलने वाली कांग्रेस नहीं रही है। पार्टी में ही रणदीप सुरजेवाला का उभार, कुमारी सैलजा का प्रदेशाध्यक्ष पद पर होना और अब बरोदा उपचुनाव कांग्रेस के लिए कई सारी बातें तय करने वाला है। ये चुनाव कांग्रेस का नहीं तो कम से कम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का भविष्य जरूर तय करने वाला है। सबसे बडी बात प्रत्याशी किसका होगा और फिर वो जीत दर्ज करेगा या नहीं ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब प्रदेश का हर नागरिक आज जाना चाहता है।
जजपा: भाजपा कह चुकी है कि प्रत्याशी तो उनका होगा तो सीधी सी बात है जजपा उनका सहयोग करेगी। किसान आंदोलन के बीच और पडोसी पंजाब में अकाली दल के एनडीए छोडने के बाद दुष्यंत चौटाला भारी मानसिक दबाव से जूझ रहे हैं। गठबंधन पर उडती तरह तरह की अफवाहों पर विराम लगाकर अगले चार साल सुख से भाेगने का मौका जजपा के हाथ लगेगा अगर उनका प्रत्याशी जीत दर्ज करेगा तो। अगर नहीं तो फिर अपने ही विधायकों की नाराजगी झेल रहे दुष्यंत चौटाला को पब्लिक के तानों का भी सामना करना ही पडेगा। विपक्ष भी उन्हें इस चुनाव में जमकर निशाने पर लेगा ही।
इनेलो: कोरोना के बीच अभय चौटाला ने अभी तक बरोदा का मैदान नहीं छोडा है। भाजपा नेताओं के बाद बरोदा में सबसे ज्यादा समय अभय चौटाला ने बिताया है और पार्टी निशान के संकट में भी जूझ रही है। अभय चौटाला के प्रत्याशी की हार-जीत और उनके प्रत्याशी को मिले मत प्रतिशत भी निशान बचाने में पार्टी में मदद करेंगे। अभय चौटाला की कोशिश रहेगी कि किसी तरह वो नंबर दो या नंबर वन तक पहुंचकर भविष्य में कम से कम जजपा का तो विकल्प बन ही सकें।
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