बरोदा उपचुनाव: भाजपा ने कृषि मंत्री जेपी दलाल को ही क्यों बनाया बरोदा चुनाव प्रभारी? इसके पीछे है ये राज

धर्मेंद्र कंवारी. रोहतक
प्रदेश अध्यक्ष पद संभालने के बाद ओमप्रकाश धनखड संगठन से जुडे लोगों और केंद्रीय मंत्रियों से मेल मुलाकातों का दौर जारी रखे हुए। मनोहर लाल खट्टर सरकार के सामने एक बडी चुनौती बरोदा उपचुनाव सामने है और प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ओमप्रकाश धनखड भी बरोदा चुनाव में पूरा जोर लगाने की तैयारी कर चुके हैं। बरोदा में सीधे सीधे मुकाबला मनोहर लाल खट्टर और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच होने वाला है और ऐसे में भाजपा की तरफ से चुनाव प्रभारी की तलाश पूरी हुई है कृषि मंत्री जेपी दलाल के रूप में। आखिर धनखड को जेपी दलाल पर इतना भरोसा क्यों है? उनके चुनाव प्रभारी चुने जाने के पीछे ये कारण प्रमुख रहे हैं। खुद धनखड उनके कुशल प्रबंधन के कायल रहे हैं।
अनुभव: जेपी दलाल भले ही दो चुनाव लोहारू से हारने के बाद विधायक और मंत्री बने हैं लेकिन उनके जानने वाले बताते हैं कि चुनाव प्रबंधन में उनक कोई सानी नहीं है। सालों तक उन्होंने पहले कांग्रेस और फिर हरियाणा विकास पार्टी में रहते हुए चौधरी सुरेंद्र सिंह का चुनाव संभाला है। चौधरी सुरेंद्र सिंह के खास दोस्तों में एक जेपी दलाल के फैसलों पर खुद सुरेंद्र सिंह भी कभी नहीं बदला करते थे। उनकी मौत के बाद किरण चौधरी के चुनाव प्रबंधन का काम भी जेपी ही देखते थे लेकिन फिर इस परिवार से राह जुदा हो गई। पहले लोहारू से निर्दलीय चुनाव लडा तब किरण चौधरी का खुला समर्थन उन्हें प्राप्त था। इसके बाद वो भाजपा में चले गए और तब से खुद के चुनाव प्रबंधन ही देख रहे हैं। 2019 में उनकी जीत के पीछे उनका कुश्ल चुनावी प्रबंधन ही था।
रैली प्रबंधन: जेपी दलाल को रैली प्रबंधन का बहुत गहरा अनुभव है। रैली में आदमी जुटाने का मामला हो या फिर माइक तक का उनको मोबाइल में पूरे हरियाणा से लेकर दिलली तक टेंट हाउस व मीडिया प्रबंधन करने वालों के नंबर फीड हैं। इतना ही नहीं वो दूसरी पार्टियों की रैली और उनके प्रबंधन पर भी नजर रखते हैं। अगर उनको किसी दूसरी पार्टी की रैली मेें भी अगर साउंड सिस्टम ठीक लगता है तो वो उससे बात करते हैं ताकि भविष्य में काम लिया जा सके। ये उनका शौक भी है।
रिस्क लेने का मादा: उनके करीबी बताते हैं कि जेपी दलाल में रिस्क लेने की अद्भुत क्षमता है। एक बार लोहारू में उनकी रैली को लेकर वो मौसम विभाग से बात करना भूल गए और उस दिन मौसम खराब होने के आसार बता दिए गए। सब कुछ तय हो चुका था। उन्होंने दिल्ली तक मौसम विभाग से संपर्क कर सही समय का अंदाजा लगाया और दो दिन पहले ही रैली का समय बदल बदलकर अपनी रैली खराब होने से बचा ली। हालांकि इसके बाद उन्होंने जितनी भी रैलियां करवाई वाटर प्रूफ टेंट लगाना नहीं भूले चाहे मौसम विभाग की चेतावनी हो या ना हो।
खुले हाथ के आदमी: बताते हैं कि भले ही वो जाट हों लेकिन दिमाग उन्होंने एक व्यापारी का पाया है। एक तरफ वो बहुत कंजूस हैं लेकिन जहां जरूरत होती है खुले हाथ से खर्च करते हैं। बताते हैं कि वो पाई पाई का हिसाब रखते हैं लेकिन पाई खर्च करने में खुला हाथ रखते हैं। एक सफल कारोबारी होने के साथ ही उन्होंने ये गुण भी विकसित कर लिया है वहीं उनकी टीम में बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पार्टी से कोई मतलब नहीं होता है, वो जहां जेपी होता है वहीं होते हैं। चौधरी धर्मबीर सिंह के बाद जेपी दलाल के पास ही संभवत सबसे बडी निजी टीम है।
समीकरण बदलने के योद्धा: लोहारू हल्का श्योराण गौत्र का गढ है, ये बात जेपी दलाल भी बखूबी जानते थे इसके बावजूद वहां से चुनाव लडा। खुद वो भिवानी के घुसकानी गांव के हैं लेकिन लोहारू पहुंचकर दो बार हार लेकिन हार नहीं मानी, लगे रहे। 2019 में जीते और मंत्री भी बने। उनके लिए वैसे ये गौरव की ही बात है कि उनके दोस्त चाैधरी सुरेंद्र सिंह भी जब हुड्डा सरकार में मंत्री बने थे तो कृषि मंत्रालय ही मिला था और आज वो खुद भी कृषि मंत्री है।
शांत स्वभाव, तेज गिनाह: जेपी दलाल के लिए प्रसिद्ध है कि वो सुनते सभी की हैं लेकिन करते अपने मन की हैं। सबकी राय मशवरे को सिर माथे रखते हैं लेकिन फैसला अपनी बुद्धि के अनुसार ही लेते हैं। जेपी दलाल से कोई नाराज नहीं होता है, विपक्ष में भी उनके दोस्त हैं। एक बार जो वो ठान लेते हैं उसको पूरा करने के लिए दिन रात एक कर देते हैं और लक्ष्य पर तेज निगाह जमाकर रखते हैं।
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